कमजोर इंटरनेट और अधूरा सिलेबस, कैसे ऑनलाइन परीक्षा देंगे डीयू के छात्र?

दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकतर छात्रों का कहना है कि वे मिड टर्म और होली की छुट्टियों में घर आ गए थे और फिर लॉकडाउन के कारण गांवों में ही फंसे रह गए। अब खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी और अधूरे सिलेबस के साथ लगभग 2.5 लाख छात्रों को ऑनलाइन परीक्षा देनी है, जो उनके करियर का भविष्य तय करेगी।

Update: 2020-05-26 13:55 GMT

जम्मू कश्मीर के रामबन जिले के रहने वाले जफर सुल्तान दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में बी.ए. (प्रोग्राम) तृतीय वर्ष के छात्र हैं। 9 मार्च 2020 को जब विश्वविद्यालय में मिड सेमेस्टर ब्रेक हुआ, तो वह अपने घर चले गए थे। इसके बाद होली की छुट्टियां हुईं और फिर देश में लॉकडाउन लग गया और वह वापिस दिल्ली नहीं लौट पाए। अब जफर को चिंता सता रही है कि वह विश्वविद्यालय द्वारा घोषित ऑनलाइन परीक्षा कैसे देंगे क्योंकि ना ही उनके पास परीक्षा देने के लिए पर्याप्त पाठ्य सामग्री उपलब्ध है और ना ही जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट ठीक से चलता है।

कुछ इसी तरह का हाल बिहार के पटना जिले की रहने वाली विभा कुमारी का है, जो दिल्ली विश्वविद्यालय की मिरांडा हाउस कॉलेज में बी.ए. तृतीय वर्ष की छात्रा हैं। वह भी मिड टर्म ब्रेक के दौरान घर चली गई थीं। गांव में बेकार इंटरनेट कनेक्टिविटी, पाठ्यक्रम सामग्री की कमी के साथ-साथ उनके लिए एक और चुनौती यह भी है कि वह एक दृष्टिबाधित छात्रा हैं, जिनके लिए ऑनलाइन परीक्षा किसी बड़े मुसीबत से कम नहीं।

कोरोना महामारी और देश में लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बीच देश के सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में से एक दिल्ली विश्वविद्यालय ने ग्रेजुएशन और पोस्टग्रेजुएशन के अंतिम वर्ष के लगभग 2 लाख 50 हजार छात्रों के लिए परीक्षा कार्यक्रम की घोषणा की। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार कोरोना महमारी के कारण परीक्षार्थियों को यह परीक्षा ऑनलाइन माध्यम से देनी होगी, जिसे छात्र अपने घर बैठे भी दे सकते हैं। हालांकि विश्वविद्यालय के छात्र, शिक्षक, विभाग, कॉलेज, छात्रसंघ और शिक्षक संघ इस ऑनलाइन परीक्षा का व्यापक विरोध कर रहे हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय की 13 और 14 मई को जारी विस्तृत गाइडलाइन के अनुसार, "कोरोना महामारी को देखते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय इस साल के अंतिम सेमेस्टर और अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को ऑनलाइन ओपन बुक माध्यम से कराएगा, इसमें ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन, स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (SOL) और नॉन कॉलेजिएट वीमन एजुकेशन बोर्ड (NCWEB) के अलावा बैक और इंप्रूवमेंट की परीक्षाएं भी शामिल हैं। सभी परीक्षार्थियों को इसके लिए तीन घंटे दिए जाएंगे, जिसमें से दो घंटे में उन्हें जवाब लिखना होगा और बाकी के बचे एक घंटे में उन्हें पेपर डाउनलोडिंग, स्कैनिंग और अपलोडिंग का काम करना होगा।"


विश्वविद्यालय प्रशासन ने बताया कि ये परीक्षाएं एक जुलाई से आयोजित की जाएंगी, जिसके लिए विभागों से सभी कोर्सेज के लिए कम से कम तीन पेपर सेट तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं। इस परीक्षा के लिए छात्रों को प्रश्न पत्र डाउनलोड कर दो घंटे के भीतर उसका जवाब लिखना होगा और बाकि के बचे एक घंटे में उसे स्कैन कर उसे विश्वविद्यालय के परीक्षा पोर्टल पर अपलोड करना होगा। वहीं ओपन बुक का मतलब यह है कि प्रश्नों का जवाब देते वक्त विद्यार्थी किताबों, नोट्स और अन्य पाठ्य सामग्रियों का सहारा भी ले सकते हैं।

