बड़ी कंपनियों के शहद में मिलावट

Swati ShuklaSwati Shukla   29 Jan 2016 5:30 AM GMT

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बड़ी कंपनियों के शहद में मिलावटगाँव कनेक्शन

लखनऊ। जिन बड़ी-बड़ी कंपनियों के शहद का सेवन करके आप सेहत बनाने की सोचते हैं, वो शहद आप की सेहत बिगाड़ सकता है। 

गाँव कनेक्शन द्वारा एक सरकारी प्रयोगशाला में कराई गई जांच में देश की दो नामी कंपनियों 'डाबर' और 'पतंजलि' के शहद के नमूनों में मिलावट पाई गई है। विशेषज्ञों के अनुसार यह गड़बडिय़ां मधुमेह रोगियों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा सकती हैं। 

'गाँव कनेक्शन' ने जब इन दो कंपनियों के शहद के सीलबंद नमूनों की जांच राजकीय जन विश्लेषक प्रयोगशाला, उत्तर प्रदेश में कराई तो सैंपल अधोमानक निकले। वहीं, एक मधुमक्खी पालक के फार्म से लिए गए नमूने में गुणवत्ता में कोई कमी नहीं निकली। उधर, इस बारे में जब डाबर और पतंजलि कंपनियों में बात करने की कोशिश की गई तो फोन एक विभाग से दूसरे विभाग में ट्रांसफर होता रहा पर किसी ने बात नहीं की। 

कृषि मंत्रालय के अनुसार देशभर में दो लाख मधुमक्खी पालक हैं और मधुमक्खियों की 20 लाख कॉलोनियां हैं। पूरे देश में प्रतिवर्ष 80 हज़ार टन शहद का उत्पादन होता है और 1000 करोड़ रुपए मूल्य के शहद का निर्यात किया जाता है। पहली बार देश में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड को 10 करोड़ की राशि दी है। 

राजकीय जन विश्लेषक प्रयोगशाला, उत्तर प्रदेश में खाद्य विश्लेषक ज्योत्सना बाजपेई ने दोनों कंपनियों के शहद के नमूनों की जांच रिपोर्ट देखने के बाद कहा, ''जितने स्तर की जांचें हमारे यहां होती हैं, वो सभी इन नमूनों के लिए की गई हैं। डाबर और पतंजलि के नमूनों में मिलावट है, जबकि सीधे मधुमक्खी पालक से खरीदा गया शहद शुद्घ है। नमूनों में चीनी की मात्रा अधिक होने से मधुमेह के मरीज़ों को सबसे ज़्यादा नुकसान होगा।" 

बड़ी-बड़ी कंपनियां सीधे ही मधुमक्खी पालकों से शहद खरीदती हैं। इस बारे में उन्नाव जिले के शहमपुर गाँव में मधुमक्खी पालन करने वाले रामकुमार (45 वर्ष) बताते हैं, ''हमारे 50 बक्से हैं और डाबर कंपनी के लोग हमसे जब शहद खरीदते हैं तो उसी समय जांच करते हैं, अगर कोई मिलावट मिलती है तो कम पैसे देते हैं। इसीलिए हम मधुमक्खियों को चीनी नहीं देते।"

फेडेरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स की वर्ष 2011 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में शहद में मिलावट पर चिंता जताते हुए कहा गया कि इस तरह के मिलावटी पदार्थों के सेवन से उपभोक्ताओं का बचना ज़रूरी है। लखनऊ के खाद्य सुरक्षा अधिकारी जेपी सिंह कहते हैं, ''ये तो जनता से धोखा हो रहा है। मुनाफा कमाने के लिए ब्रॉन्ड शहद बताकर शुगर बेच रहे हैं। अगर शहद में एंटीबायोटिक या शुगर की मात्रा है तो यह बहुत नुकसानदायक है।" 

मिलावटी शहद मधुमेह रोगियों के लिए खतरनाक

शहद में अलग से मिलाई गई शुगर (इनवर्ट शर्करा) शरीर में पहुंचकर खून को अशुद्ध करती है। इसका सीधा असर किडनी, लिवर, हड्डियों और दांतों पर पड़ता है। शरीर में इन्वर्ट शुगर की मात्रा ज्यादा होने से लिवर की सेहत खराब हो जाती है। लिवर में वसा के जमा होने के लिए इन्वर्टेड शुगर काफ़ी हद तक उत्तरदायी होती है। नॉन एल्कोहॉलिक फैटी एसिड लिवर रोग की वजह भी यही होती है। मिलावटी शहद मधुमेह के रोगियों के लिए काफी खतरनाक होता है। क्योंकि अतिरिक्त शर्करा की वजह से शरीर की मेटाबोलिक क्रियाओं पर सीधा असर पड़ता है।

"शहद में मिलावट की जांच के लिए 'फीही टेस्ट' किया जाता है। इसमें शहद में मिलाई जाने वाली इन्वर्ट शुगर (साधारण शक्कर) को विघटित करके फ्रैक्टोस और ग्लूकोज़ में बदला जाता है। इन्वर्ट शुगर शहद में क्रिस्टल्स (कण) बनने से रोकती है और मिठास को ज्यादा बढ़ाती है। कारोबारी प्रतिस्पर्धा में कंपनियां शहद में मिलावट करती हैं। ऐसा करने से ना सिर्फ  शहद की गुणवत्ता पर असर पड़ता है, बल्कि लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचता है।" डॉ. दीपक आचार्य, हर्बल विशेषज्ञ

राजकीय जन विश्लेषक प्रयोगशाला में शहद की जांच कराने के बाद मिली रिपोर्ट

 

 

 

 

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