बुंदेलखंडः ये कदम उठाए जाएं तो बदल सकती है सूरत

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बुंदेलखंडः ये कदम उठाए जाएं तो बदल सकती है सूरतगाँव कनेक्शन

  • यहां कौशल विकास के कई कोर्स शुरू कराए जा सकते हैं। मनरेगा में काम करने वाले लोगों को बांदा में कौशल विकास की ट्रेनिंग दी जा रही है। ताकि उनके काम में गुणवत्ता आ पाए। यहां के युवा दूसरे शहरों में जाकर ईंट-गारा का काम करते हैं, अगर वो कौशल विकास से अंतर्गत ट्रेनिंग पाएंगे तो अच्छा काम कर सकें।
  • ज्यादातर गाँव के युवा कक्षा 8 या 10 तक पढ़ाई करने के बाद रोजी-रोटी के चक्कर में मजदूरी करने लगते हैं। लड़कियों को 15-20 किमी दूर तक साइकिल से पढ़ने जाना पड़ता है। इसलिए इंटर और डिग्री तक के कॉलेज नजदीक खोले जाएं।
  • बीहड़ में अब भी पनप रहे  डाकू भी वहां के विकास में बाधक हैं। कानून-व्यवस्था सही न होने से यहां होने वाले मनरेगा व अन्य कार्यों में डाकू या दबंग कमीशन मांगते हैं। कानून-व्यवस्था सुधार कर अपराधियों पर अंकुश लगाया जाए, इससे उद्योगों और विकास कार्यों में प्रगति आएगी। 
  • बुंदेलखंड के लोग काफी मेहनती हैं, अगर इस मानव संसाधन को हम लघु और कुटीर उद्योग की ओर मोड़ सकें तो बड़ बदलाव आ सकता है। खेती से निर्भरता कम होने के साथ ही आमदनी के दूसरे स्रोत खुल सकेंगे।

जानवरों की नस्ल सुधारें

  • चारे और पौष्टिक आहार की व्यवस्था हो, सरकार की ओर से हरा चारा बोने के लिए प्रोत्साहन मिले।
  • कृषि और शिक्षा मित्र की तरह पशु मित्रों की पर तैनाती की जाए, जो किसानों को जागरूक करें।
  • चरागाह को अवैध कब्जों से मुक्त कर प्रधान को वैद्धानिक रूप से चरागाह बनाने के लिए जिम्मेदार बनाया जाए।
  • दूध निकालने के बाद पशुओं को खुला छोड़ने वाले मालिकों की पहचान कर उन पर कड़ी कार्रवाई हो।
  • अच्छी नस्ल के सांड़ों को मुहैया कराया जाए। सरकार द्वारा झांसी और चित्रकूट में अच्छी गुणवत्ता के सांड उपलब्ध कराए गए थे लेकिन यह कार्यक्रम बजट न होने से बंद हो गया। इसको शुरु किया जाए, जितने ज्यादा मात्रा में दूध देने वाले पशु होंगे पशुपालक उनको नहीं छोड़ेंगे। इससे साथ-साथ ब्रीडिंग की अच्छी व्यवस्था हो ताकि कृत्रिम गर्भाधान कराने के लिए पशुपालक को भटकना न पड़े।
  • जब दूध की मार्केटिंग अच्छी होगी तभी पशुपालकों को अपने पशु का मूल्य पता चलेगा, इसके लिए सरकार सबसे दूध की मार्केटिंग पर जोर देना चाहिए।
  • बीमार पशु के इलाज के लिए बुंदेलखंड में न उतनी संख्या में डॉक्टर हैं न ही अस्पताल। डॉक्टरों की तो संख्या बढ़ानी चाहिए और पशुमित्रों को भी सक्रिय किया जाए। पशुचिकित्सालयों का निर्माण कराना आवश्यक है।
  • हर न्याय पंचायत में एक गौशाला हो, जिसमें छ़ुट्टा जानवरों को रखा जा सके। कानपुर के भौंती गोशाला में गोशाला में बैंलों में बिजली बनती है साथ ही जो गाय दूध नहीं देती है उनके गोमूत्र से अर्क और गोबर से खाद बनाते है।