छात्रों का कहना है कि ओपन बुक के नाम पर विश्विद्यालय विद्यार्थियों के साथ छलावा कर रही है क्योंकि अधिकांश विद्यार्थी ऐसे हैं, जिनके पास पाठ्य सामग्री उपलब्ध ही नहीं हैं। जैसा कि उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के रिखौना गांव के अर्पित अवस्थी बताते हैं। अर्पित अवस्थी विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में फिजिक्स ऑनर्स के छात्र हैं।

गांव कनेक्शन से फोन पर बातचीत में वह बताते हैं, "जब लॉकडाउन की सुगबुगाहट होने लगी थी तब मैं जल्दी से दो कपड़े पैक कर अपने गांव चला आया। किताबें, नोट्स, लैपटॉप सब दिल्ली में हैं और हम से ऑनलाइन परीक्षा देने की बात की जा रही है। यह परीक्षा हमारे लिए बहुत जरूरी है क्योंकि डीयू सहित दूसरे विश्वविद्यालयों में प्रवेश और दूसरे प्रतियोगी परीक्षाओं में इस परीक्षा के अंकों का बहुत महत्व होता है। अगर हमारी परीक्षाएं बेकार हुई तो यह हमारे करियर और भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा और डीयू में एडमिशन लेना मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती साबित होगी।" अर्पित की बातों में निराशा साफ झलकती है।

अर्पित बताते हैं कि ना सिर्फ पाठ्य सामग्री, इंटरनेट कनेक्टिविटी भी एक बहुत बड़ा मुद्दा है, जिसे डीयू प्रशासन ने ऑनलाइन परीक्षा का निर्णय लेने से पहले नजरंदाज किया। वह कहते हैं, "मेरे गांव में बहुत ही मुश्किल से 4जी इंटरनेट आता है, इसलिए मैं एक दिन भी ऑनलाइन क्लास नहीं अटेंड कर पाया। रात में दो बजे तक जाग-जागकर मुझे क्लास ग्रुप पर आए रीडिंग मैटेरियल को डाउनलोड करना पड़ता है, क्योंकि रात में ही इंटरनेट की स्पीड ठीक-ठाक आती है। अब आप ही सोचिए जब उत्तर प्रदेश में ऐसा हाल है, तो देश के पिछड़े राज्यों बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, पूर्वोत्तर राज्य, सिर्फ 2जी इंटरनेट के सहारे चल रहे जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख, अम्फान तूफान से प्रभावित ओडिशा और पश्चिम बंगाल और दक्षिण के सुदूर राज्यों के छात्रों का क्या हाल होगा?"

कोरोना माहामरी और लॉकडाउन के कारण विश्वविद्यालय बंद होने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने जूम, स्काइप, गूगल क्लासरूम और अन्य माध्यमों से शिक्षकों को ऑनलाइन क्लास लेने को कहा था। लेकिन कनेक्टिविटी और अन्य कारणों की वजह से विश्वविद्यालय का यह प्रयोग असफल रहा और आधे से अधिक विद्यार्थी इन ऑनलाइन कक्षाओं को लेने में असफल रहे।

छात्र संगछन ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (AISA) ने DU के लगभग 1500 स्टूडेंट्स पर एक टेलिफोनिक सर्वे किया, जिसमें 72 प्रतिशत विद्यार्थियों ने बताया कि खराब नेटवर्क की वजह से वे ऑनलाइन क्लासेज नहीं अटेंड कर पा रहे हैं। इसके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए बने ऑनलाइन मीडिया पोर्टल 'डीयू एक्सप्रेस' ने भी एक सर्वे किया, जिसमें 75.6% छात्रों ने कहा कि वे ऑनलाइन क्लास नहीं अटेंड कर पा रहे हैं और ऑनलाइन परीक्षा के खिलाफ लगभग 85.5% अभ्यर्थी हैं। विश्वविद्यालय के 12,214 छात्रों पर किए गए इस सर्वे में यह भी बताया गया कि 92.5% छात्र वर्तमान समय में दिल्ली से दूर अपने घरों में हैं।

