बनारस: कबाड़ के भाव बिक रहीं बनारसी साड़ियों में डिजाइन बनाने वाली मशीनें

लॉकडाउन का असर बनारसी साड़ियों पर तो पड़ा ही है, उससे जुड़े कारोबार पर भी व्यापक असर पड़ा है। बनारसी साड़ियों में डिजाइनिंग करने वालीं एम्ब्रायडरी मशीनें जो लाखों में रुपए की आती हैं, अब कबाड़ के भाव में बिक रही हैं।

Update: 2020-07-26 04:15 GMT

वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नौ जुलाई 2020 को जब अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के प्रतिनिधियों से काशी को एक्सपोर्ट हब के रूप में विकसित करने की बात कह रहे थे, उसी समय सुंदरपुर के रहने वाले इरफान खान लोन पर ली हुई अपनी एम्ब्रायडरी मशीन कटवा (बेच) रहे थे।

इरफान (34) कहते हैं, "लॉकडाउन के बाद हम खाने को मोहताज हो गये। लोन लेकर चार साल पहले आठ लाख रुपए खर्च करके कंम्यूटर मशीन लगवाया था। कुछ पैसे ही और भरने थे, तब से लॉकडाउन आ गया। पैसों की इतनी जरूरत आ गयी कि मशीन 35 हजार रुपए में कबाड़ी से कटवाना (बेचना) पड़ा। परिवार चलाने के लिए पैसे चाहिये थे तो क्या करता।"

"अब दूसरे के यहां के काम तलाश रहा हूं। कोई भी काम करने को तैयार हूं। स्थिति ऐसी हो गयी है पैरों में चप्पल नहीं है, लेकिन खरीदने के लिए सोचना पड़ रहा है।" वे आगे कहते हैं।

बनारस के नगवां, सुंदरपुर के क्षेत्र में एम्ब्रायडरी (कढ़ाई, डिजाइनिंग) का काम बड़े पैमाने पर होता है। कंप्यूटर से चलने वालीं एम्ब्रायडरी मशीनों से बनारसी साड़ी और सूट में डिजाइनिंग का काम होता है। असंगठित क्षेत्र के इस काम से हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ था, लेकिन लॉकडाउन की वजह से बंद है।

हालात ऐसे हो गये हैं कि सात लाख, आठ लाख रुपए में आने वाली मशीनों कबाड़ के भाव में बिक रही हैं। पेट पालने के लिए मजबूरी में उन्हें बेचना पड़ रहा है।

शमशाद अहमद (32) बीटेक की पढ़ाई के बाद वर्ष 2017 में एम्ब्रायडरी काम शुरू करते हैं। इसके लिए उन्होंने बैंक से लोन लेकर दो मशीनें आठ-आठ लाख रुपए में खरीदा, लेकिन उन्हें अब पछतावा हो रहा है।

यह भी पढ़ें- ग्राउंड रिपोर्ट: बनारसी साड़ी के बुनकर पेट पालने के लिए घर के गहने बेच रहे, किसी ने लूम बेचा तो किसी ने लिया कर्ज

वे कहते हैं, "पहले जीएसटी ने हमारा बहुत नुकसान किया और अब लॉकडाउन ने कमर तोड़ दी। कमरे का किराया भी दे रहा हूं। बिजली का बिल ऊपर से आ रहा है। हर महीने मेरा ही कम से 35 से 40 हजार रुपए का नुकसान हो रहा है। वर्कर जो काम कर रहे थे वे सभी बेरोजगार हो गये हैं।"

"लॉकडाउन में छूट मिल तो गई लेकिन हमारे पास कोई काम ही नहीं है। कोई ऑर्डर आयेगा तब तो काम करेंगे। सरकार से तरफ से कहीं कोई छूट नहीं मिल रही है। बैंक से आठ लाख रुपए का कर्ज लिया था। दो महीने ईएमआई में छूट मिली लेकिन उस पर ब्याज भी बढ़ा दिया। अब बैंक वाले कह रहे कि और लोन लीजिये, काम ठीक करने के लिए, हम लोन ले तो लेंगे, लेकिन उसे भरेंगे कैसे जब काम ही नहीं चलेगा।" शमशाद कहते हैं।