नदी-पहाड़ाें से खनन हो, पर संतुलित तरीके से

  • अंधाधुंध खनन पर रोक लगाई जाए। खनन करने वाले ज्यादातर लोग बेतरतीब खनन कर रहे हैं। इसलिए चाहे वो नदी हो या पहाड़ वहां भू-वैज्ञानिकों की सलाह पर वैज्ञानिक तरीके से ही खनन हो।
  • जो पहाड़ खोदे गए हैं, उनकी लेवलिंग हो या उन्हें तालाब में परिवर्तित करें। ताकि उसमें वर्षा जल का संचयन हो सके। उस क्षेत्र में नए सिरे से पेड़-पौधे लगाए जाएं।
  • खनन का अधिक से अधिक लाभ स्थानीय लोगों को मिलना चाहिए। खनन सुरक्षा अधिनियम का कड़ाई से पालन हो। चाहे पहाड़ के पट्टे हों या स्टोन क्रेशर लगाने का लाइसेंस, स्थानीय लोगों को ज्यादा मौके मिलें।
  • नदियों के बीच से जाकर मौंरग-बालू निकालने पर पूर्ण प्रतिबंध लगे। केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की स्थानीय इकाइयां और खनन अधिकारी अभी तक इन पर रोक लगाने में सक्षम नहीं दिख रहे हैं इसलिए इन्हें और अधिकार दिए जाएं साथ ही इनकी जवाबदेही तय की जाए।
  • खनन के अनुपात में पौधारोपण हो। जो क्रेशर चल रहे हैं किसी भी हालत में उनसे धूल न उड़े।
  • ग्रेनाइट के बड़े पत्थरों को तराश और पॉलिस कर उनका मूल्य बढ़ाया जाए। टेल्क पाउडर की यूनिट लगाई जाए।
  • बुंदेलखंड से आने वाले गिट्टी और मौरंग से भरे ट्रकों की गिनती शुरू कराई जाए। साथ एक स्थान पर ट्रक का वजन कराया जाए ताकि ओवर लोडिंग से हो रहे राजस्व की वसूली हो सके।
  • ओवर लोडिंग से इलाके की सड़कों को सबसे अधिक नुकसान हुआ है, इसलिए इस पर तुरंत रोक लगाई जाए।
  • बुंदेलखंड से निकाली जा रही खनिज संपद्दा से हुई आमदनी का एक बड़ा भाग, उसी इलाके में विकास के लिए खर्च किया जाए।

खेती में तुरंत ये कदम उठाएं

  • रबी में उगाई जाने वाले नई बौनी प्रजाति के गेहूं की खेती को हतोत्साहित करने का प्रयास करें। इस गेहूं की खेती में भू-गर्भ जल का अतिदोहन होने से स्थित और बदतर हो रही है। 
  • गेहूं को कम कराने के लिए दालों और तिलहन की खेती में नई योजनाएं लाकर ज्यादा लाभ उपलब्ध कराएं। तिल की प्रोसेिसंग यूनिट लगाकर इसकी खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • बुंदेलखंड में खेती के वैज्ञानिक तरीकों की किसानों को बहुत कम समझ है। मुख्य कारण ये है कि यहां ज्यादा शोध नहीं किए गए। आवश्यकता बुंदेलखंड की खेती पर समेकित शोध की है, जिससे समस्याएं सामने आएंगी, उनके वैज्ञानिक हल खोजे जा सकेंगे।
  • किसानों के पास फसलों के विकल्प नहीं हैं, उदाहरण के तौर पर अगर कानपुर के दलहन अनुसंधान केंद्र में एक उन्नत दाल की कोई प्रजाति आई है तो उसकी जानकारी दालों का गढ़ बनने की क्षमता रखने वाले बुंदेलखंड में किसानों को नहीं है। 
  • नीलगाय यहां के दाल उगाने वाले किसानों की दुश्मन बनी हुई है। उसे मारने के नियम सरल बनाने होंगे। 
  • किसानों में मिट्टी की जांच कराने की प्रवृत्ति यहां बिलकुल नहीं। तुरंत मिट्टी पहचानों मुहिम चलाए जाने की आवश्यकता है क्योंकि बुंदेलखंड की मिट्टी बहुत तेजी से ऊसर होती जा रही है। 