गांव कनेक्शन ने भी जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक और राजस्थान से लेकर असम तक देश के अलग-अलग राज्यों से दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों और पढ़ाने वाले अध्यापकों से फोन और टेक्स्ट मैसेज के जरिये बात की और पाया कि अधिकांश लोग इस ऑनलाइन परीक्षा के पक्ष में नहीं है।

साभार- डीयू एक्सप्रेस

राजस्थान के भरतपुर जिले के दीपक टेंगुरिया सवाल पूछते हैं कि परीक्षा या कोई अन्य फॉर्म भरने के दौरान ही विश्वविद्यालय की वेबसाइट हमेशा क्रैश कर जाती है, तो क्या गारंटी है कि जब एक साथ लाखों छात्र अपना आंसर शीट वेबसाइट पर अपलोड करेंगे तो वेबसाइट क्रैश नहीं करेगी?

"इसके अलावा कनेक्टिविटी भी एक बड़ा मसला है। क्या विश्वविद्यालय यह मान के चल रही है कि विश्वविद्यालय के सभी छात्रों के पास एक स्थिर इंटरनेट कनेक्शन और परीक्षा देने के लिए एक उपयुक्त और शांत कमरा उपलब्ध है? अगर इन सब सवालों का जवाब 'नहीं' है, तो फिर इस ऑनलाइन परीक्षा का भी कोई मतलब नहीं बनता," दीपक आगे कहते हैं। वह आत्माराम सनातन धर्म (एआरएसडी) कॉलेज में राजनीति विज्ञान तृतीय वर्ष के छात्र हैं।

दीपक ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान विश्वविद्यालय के निर्देशों के अनुसार टीचर्स ने जूम या स्काइप के जरिये ऑनलाइन क्लासेज ली थी लेकिन बेहतर कनेक्टिविटी नहीं होने के कारण इन कक्षाओं में उपस्थिति 30 से 40 प्रतिशत भी नहीं रही। जो लोग उपस्थित भी हो रहे थे, उन्हें भी बफरिंग के कारण वीडियो स्पष्ट रूप से सुनाई और दिखाई नहीं पड़ रहा था। इस वजह से छात्रों को कई टॉपिक समझने में भी काफी दिक्कत आ रही थी। अब बताइए ऐसे हालात में ऑनलाइन परीक्षा कराना कहां तक उचित है? दीपक की बातों में एक अबूझ सवाल रहता है।

दीपक की बातों की पुष्टि कुछ सर्वे और विश्वविद्यालय के अध्यापक भी करते हैं। डीयू एक्सप्रेस द्वारा की गई सर्वे के अनुसार 64.3 फीसदी छात्रों ने कहा कि उनके पास स्थायी इंटरनेट कनेक्शन नहीं है, जिसके कारण 53.8 फीसदी छात्र इन ऑनलाइन क्लासेज को अटेंड नहीं कर सकें। वहीं 19.7 फीसदी छात्र ऐसे भी रहें जिन्होंने बताया कि उनके अध्यापक ऑनलाइन क्लास ले ही नहीं रहे, जबकि 46 फीसदी छात्रों ने कहा कि सभी अध्यापक ऑनलाइन क्लास नहीं ले रहे, बस कुछ ही विषयों के अध्यापक सही तरह से क्लास ले रहे। हालांकि 34.3 फीसदी छात्रों ने माना कि उनकी ऑनलाइन क्लास हुई है लेकिन वह पर्याप्त नहीं था। कई चीजें ऑनलाइन क्लासेज में समझ ही नहीं आईं।

साभार- डीयू एक्सप्रेस


इस ऑनलाइन ओपन बुक परीक्षा का विरोध सिर्फ छात्र ही नहीं बल्कि विश्वविद्यालय के शिक्षक भी कर रहे हैं। शिक्षकों का कहना है कि ऑनलाइन परीक्षा की धारणा दिल्ली विश्वविद्यालय की मूल समावेशी आत्मा के खिलाफ है, जिसमें देश भर के अलग-अलग क्षेत्रों और तबकों से आएं बच्चों के लिए एक समान शिक्षा की बात कही गई है। ऑनलाइन परीक्षा से उन्हीं बच्चों को लाभ होगा, जिनके पास तकनीक का लाभ है, जो शहरों और महानगरों में रहते हैं और जिनके पास रीडिंग मैटेरियल सहित पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं। लेकिन वे बच्चे कहीं पीछे छूट जाएंगे जो देश के पिछड़े इलाकों और तबकों से आकर दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई करते हैं।