एम्ब्रायडरी मशीनें बंद होने से हजारों लोग बेरोजगार हो गये हैं।

"मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद पहले नौकरी की, फिर सोचा कि क्यों ना अपना कुछ काम शुरू किया जाये, यही हाल होता है आपना काम करने वाले लोगों का। सरकार ने पैकेज का ऐलान किया है, हमें तो उसमें से एक रुपया नहीं मिला।" वे आगे कहते हैं।

शमशाद दो मशीनों के मालिक हैं। उनके यहां 10 से ज्यादा से ऑपरेटर काम करते हैं जो कपड़ों में डिजाइनिंग का ध्यान

रखते हैं। उनकी स्थिति भी सही नहीं है। मनीश कुमार शर्मा एम्ब्रायडरी मशीन चलाते थे, लेकिन चार महीने से उनके पास कोई काम नहीं है।

वे बताते हैं, "पूरे लॉकडाउन में काम मिला ही नहीं। अभी कुछ काम शुरू भी हुआ तो रोज यही चार से पांच घंटे काम मिल रहा है। पहले हम 10 से 12 घंटे मशीनें चलाते थे। राज 500, 600 रुपए की कमाई हो जाती थी। अब तो यह हाल है मुश्किल से 100, 150 रुपए की कमाई हो पा रही है। अभी तो हमारी स्थिति बहुत गड़बड़ है। आगे क्या होगा भगवान ही जानें।"

नगवां, सुंदरपुर के क्षेत्र में ही एक हजार से ज्यादा एम्ब्रायडरी मशीनें हैं जो अभी खामोश हैं। लॉकडाउन के कारण बनारसी साड़ियों का कारोबार भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है साथ ही उससे जुड़े कारोबार भी प्रभावित हुए हैं। एम्ब्रायडरी का काम करने वाले लोगों की गिनती बुनकरों में नहीं होती। शायद इसलिए भी इन्हें सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता।

यह भी पढ़ें- बनारसी साड़ी के बुनकर ने कहा- 'पहले की कमाई से कम से कम जी खा लेते थे, लॉकडाउन ने वह भी बंद करा दिया'

एम्ब्रायडरी मशीन चलवाने वाले समीर भी यही कहते हैं। वे कहते हैं, "मेरे घर के 18 लोग इसी काम में लगे हुए हैं। सबकी रोजी-रोटी इसी से चलती थी, लेकिन अभी सब बंद है। सरकार से मिली मदद की बात करें तो राशन के अलावा हमें अभी तक कुछ भी नहीं मिला है। हम लोगों की गिनती बुनकरों में नहीं होती है, इसलिए भी हमें कई सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता।"


"मैं डिजाइनर भी हूं। मेरे पास डिजाइनिंग का भी कोई काम नहीं है। पूरे बनारस में ही यही हाल है। लोगों में भविष्य को लेकर चिंता है। जिनके पास पैसे नहीं है वे अपनी मशीनें बेच रहे हैं।" समीर आगे कहते हैं।

गांव कनेक्शन की टीम जब सुंदरपुर क्षेत्र में लोगों से बात कर रही थी, उसी समय वहां मुन्ना अंसारी जो मशीनें खरीदते हैं, भी आ पहुंचे।

मुन्ना बताते हैं कि जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है, तब से अब तक कम से कम 200 एम्ब्रायडरी मशीनें खरीद चुके हैं। सात से आठ लाख रुपए की मशीनों के कितने पैसे मिलते हैं, इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, "एक मशीन की 30 से 35 हजार रुपए देता हूं। लॉकडाउन से पहले यही मशीनें सेकेंड हैंड में दो लाख रुपए तक बिक रही थीं। मैं इतने कम में इसलिए ,खरीद रहा हूं क्योंकि अभी तो मेरे पास भी खरीदार नहीं हैं। पता नहीं जब लोग आएंगे तब इसकी क्या कीमत लगेगी।"


Full View


Similar News