एक किसान की खुली चिट्ठी: 60 साल के बाद ढाई साल वाली सरकार ने भी धोखा दिया

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एक किसान की खुली चिट्ठी: 60 साल के बाद ढाई साल वाली सरकार ने भी धोखा दियाफोटो- प्रभु वी दास, क्रिएटिव कॉमन्स के तहत

वर्तमान में सत्ता में मौजूद भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने चुनाव लड़ने के समय स्वामिनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का किसानों से वादा किया था। देश में हरित क्रांति कि जनक प्रो एमएस स्वामिनाथन की समिति द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में सुझाव था कि किसानों को उनकी लागत पर 50 प्रतिशत अतिरिक्त लाभ देना होगा तब उनकी स्थिति सुधरेगी। कांग्रेस के समय में तैयार इस रिपोर्ट पर हाल ही में दायर एक आरटीआई में सामने आया कि मौजूद केंद्र सरकार भी अब इसे नहीं लागू करेगी क्योंकि इससे मण्डी व्यवस्था बिगड़ेगी। देश के सजग किसानों में इस बात को लेकर रोष है। मेरठ के ऐसे ही एक किसान ने सरकार के इस यू-टर्न पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी है:

प्रणाम किसान साथियों

मेरा नाम नितिन काजला है और मैं यूपी के मेरठ जिले के भटीपुरा गांव में अपनी 3 एकड़ भूमि पर जैविक खेती करता हूँ। आज इस लेख को लिखने का मकसद समयांतराल में भारत सरकार द्वारा किसानों को दिया गया धोखा है। आप इस लेख को पढ़कर मुझे बायस्ड (किसी की तरफ झुका हुआ) घोषित कर सकते हैं। मैं पहले ही बता दूँ के हाँ मैं बायस्ड हूँ पर किसी राजनीतिक पार्टी की तरफ नहीं, किसी राजनीतिक किसान संगठन की तरफ नहीं, मैं बायस्ड हूँ केवल किसान उत्थान की तरफ, मैं बायस्ड हूँ केवल ग्राम विकास की तरफ।

साथियों यूँ तो आज हम जब हमारी सरकार से पूछते हैं ऐसा क्यों?

तो जवाब आता है 60 साल तो नहीं पूछा ढाई साल में पूछने लगे?

साथियों मैंने तो पढ़ाई करते हुए 60 साल वाली सरकार से भी पूछा था और खेती करते हुए ढाई साल वाली से भी पूछने का हक़ रखता हूँ? क्योंकि ये हक़ मुझे दिया मेरे मतदान के अधिकार ने।

साथियों जब देश में कांग्रेस की सरकार थी तो किसानों के लिए एक आयोग बैठा -- स्वामीनाथ आयोग। इस आयोग को काम दिया गया कि किसान की फसल का दाम निर्धारण कैसे हो? आयोग ने अपना काम किया और रिपोर्ट सौंपी कि किसान को उसकी लागत पर 50% बोनस देकर उसकी मेहनत को सम्मान मिलना चाहिए। अन्यथा किसान नुकसान में हैं और इसी कारण आत्महत्या कर रहे हैं।

उस समय की कांग्रेस की केंद्रीय सरकार ने इस रिपोर्ट को लागू करने में आना-कानी की तो तत्कालिक विपक्ष एनडीए (भाजपा सम्मिलित) ने हर मोर्चे पर स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट लागू करने को प्रदर्शन किए संसद में हंगामा किया हरियाणा बीजेपी ने धरने भी दिए, खूब हंगामा काटा। फिर चुनाव आया। बीजेपी ने वादा किया कि किसान बीजेपी को वोट दें तो हम स्वामीनाथन आयोग के सुझावों को लागू करेंगे।

मैंने और जाने कितने किसान भाइयों ने अपना वोट इसी मुद्दे पर बीजेपी को दिया, बीजेपी सत्ता में आई और रिपोर्ट पर कार्यवाही को टालने लगी। हमने अपने सांसद से पूछा तो कहा गया के सब्र रखिये हो जायेगा। पता नही आपने अपने सांसद से पूछा की नहीं?

अब हुआ ये है कि हरियाणा में एक सज्जन ने आरटीआई के माध्यम से हरियाणा राज्य सरकार और केंद्र सरकार से पूछा कि रिपोर्ट का स्टेटस क्या है अब तक इस दिशा में क्या काम हुआ?

आरटीआई का जो जवाब आया वो चौंकाने वाला था। हरियाणा सरकार का कहना है कि हमें तो रिपोर्ट ही नहीं मिली।

लगातार आपने हंगामे किये जब आप विपक्ष में थे खूब खड़दू काटा, और जब लोगों ने सत्ता दी तो कहते हो रिपोर्ट ही नहीँ मिली? इसी आरटीआई पर केंद्र सरकार का जवाब आया कि इस रिपोर्ट को लागू करने से मंडी व्यवस्था खराब हो जायेगी इसलिए सरकार ने निर्णय लिया के इसे लागू नहीं किया जायेगा।

जब संसद में हंगामा कर रहे थे धरने दे रहे थे तब मंडी व्यवस्था ठीक रहती? किसानों के साथ सरासर धोखा है ये। न तो कांग्रेस की सरकार ने ये रिपोर्ट लागू की न ही बीजेपी की सरकार इसे लागू कर रही है, फिर झूठे वादे क्यों किये गए?

भाइयों मैं तो आहत हूँ पता नहीं आप पढ़ने वाले इसे पढ़ते हुए क्या सोच रहे हैं?

शायद आपको कोई फर्क न पड़े पर मुझे तो फर्क पड़ेगा। अगर आपको लगता हो कि धोखा हुआ तो मुझे अपना नेता मत बनाओ, अपने नेता से जाकर पूछो। अब आप थोड़ा खड़दू उतारो थोड़े हंगामे करो थोड़े धरने दो।

और अगर आपको फर्क नहीं पड़ता तो आराम से चादर तान कर सो जाओ। अगर फर्क पड़ता हो तो अभी राज्य चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी वालों से पूछना कि रिपोर्ट लागू क्यों नही की? दोनों ही पार्टी को उचित समय मिला इसे लागू करने को तो क्यों नहीं की?

झूठे वादे क्यों?

अन्नदाता से धोखा क्यों?

गैर राजनीतिक ग्राम समितियां बनाइये, सवाल करिये लिखित में जवाब लीजिये। अगर जवाबपूर्ति न हो तो जीना मुहाल करिये इन राजनीती के ठेकेदारों का। उम्मीद है ऐसा करने से लाभ हो, वरना तो असहयोग आंदोलन करना होगा। किसी एक गांधी के पीछे नहीं, सबको गांधी बनना होगा।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

       

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