मोतीलाल नेहरू कॉलेज में इतिहास विभाग में प्रोफेसर प्रेम कुमार कहते हैं, "ऑनलाइन क्लासेज विद्यार्थियों के लिए सहायक हो सकती हैं, लेकिन यह क्लासरूम का विकल्प नहीं हो सकती। यही चीज ऑनलाइन परीक्षा के लिए भी लागू होती है। परीक्षा का मतलब होता है कि आपने जो साल भर सीखा है उसका मूल्यांकन करना लेकिन ओपन बुक ऑनलाइन परीक्षा में विद्यार्थियों का गुणवत्तापूर्ण मूल्यांकन संभव ही नहीं है।"

प्रोफेसर प्रेम कुमार ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन क्लास लेने में उन्हें कई तरह की तकनीकी दिक्कतें आईं। विद्यार्थियों की उपस्थिति भी 30 प्रतिशत से नीचे रही। उन्होंने किसी तरह सिलेबस तो पूरा कर दिया लेकिन यह भी स्वीकार किया कि शिक्षण की जो गुणवत्ता डायरेक्ट क्लासरूम में होती है, उसे वह चाहकर भी ऑनलाइन क्लास में नहीं दे सकें।

दृष्टिबाधित और अन्य दिव्यांग छात्र कैसे देंगे ऑनलाइन परीक्षा?

दिल्ली विश्वविद्यालय में एक बड़ी संख्या दृष्टिबाधित और अन्य दिव्यांग छात्रों की है। ऑनलाइन परीक्षा होने में ऐसे विद्यार्थियों की परेशानियां सामान्य छात्रों से दोगुनी हो जाती है। आम दिनों में दृष्टिबाधित छात्र एक सहायक लेखक की मदद से परीक्षा देते हैं। दृष्टिबाधित छात्र बोलते हैं और सहायक लेखक उसे उत्तर पुस्तिका पर लिखता है। इसके लिए उन्हें अतिरिक्त समय भी दिया जाता है। ये सहायक लेखक आमतौर पर विश्वविद्यालय के छात्र, दूसरे विभागों के उनके सहपाठी या जूनियर होते हैं, जिन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय के परीक्षा पैटर्न और पाठ्यक्रम की ठीक-ठाक समझ होती है।

लेकिन कोरोना कॉल में, जब अधिकतर छात्र अपने घरों में हैं, दृष्टिबाधित छात्रों के लिए एक सहायक लेखक का प्रबंध करना बहुत ही मुश्किल है। खासकर गांवों में रह रहे छात्रों के लिए यह और भी ज्यादा मुश्किल हो जाता है क्योंकि वहां पर दिव्यांग लोगों के अधिकारों के लिए जागरूक लोग बहुत ही कम हैं। जैसा कि बिहार के पटना जिले की विभा कुमारी हमसे बताती हैं, "अगर ऑनलाइन परीक्षा होती है तो मेरे लिए इसे बहुत ही मुश्किल होगा। गांव में राईटर या स्क्राइबर ढूंढ़ना टेढ़ी खीर है।"

कुछ ऐसी ही बात मोहित पांडेय कहते हैं, जो सेंट स्टीफेंस कॉलेज में संस्कृत ऑनर्स (तृतीय वर्ष) के छात्र हैं। वह कहते हैं कि मेरे और कक्षा के अन्य साथियों के लिए गांवों में राईटर ढूंढ़ना और भी मुश्किल है, क्योंकि कोई हिंदी या अंग्रेजी लिख भी लेगा, लेकिन संस्कृत लिखने वाले आम तौर पर किसी गांव में बहुत कम ही मिलेंगे।


दृष्टिबाधित और अन्य दिव्यांग छात्रों के लिए एक और बड़ी समस्या उनके लिए उपलब्ध पाठ्य सामग्री की है। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर जगदीश चन्दर बताते हैं कि दिव्यांग छात्रों के लिए तीन तरीके से पाठ्य सामग्री उपलब्ध होती है, जिसमें ब्रेल लिपि बुक, ऑडियो बुक और ई-बुक (इलेक्ट्रॉनिक बुक) प्रमुख है, लेकिन ऑनलाइन क्लास के माध्यम से शिक्षक विद्यार्थियों को जो रीडिंग मैटेरियल उपलब्ध करा रहे हैं वह दिव्यांग छात्रों के लिए उपयुक्त नहीं हैं।

