पढ़िए सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की पाँच कविताएँ

गाँव कनेक्शन | Sep 15, 2017, 11:55 IST
sarveshwar dayal

15 सितम्बर, 1927 को जन्मे सर्वेश्वर दयाल सक्सेना प्रसिद्ध कवि एवं साहित्यकार थे। वे तीसरे सप्तक के महत्वपूर्ण कवियों में से एक हैं। कविता के साथ ही उन्होंने कहानी, नाटक और बाल साहित्य भी रचा। 23 सितम्बर, 1983 को उनकी मृत्यू हुई थी, पढ़िए उनकी ये पाँच कविताएँ -

1. फसल

हल की तरह कुदाल की तरह या खुरपी की तरह पकड़ भी लूँ कलम तो फिर भी फसल काटने मिलेगी नहीं हम को । हम तो ज़मीन ही तैयार कर पायेंगे क्रांतिबीज बोने कुछ बिरले ही आयेंगे हरा-भरा वही करेंगें मेरे श्रम को सिलसिला मिलेगा आगे मेरे क्रम को । कल जो भी फसल उगेगी, लहलहाएगी मेरे ना रहने पर भी हवा से इठलाएगी तब मेरी आत्मा सुनहरी धूप बन बरसेगी जिन्होंने बीज बोए थे उन्हीं के चरण परसेगी काटेंगे उसे जो फिर वो ही उसे बोएंगे हम तो कहीं धरती के नीचे दबे सोयेंगे । ------------

2. लीक पर वे चलें

लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं, हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं। साक्षी हो राह रोके खड़े पीले बाँस के झुरमुट, कि उनमें गा रही है जो हवा उसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं। शेष जो भी हैं- वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ; गर्व से आकाश थामे खड़े ताड़ के ये पेड़, हिलती क्षितिज की झालरें; झूमती हर डाल पर बैठी फलों से मारती खिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा; गायक-मण्डली-से थिरकते आते गगन में मेघ, वाद्य-यन्त्रों-से पड़े टीले, नदी बनने की प्रतीक्षा में, कहीं नीचे शुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल; सभी, बन रहा है कहीं जो विश्वास जो संकल्प हममें बस उसी के ही सहारें हैं। लीक पर वें चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं, हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं । ------------------

3. अजनबी देश

अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई, नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं, फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में रास्ता है कि कहीं और चला जाता है दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की आप ही रोता है औ आप ही समझाता है । -------------------

4. तुम्हारे साथ रहकर

तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है कि दिशाएँ पास आ गयी हैं, हर रास्ता छोटा हो गया है, दुनिया सिमटकर एक आँगन-सी बन गयी है जो खचाखच भरा है, कहीं भी एकान्त नहीं न बाहर, न भीतर। हर चीज़ का आकार घट गया है, पेड़ इतने छोटे हो गये हैं कि मैं उनके शीश पर हाथ रख आशीष दे सकता हूँ, आकाश छाती से टकराता है, मैं जब चाहूँ बादलों में मुँह छिपा सकता हूँ। तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे महसूस हुआ है कि हर बात का एक मतलब होता है, यहाँ तक कि घास के हिलने का भी, हवा का खिड़की से आने का, और धूप का दीवार पर चढ़कर चले जाने का। तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे लगा है कि हम असमर्थताओं से नहीं सम्भावनाओं से घिरे हैं, हर दिवार में द्वार बन सकता है और हर द्वार से पूरा का पूरा पहाड़ गुज़र सकता है। शक्ति अगर सीमित है तो हर चीज़ अशक्त भी है, भुजाएँ अगर छोटी हैं, तो सागर भी सिमटा हुआ है, सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है, जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है वह नियति की नहीं मेरी है। ----------

5. अभी लड़ाई जारी है

जारी है-जारी है अभी लड़ाई जारी है। यह जो छापा तिलक लगाए और जनेऊधारी है यह जो जात पांत पूजक है यह जो भ्रष्टाचारी है यह जो भूपति कहलाता है जिसकी साहूकारी है उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है। यह जो तिलक मांगता है, लड़के की धौंस जमाता है कम दहेज पाकर लड़की का जीवन नरक बनाता है पैसे के बल पर यह जो अनमोल ब्याह रचाता है यह जो अन्यायी है सब कुछ ताकत से हथियाता है उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है। यह जो काला धन फैला है, यह जो चोरबाजारी हैं सत्ता पाँव चूमती जिसके यह जो सरमाएदारी है यह जो यम-सा नेता है, मतदाता की लाचारी है उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है। जारी है-जारी है अभी लड़ाई जारी है।
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