विदेशों से गेहूं मंगाना हुआ महंगा

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विदेशों से गेहूं मंगाना हुआ महंगा

  • आटा उद्योग द्वारा गेहूं आयात को रोकने के लिए लगाया गया आयात शुल्क
  • उद्योग के लिए ज़रूरी उच्च प्रोटीन के गेहूं की देश में कमी

नई दिल्ली। केंद्र सरकार देश में गेहूं के आयात पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने जा रही है।

देश में पर्याप्त मात्रा में गेहूं का भण्डार मौजूद होने के बाद भी विदेशों से हो रहे आयात को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सात जुलाई को लोकसभा में बताया कि यह शुल्क मार्च2016 तक लागू रहेगा। देश में अभी तक गेहूं आयात पर कोई भी शुल्क नहीं लागू था। जेटली ने सदन में कहा कि आयात शुल्क बढऩे से गेहूं के आयात में कमी आएगी।

बड़ी मात्रा में हुए इस आयात का एक अनछुआ पहलू भी है जिसकी ओर कम ही ध्यान दिया गया है|

देश की कई बड़ी मिलें व पास्ता और ब्राउन ब्रेड जैसे पदार्थ बनाने वाली कम्पनियों को उच्च प्रोटीन स्तर के अच्छे गेहूं की आवश्कता होती है, जिसका उत्पादन भारत में बहुत कम है| ऐसे में ये कम्पनियां ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से उच्च गुणवत्ता वाले गेहूं का आयात करती हैं|

कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक वर्ष 2014-15 के दौरान देश में गेहूं का उत्पादन घटकर 907 लाख टन रहा है, जो कि इसके पहले वर्ष 2013-14  के दौरान 958.5 लाख टन था।

उत्पादन में बहुत ज्यादा अंतर नहीं आने, और उपयुक्त गेहूं के भण्डार होने के बाद भी, भारत में बाहरी देशों से गेहूं का आयात क्यों करना पड़ता है?

”हमारे पास गेहूं की कोई भी हाई प्रोटीन किस्म नहीं है, जो किस्में हैं, उनमें 9 से 12 प्रतिशत तक ही प्रोटीन स्तर है” पौध आनुवांशिकी एवं नस्ल विकास के जानकार व चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी,मेरठ में प्रोफेसर हरींद्र सिंह बालयान ने ‘गाँव कनेक्शन’ को बताया, ”उच्च स्तरीय गेहूं में प्रोटीन की मात्रा 12 प्रतिशत से ज्यादा होती है। हरित क्रांति के बाद किसानों और वैज्ञानिक शोध का ध्यान जनसंख्या के अनुपात में उत्पादन बढ़ाने पर ही केंद्रित रहा है।”

प्रतिष्ठित अखबार समूह ‘द हिंदू’ के अनुसार जून में भारतीय मिलों ने विदेशों से करीब पांच लाख टन गेहूं आयात करने का करार किया। अप्रैल में भी मिलों ने करीब 80,000 टन उच्चस्तरीय गेहूं का आयात किया था।

भारत में पिछले लगभग पांच वर्षों की तुलना में इस वर्ष सबसे ज्यादा गेहूं का अयात किया गया। वर्ष 2010 में देश ने लगभग दो लाख टन गेहूं विदेशों से मंगाया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पिछले वर्ष भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 86वें स्थापन दिवस के मौके पर कृषि उत्पादन के साथ-साथ उसकी गुणवत्ता बढ़ाने की बात पर ज़ोर दिया था, ताकि किसानों को उच्च गुणवत्ता के अन्न के उत्पादन के लिए अच्छा दाम मिल सके। लेकिन इस दिशा में सार्थक प्रयास नहीं हुए।

देश में मुख्यत: तीन तरह का गेहूं बोया जाता है, ट्रिटिकम एस्टिवम, ट्रिटिकम डुरम और ट्रिटिकम डिकोकम। इन तीनों में से आम गेहूं एस्टिवम सबसे ज्यादा लगभग 95 प्रतिशत बोया जाता है, औरउच्च प्रोटीन स्तर वाला डुरम गेहूं चार प्रतिशत से भी कम बोया जाता है।