बैंक से कर्ज़ मिलना बनाएं और आसान

  • बुंदेलखंड में कृषि का पिछड़ना और रोजगार की कमी कर्ज़ बढ़ाने की राह में बड़ा रोड़ा है, इसलिए बागवानी और मिश्रित खेती को बढ़ावा देकर मुश्किल समय में किसानों की कुछ आमदनी हो पाएगी।
  • बैंकों की पहुंच बढ़ाई जाए, बैंक मित्रों की संख्या बढ़ाई जाए। ताकि ज्यादा से ज्यादा ग्रामीण बैंकों से कर्ज़ लें और बैंक मित्र उनकी मदद करें। बैंक के अभाव में वो साहूकार के चंगुल में फंसते हैं।
  • किसानों में कर्ज़ माफी की प्रवृत्ति बढ़ाने की जगह उनके अंदर कमाई बढ़ाऩे और कर्ज़ की अदायगी करने हौसला भरा जाए।
  • युवाओं को स्वरोजगार के लिए बैंके से कर्ज़ आसानी से मिले। 

बुंदेलखंड की हर पंचायत में बनाएं ‘जल सहेली’, हर न्याय पंचायत पर बने ‘पानी पंचायत’

  • बुंदेलखंड के कई ज़िलों में ‘पानी पंचायत’ नाम की नागरिकों पर आधारित योजना चल रही है। इस योजना के तहत एक पंचायत को चुनकर उसमें रहने वाली महिलाओं को पानी बचाने का ज्ञान दिया जाता है। साथ ही उन्हें जिम्मेदारी दी जाती है कि पूरे पंचायत में पहले से उपस्थित जल स्रोतों को व्यवस्थित करें और नए जल स्रोतों का निर्माण प्लान करें। इन महिलाओं को ‘जल सहेली’ बोला जाता है। जल संरक्षण के लिए बहुत ही फायदेमंद इस योजना को हर पंचायत में लागू किया जाए।

पर्यटन और कौशल विकास होगा वरदान

  • बुंदेलखंड के मौजूदा संसाधनों का सही से उपयोग किया जाए तो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से धनी इस क्षेत्र का गौरव वापस लाया जा सकता है। 
  • यहां के पर्यटन क्षेत्र में काफी संभावनाएं हैं, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत संजोए इन किलों को अगर पर्यटन स्थल के रुप में विकसित किया जाए तो स्थानीय लोगों के रोजगार के साथ-साथ आमदनी का एक बड़ा जरिया मिल सकता है। इन किलों के आसपास टूरिज्म कैंप भी शुरू किए जा सकते हैं। बुंदेलखंड में करीब 30 ऐसे ऐतिहासिक स्थल हैं जो पर्यटन कि लिहाज से काफी महत्व रखते हैं। कालिंजर के किले से शुरु होने वाली पैराग्लाइडिंग एक अच्छा उदाहरण है। इसी के साथ पर्यटकों को आने के लिए सुविधाओं के साथ प्रचार की भी आवश्यकता है।
  • बुंदेलखंड क्षेत्र में नदियां तो कई हैं, पर उनमें हो रहा मौरंग का अवैध खनन इनकी जीवनधारा को खत्म कर रहा है। अगर इन नदियों से मौरंग को बारिश के बाद मजदूरों से निकलवाया जाए तो दिक्कत नहीं होगी। लेकिन रात-दिन पोकलैंड मशीनों से हो रहे अवैध खनन से नदियों की तलहटी में बनने वाले बड़े-बड़े गड्ढों में पानी आगे नहीं  बढ़ पाता। 

