महाराष्ट्र: गढ़चिरौली में क्वॉरेंटाइन सेंटर में रह रहे मजदूरों को नहीं मिल रहा खाना

सरकार का दावा है कि क्वॉरेंटाइन सेंटर में भोजन पानी बिजली पेयजल सहित अन्य सुविधाएं दी जा रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है।

Update: 2020-05-24 09:36 GMT

हिमांशु सिंह, कम्युनिटी जर्नलिस्ट, 


गढ़चिरौली (महाराष्ट्र)। कोरोना महामारी संकट से आज पूरा विश्व जूझ रहा है। वायरस पर काबू पाने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन का ऐलान किया गया है। लॉकडाउन के कारण गरीब मजदूरों का रोजगार छिन गया है।

लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर उन मजदूरों पर पड़ा है, जो बेहतर जिंदगी की तलाश में अपने गांव को छोड़कर बड़े शहरों की ओर गए थे।लॉकडाउन में रोजी-रोटी की समस्या के चलते देश भर में मजदूरों का रिवर्स पलायन हो रहा है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश जैसे कई राज्यों से मजदूर पैदल ही अपने गांव आ रहे हैं।

इसी बीच महाराष्ट्र के कई मजदूर जो काम की तलाश में दूसरे राज्य गए थे, वह अपने गांव वापस आ रहे हैं। वापस आए मजदूरों की जांच कर उन्हें 14 दिन क्वॉरेंटाइन किया जा रहा है और सरकार की तरफ से 14 दिनों तक भोजन और मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवाने का दावा किया जा रहा है। लेकिन महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के कुरुड़ गांव में प्रशासन सुविधाएं देने के बजाय हाथ खींचता नजर आ रहा है।

कुरुड़ में कुल 32 मजदूर कई अन्य राज्यों में मजदूरी करने गए थे। लेकिन लॉकडाउन के कारण जैसे - तैसे अपने गांव वापस आए, सरकार के आदेशानुसार मजदूरों की जांच कर उन्हें 14 दिन के लिए क्वारंटाइन किया गया। मजदूरों की ग्राम पंचायत के समीप 2 स्कूलों में रहने की व्यवस्था की गई। 17 मजदूरों को कन्या जिला परिषद स्कूल और 15 मजदूरों को जिला परिषद स्कूल में रखा गया। 32 मजदूरों में से 14 मजदूरों ने 14 दिनों का क्वारंटाइन पूरा कर लिया है।

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जिला परिषद स्कूल के क्वॉरेंटाइन सेंटर में रह रहे मजदूर शाहीन ने बताया कि हम 15 लोग हैं, हमारे खाने की किसी भी प्रकार की व्यवस्था नहीं है। ग्राम पंचायत की ओर से 4-5 दिन तक भोजन की व्यवस्था की गई। जब खाना मिलना बंद हो गया तब मजदूरों ने ग्राम पंचायत के सरपंच से पूछा कि भोजन क्यों नहीं दिया जा रहा? इस पर सरपंच ने कहा कि तहसीलदार ने खाना देने से मना किया है। हम आप लोगों की व्यवस्था नहीं कर सकते, आप अपनी व्यवस्था स्वयं करें।

वही दूसरे क्वॉरेंटाइन सेंटर का भी वही हाल है। क्वॉरेंटाइन सेंटर में रह रहे गनवीर ने बताया वे मजदूरी करने के लिए तेलंगाना गए हुए थे। लॉकडाउन में उनका काम छिन गया। मजबूरन वापस उन्हें घर लौटना पड़ा। गनवीर आगे बताते हैं कि गांव लौटने के बाद उन्हें क्वॉरेंटाइन किया गया। जिस जगह पर क्वॉरेंटाइन किया गया, वहां खाने के लिए कुछ भी नहीं मिल रहा है। उनका कहना है कि कुछ दिनों तक भोजन दिया गया उसके बाद प्रशासन ने खाना देने से इनकार कर दिया। खाना नहीं मिलने पर जब मजदूरों ने स्थानीय प्रशासन से बातचीत की तो स्थानीय प्रशासन का कहना है कि राज्य सरकार की ओर से हमें कुछ नहीं मिला तो हम भी नहीं दे सकते। साथ ही अधिकारियों ने कहा कि आप सब अपनी खाने की व्यवस्था स्वयं करिये।

सवाल यह खड़ा होता है कि जब सरकार की तरफ से मजदूरों के लिए पैसे दिए जा रहे हैं, तो मजदूरों को सुविधाएं क्यों नहीं दी जा रही है। सुविधाओं के अभाव में मजदूर बेबस और लाचार नजर आ रहे हैं। सरकार के सारे दावे झूठे और बेबुनियाद साबित हो रहे हैं ।

कोरोना वायरस के चलते भारत सरकार में 1.7 लाख करोड़ का पैकेज दिया। जिसमें गरीबों के भोजन की व्यवस्था की गई है। भारत सरकार इस पैकेज के जरिए नागरिकों पर करीब 1200 खर्च करेगी।

सरकार का दावा है कि क्वॉरेंटाइन सेंटर में भोजन पानी बिजली पेयजल सहित अन्य सुविधाएं दी जा रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है।

कुरुड़ के सामाजिक कार्यकर्ता सुरेंद्र चंदेल ने बताया, "जब उन्होंने मजदूरों की समस्या को तहसीलदार के समक्ष रखा गया तो तहसीलदार ने जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते हुए कहा कि मजदूरों को खाना देना हमारा कार्य नहीं है। मजदूर अपना भोजन स्वयं घर से मंगवाए। स्थानीय प्रशासन का कहना है, कि हमें राज्य सरकार के द्वारा किसी भी प्रकार की सुविधा मुहैया नहीं कराई जा रही है।"

मजदूरों का कहना है कि हमें सरकार से उम्मीद थी कि सरकार हमारी मदद करेगी लेकिन सरकार हमारी मुसीबत को कम करने की बजाए हमारी मुसीबतें बढ़ा रही है। एक ओर जब सरकार दावा करती है कि क्वॉरेंटाइन में रह रहे सभी लोगों को सभी चीज मुहैया कराई जा रही है, लेकिन सारे दावे खोखले नजर आ रहे हैं।

परिजनों को संक्रमण का डर

स्थानीय प्रशासन द्वारा 18 मजदूरों को क्वारंटाइन किया गया है, लेकिन प्रशासन द्वारा उनके भोजन की व्यवस्था नहीं की जा रही है। मजदूर अपने घर से भोजन की व्यवस्था करने पर मजबूर हैं, जिससे परिवार के लोग भी लगातार मजदूरों के संपर्क में आ रहे हैं। इनके परिवार पर भी कोरोना का खतरा मंडराता नजर आ रहा है।

मजदूरों के परिजनों का कहना है कि हम काफी डरे हुए हैं, क्योंकि हम जब भोजन देने के लिए आते हैं तो यह डर बना रहता है कि अगर क्वॉरेंटाइन में रह रहे लोग कोरोना से संक्रमित पाए जाते हैं तो हम भी चपेट में आ सकते हैं। साथ ही मजदूरों का यह भी कहना है कि जब हमें किसी भी प्रकार की सुविधा मुहैया नहीं करवाई जा रही है तो हमें क्वॉरेंटाइन में क्यों रखा गया? राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन को मुद्दे को गंभीरता से लेकर मजदूरों की समस्याओं को दूर करने की आवश्यकता है, जिससे कोरोना की लड़ाई में कोई भी गरीब मजदूर कमजोर न पड़े।

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