”देश का अनुसंधान गेहूं जैसे मुख्य अनाजों की आनुवांशिक क्षमता बढ़ाने की ओर कतई काम नहीं कर रहा। अब जनसंख्या के हिसाब से गेहूं की उपलब्धता हो गयी  है| आवश्यकता है उच्च प्रोटीन स्तर वाले गेहूं की किस्में किसान तक पहुंचाने की।” इलाहाबाद कृषि विश्वविद्यालय में पौध नस्ल विकास के जानकार वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. महाबलराम ने कहा।

प्रो. महाबलाराम ने बताया, ”गेहूं भंडारों में सड़ जाए इससे बेहतर है उसे निर्यात कर दें। लेकिन निर्यात के लिए उच्च प्रोटीन स्तर का गेहूँ चाहिए होगा जो हमारे यहां है नहीं। देश की खुद की भी मिलों को कई उत्पादों के लिए अच्छा गेहूं चाहिए पर उन्हें पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं। गेहूं में प्रोटीन स्तर बढ़ाने से निर्यात बढेगा  और औद्योगिक खपत भी बढ़ेगी, जिससे किसान को भी अच्छा दाम मिल सकेगा।”

सरकार उच्च स्तरीय गेहूं और सामान्य गेहूं के लिए अलग-अलग न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं घोषित करती। डुरम उत्पादक राज्यों के किसान संगठनों की तरफ से विदेशों की तरह ज्यादा प्रोटीन वाले गेहूं की एमएसपी को सामान्य गेहूं से ज्यादा घोषित करने की मांग उठती रही है।

हालांकि कम उपलब्धता के कारण खुदरा बाज़ार से गेहूं खरीदने वाली मिलें आम गेहूं से 60 से 80रुपए प्रति कुंतल ज्यादा दामों पर उच्च प्रोटीन स्तर वाला गेहूं खरीदती हैं।

अमेरिका के ग्लोबल एग्रीकल्चर इंफोर्मेशन नेटवर्क के अनुसार भारत में मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में 10-15 लाख टन ही उच्च प्रोटीन वाले डुरम गेहूं का उत्पादन होता है। लेकिन इन राज्यों में भी मार्च में हुई बे-मौसम वर्षा और ओलावृष्टि से इस वर्ष काफी फसल तबाह हो गई, जिसने बाहरी देशों से आयात को उकसाया|

”जो गेहूं अभी हमारे पास आ रहा उसकी ऊपर की चमक चली गई है। इस कारण अच्छे उत्पादों के लिए हमें इसमें उच्च स्तरीय गेहूं मिलाकर ही इसे प्रयोग करना होगा” दिल्ली स्थित एक बड़े आटा मिलों के समूह के प्रबंधक रामकिशोर शारस्वत ने आगे बताया, ”ऐसी स्थितियों के लिए ही हमें अपना एमरजेंसी कोटा बनाए रखना पड़ता है। इस कारण भी कई मिलें बाहर से अच्छे प्रोटीन वाला गेहूं मंगा लेती हैं। इन सारे आयामों के लिए घरेलू उपलब्धता मुख्य कारक है।”

गाँव कनेक्शन को उच्च स्तरीय सूत्रों से पता चला है कि देश के कृषि मंत्रालय के बायोटेक्रोलॉजी विभाग के तहत होने वाले एक शोध के लिए देश के कई बड़े कृषि विश्वविद्यालय साथ आकर गेहूं की ऐसी किस्में विकसित करने का प्रयास करने जा रहे हैं, जिनमें उत्पादन को बिना प्रभावित किए प्रोटीन का स्तर बढ़ाया जा सके। यह शोध पिछले पांच वर्षों से ज्यादा समय से रुक-रुक कर चलता रहा है, पर अभी तक किसी अंतिम परिणाम तक नहीं पहुंचा है।

हाई प्रोटीन गेहूं के उत्पादडुरम प्रजाति की किस्म का गेहूं का प्रयोग चपाती, दलिया, रवा, इडली, पास्ता, मैक्रोनी, स्प्रैगेटी और सेवईं जैसे उत्पाद बनाने में किया जाता है।

 

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