तालाबों में ही सुरक्षित है बुंदेलखंड का भविष्य

  • बुंदेलखंड का भविष्य तालाबों में सुरक्षित है, चंदेल और बुंदेला राजा इसे कई सदियां पहले ही समझ गए थे, हमने समझने में देर की, लेकिन अब भी वक्त है। तालाबों को बचा लिया जाए।
  • बुंदेलखंड के ज्यादातर तालाब अतिक्रमण और अवैध कब्जों के शिकार हैं, उन्हें कब्जा मुक्त कराकर उनमें पानी भरने की क्षमता विकसित की जाए।
  • तालाबों पर फिलहाल कई विभागों का स्वामित्य है। कुछ सिंचाई विभाग के हैं, तो कुछ भूमि सुधार, तो ज्यादातर ग्राम पंचायतों के। उन पर कार्य कराने के लिए कई विभागीय अड़चनें और अनुमति मिलने में लंबा वक्त लगता है। 
  • कर्नाटक की तर्ज़ पर बुंदेलखंड में तालाब प्राधिकरण बनाया जाए। जैसे राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की तर्ज पर उसे सारे तालाब से संबंधित सारे अधिकार दिए जाएं। चाहे तालाब पर की मरम्मत करानी हो फिर उसकी सुरक्षा का सवाल, सभी के लिए तालाब प्राधिकरण उत्तरदायी बने।
  • आंध्र प्रदेश समेत दक्षिण के कुछ राज्यों की तर्ज़ पर तालाब और नहरों का पानी कब और किस किसान, आदमी को कितना मिलेगा, इसके लिए एक ग्राम स्तर पर एक समिति बनाई जाए।
  • महोबा के चंदेल शाषकों की तरह बड़े तालाबों को नहरों के माध्यम से आपस में जोड़ा जाए।

ऐसे होगा उद्योगों का विकास

  • बुंदेलखंड क्षेत्र में उद्योगों का बढ़ावा देने के लिए सबसे पहले एक्साइज़ ड्यूटी पर छूट दें। 
  • बुंदेलखंड में उद्योगों को बिजली की व्यावसायिक दरों पर रियायत उपलब्ध करवाएं ताकि बिजली की खपत वाले उद्योग यहां प्लांट लगाने पर विचार कर सकें।
  • उद्योगों को ज़मीन उपलब्ध कराने के लिए सिंगल विंडो सिस्टम बनाना होगा। इसके लिए सरकार एक नोडल एजेंसी नामित करेंे। 
  • सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अपार संभावनाएं मौजूद हैं। यूपी सरकार ने पॉलिसी में बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए छूट भी दी है, लेकिन इसे प्रचारित करने की आवश्यकता है।
  • बुंदेलखंड में पहले से मौजूद कच्चे माल के हिसाब से उद्योग के अवसरों को प्लान करें। उदाहरण के तौर पर- जिन क्षेत्रों में टैल्क चट्टानों की खुदाई होती है वहां पाउडर बनाने की इंडस्ट्री का विस्तार किया जाए।  
  • बांदा-हमीरपुर से बालू का खनन होता है, सिलिका की संभावनाएं हैं तो कांच उद्योग आकर्षित किया जा सकता है।
  • उद्योगों का विकास पलायन को रोकने में सबसे बड़ा कदम हो सकता है। उदाहरण के तौर पर पहले उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों से लोग काम खोजने मैदानी इलाकों में आते थे। अब उन्हे उत्तराखंड के ही उद्योगों में रोज़गार मिल रहा है।
  • बुंदेलखंड में अकुशल मजदूरों- यानि ऐसा कार्यबल जिसमें उद्योग के अनुरूप हुनर नहीं है- मौजूद है। इस कार्यबल को हुनर सिखाने भर से इनकी दैनिक मजदूरी बढ़ सकती है। 

 

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