लोक संगीत के एक युग का अंत

अगर आप लोक संगीत के चाहने वाले हैं तो आपने प्रोफेसर कमला श्रीवास्तव को सुना होगा; उन्होंने न जाने कितने लोगों को संगीत की शिक्षा दी और गीत भी लिखे, लेकिन आज वो हमारे बीच में नहीं हैं। लेकिन उनका संगीत हमेशा साथ रहेगा।

Update: 2024-02-06 13:51 GMT

लखनऊ का हर एक लोक गायक उन्हें कमला दीदी के नाम से ही जानता था, लोक गायिकी और शास्त्रीय संगीत के ज़रिए कई दशकों तक अवध में राज करने वाली कमला श्रीवास्तव हमेशा के लिए मौन गईं, लेकिन उनके लिखे और गाए लोक गीतों से नई पीढ़ी बहुत कुछ सीख सकती है।

93 साल की कमला श्रीवास्तव ने सोहर, भजन और दूसरे लोकगीतों की कई किताबें लिखी हैं। उनसे पहली मुलाकात जुलाई 2022 में हुई थी, जब पहली बार उनके पास फोन किया और कहा कि आपके कुछ गीत रिकॉर्ड करने हैं तो तुरंत तैयार हो गईं।

तीन घंटों की मुलाकात में उन्होंने चार गीत रिकॉर्ड किए, लगा ही नहीं था कि उनसे पहली बार मिले हैं। 91 साल की उम्र में भी उन्हें देखकर 16 साल के गायक पीछे रहे जाएँगे, खुद ही हारमोनियम बजाती रहीं और गीत भी गाती रहीं।

लखनऊ में आयोजित कोई भी लोक कार्यक्रम उनके बिना पूरा नहीं होता, उनसे सीखकर आज कई मशहूर गायक बन गए हैं। जहाँ भी जातीं, उनसे मनरजना गीत ज़रूर गाने को कहा जाता, उस दिन भी उन्होंने गाँव कनेक्शन के लिए वो गीत रिकॉर्ड किया। उन्हें पूरी तरह तैयार होकर गीत गाना पसंद था, उस दिन भी नीली साड़ी पहनी थीं। उन्होंने पूछा, "अच्छी लग रही हूँ न?" हमारा जवाब था बहुत सुंदर लग रहीं हैं आप। तब वो धीरे से मुस्कुरा दीं।

1 सितंबर 1933 को जन्मी कमला श्रीवास्तव ने बेटियों के लिए सोहर लिखने की शुरुआत की थी, उस दौर में जब सिर्फ बेटों के पैदा होने पर सोहर गाया जाता उन्होंने कई गीत लिखे।


बेटियों के लिए सोहर लिखने पर उन्होंने गाँव कनेक्शन से हुए अपने इंटरव्यू में बताया था, "अक्सर गाँवों या शहरों में बेटों के जन्म पर ही सोहर गाए जाते थे; तब मेरे मन में ख्याल आया कि बेटियों के लिए भी सोहर लिखे जाने चाहिए, इसके बाद जब इसको काफी वाह वाही मिली तो मैंने बेटियों के लिए कई गीत रच डाले।"

भातखंडे संगीत महाविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर कमला श्रीवास्तव ने सात साल की उम्र में गाना शुरु कर दिया था। लोकगीत का माहौल शुरु से ही उनके घर में था। उन्होंने बताया था, "हमारा परिवार भी बड़ा था तो अक्सर किसी न किसी के यहाँ मुंडन - छेदन या विवाह जैसे कार्यक्रम लगे रहते थे; वहाँ गौनहरिया आती थीं जिन्हें गाना गाने वाली कहा जाता था, उन्हें गाते देखकर मैं भी गाने लगी लेकिन बोल बिगाड़कर; फिर बड़े-बुजुर्गों ने जब लोकगीतों को बिगाड़कर गाने पर डांटा तबसे मैं इसकी पूजा करने लगी।"

कमला लोकगीतों से शुरुआत करते हुए शास्त्रीय संगीत की ओर रुख करती गईं। उन्होंने बताया कि हाईस्कूल के बाद इंटर और ग्रेजुएशन तक मैंने शास्त्रीय संगीत सीखा। इसके बाद मैं जियोग्राफी की लेक्चरर बन गई। इस दौरान शास्त्रीय संगीत से 12 साल तक का लंबा गैप हो गया। 12 साल बाद मैंने भातखंडे संगीत महाविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में जॉइन किया।

कमला श्रीवास्तव ने दस वर्षों तक श्रीलंका में रहकर भारतीय शास्त्रीय का काफी प्रमोशन किया। वह बताती हैं कि जब मैं भातखंडे संगीत विद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर थी तो 10 साल तक बराबर श्रीलंका में शास्त्रीय संगीत का इम्तिहान लेने जाती थी। वहाँ के लोग भारतीय शास्त्रीय संगीत से बहुत लगाव रखते हैं। वहाँ के मंचों और रेडियो पर मैंने अपने लोकगीत सुनाए और उनके भी सुने।

उन्होंने गाँव रेडियो के लिए अपने रिकॉर्ड किए हुए गीत और कविताएँ भी दी, जिन्हें आप गाँव कनेक्शन की वेबसाइट पर सुन सकते हैं। उस दिन हम उनसे वादा करके आए थे कि जल्दी आकर आपके और भी गीत रिकॉर्ड करेंगे, लेकिन वो दिन अब शायद कभी नहीं आएगा।

कमला दीदी ने पहले से ही अपनी देह दान किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज कर दी थी। वो आज नहीं हैं, लेकिन अपने पीछे अपनी आवाज, संगीत, समर्पण छोड़ कर गई हैं। उनके कई शिष्य, जिनके लिए वो एक प्रिय गुरु थीं, आगे वो उनकी विरासत को आगे लेकर जाएँगे।

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