वह कहते हैं, "शिक्षकों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही पाठ्य सामग्री को लॉकडाउन के समय में ऑडियो या ई-बुक में बदलवाना भी काफी मुश्किल कार्य है, क्योंकि दृष्टि बाधित छात्र ये सब कॉलेज की सोसायटीज और वालंटियर्स की मदद से करते थे। हिंदी माध्यम के दृष्टिबाधित छात्रों के लिए यह मुश्किल और भी बढ़ जाती है क्योंकि हिंदी माध्यम में पाठ्य सामग्री पहले से ही कम होती है और बेसिक सॉफ्टवेयर की मदद से इसे ऑडियो या ई-बुक में भी नहीं बदला जा सकता।"

जगदीश चन्दर और उनके साथी प्रोफेसर्स ने दृष्टिबाधित छात्रों की इन समस्याओं को लेकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र भी लिखा है, लेकिन अभी तक उन्हें इसका कोई जवाब नहीं मिला है। वहीं नेशनल फेडरेशन ऑफ ब्लाइंड (NFB) ने दृष्टिबाधित छात्रों के लिए ऑनलाइन परीक्षा की समस्याओं को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र भी लिखा है, लेकिन इसका भी अभी तक उन्हें कोई जवाब नहीं मिला है, जैसा कि एनएफबी के महासचिव और दिल्ली हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील एस.के. रूंगटा हमें बताते हैं।

उधर दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों के मंच एकेडमिक्स फॉर एक्शन एंड डेवलपमेंट (एएडी) ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर ऑनलाइन ओपन बुक परीक्षा का विरोध किया है। एएडी के इस पत्र को दिल्ली विश्वविद्यालय के 29 विभागाध्यक्षों का समर्थन मिला है, जिन्होंने ऑनलाइन परीक्षा को एकतरफा और मनमानी पूर्ण फैसला बताया है।

इस पत्र में कहा गया है, "दूर दराज के गरीब, दलित, आदिवासी तथा पिछड़ी जाति के छात्रों के लिए ऑनलाइन परीक्षा देना मुश्किल होगा क्योंकि उनके पास ऑनलाइन परीक्षा देने के साधन उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा प्रशासन ने दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (DUTA) और दिल्ली विश्विविद्यालय छात्रसंघ (DUSU) से परामर्श लिए बिना यह फैसला अचानक से ले लिया।"

दिल्ली विश्विविद्यालय छात्रसंघ (DUSU) के अध्यक्ष अक्षित दहिया का कहना है कि विश्वविद्यालय को सबसे महत्वपूर्ण हितधारकों यानी छात्रों की हितों को प्राथमिकता देना चाहिए और उनकी समस्याओं को गंभीरता के साथ समझा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि छात्रों को परीक्षा के मोड के संबंध में अधिक से अधिक विकल्प हो, ताकि वे अपने सुविधानुसार विकल्पों को चुन सकें। 

डूटा के संयुक्त सचिव और एआरएसडी कॉलेज में प्रोफेसर डा. प्रेम कुमार गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "पता नहीं विश्वविद्यालय को परीक्षा कराने की इतनी जल्दी क्यों हैं? अधिकतर विश्वविद्यालयों में अभी परीक्षा को लेकर कोई बात नहीं की जा रही और अगर हो भी रहा है तो पिछले सेमेस्टर के अंकों और इंटरनल के आधार पर विद्यार्थियों को प्रमोशन दिया जा रहा है। लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन है कि मानने को तैयार नहीं।"

डा. प्रेम कुमार संकेत देते हैं कि विश्वविद्यालय ऑनलाइन परीक्षा कराकर शिक्षा के प्राइवेटाइजेशन की तरफ भी बढ़ना चाहती है। वह कहते हैं, "सरकार और विश्वविद्यालय यह चाहते हैं कि सब कुछ ऑनलाइन और ऑटोमेटेड हो जाए ताकि शिक्षा और उससे संबंधित संसाधनों पर कम से कम खर्च हो। लेकिन ऐसी शिक्षा में क्या गुणवत्ता भी होगी, सरकार को इस बिंदु पर भी गंभीरता से सोचना चाहिए।"

हमने इस संबंध में दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन संपर्क नहीं हो सका। संपर्क होने और जवाब मिलने पर स्टोरी अपडेट की जाएगी। 

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