लखनऊ हिंसा ग्राउंड रिपोर्ट: तीस सेकंड में लगी आग, आसमान में पसरा काला धुआं और पत्‍थरों से पटी सड़कें

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर हो रहे विरोध मार्च के हिंसक होने की कहानी

Update: 2019-12-20 07:33 GMT

लखनऊ। "क्‍या आराम-आराम से नारे लगा रहे हो, तेज करो नारे ... चलो आगे, दिखा दो इन #$#$#$#$ को … " एक नकाबपोश कुछ इसी अंदाज में बुलंद आवाज के साथ भीड़ की शक्‍ल लिए 15 से 25 साल के लड़कों को उकसा रहा था। उसकी इस बात को सुनकर लड़के बौखला गए और पुलिस का बैरिकेड तोड़ आगे बढ़ गए।

उनके आगे बढ़ने के बाद लखनऊ के परिवर्तन चौक पर जो हुआ, वह डराने वाला था। इन लड़कों ने सरकारी बस, मीडिया के ओबी वैन और कई मोटरसाइकलों को आग के हवाले कर दिया। साथ ही हजरत महल पार्क को कब्‍जे में लेकर वहां से करीब डेढ़ घंटे तक पथराव किया। उनके पत्‍थरों का निशाना पुलिस, मीडिया कर्मी और सामने आने वाले लोग थे। पथराव में कई पुलिस और मीडिया वाले घायल हुए हैं। 

उपद्रवियों ने आगजनी के दौरान मीडिया की ओबी वैन भी फूंक दी। 

यह बवाल लखनऊ में शुक्रवार को तब हुआ जब नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शन किया जा रहा था। यह प्रदर्शन पहले बहुत शांतिपूर्वक चल रहा था। इसमें वकीलों का एक गुट शामिल था, लखनऊ के सिविल सोसाइटी के लोग शामिल थे, छात्र शामिल थे, बुजुर्ग शामिल थे। यह सभी नारे लगा रहे थे और CAA का विरोध कर रहे थे। पुलिस ने इन्‍हें बैरिकेड लगाकर रोक रखा था।

करीब एक घंटे से ज्‍यादा चला यह विरोध पूरी तरह से शांत था। इसी बीच इस प्रदर्शन में अलग-अलग गुट बनाए कुछ नौजवान शामिल हुए। इनकी उम्र 15 से 25 साल के बीच रही होगी। इनकी अलग-अलग गुटों की अगुवाई कुछ नाकबपोश लोग कर रहे थे। पुलिस ने परिवर्तन चौक की जिस सड़क पर बैरिकेड लगाकर प्रदर्शनकारियों को रोक रखा था, यह नौजवान उसी सड़क पर पुलिस की पीठ की तरफ से तेजी से बढ़ने लगे। इस बीच तेज आवाज में नकाबपोश इन लड़कों को उकसा रहे थे। फिर यह भीड़ पुलिस को चीरती हुई बैरिकेड के पास पहुंची और बैरिकेड को गिरा दिया।

यहां पुलिस को पहली बार प्रदर्शनकारियों से चुनौती मिली। इसके बाद प्रदर्शनकारी जिसमें वकीलों का गुट, सिविल सोसाइटी और बुजुर्ग शामिल थे, वो कहीं पीछे छूट गए। अब यह भीड़ इन नौजवान लड़कों से भर गई थी। यह लड़के जो हुड़दंग करते आगे बढ़ रहे थे। कोई सेल्‍फी ले रहा था, कोई गालियां दे रहा था तो कोई चीख रहा। उनकी चीख कितनी तेज थी उसका अंदाज उनकी गलों में उभरती नसों से लगाना आसान था, क्‍योंकि उस पूरे हंगामे में उनकी दम भर आवाज भी कम मालूम देती। 

उपद्रव के बाद धुएं और पत्थरों से इलाका पट गया। 

इस हो-हल्‍ला, नारेबाजी और चीख पुकार वाले माहौल को साथ लिए यह सभी नौजवान आगे बढ़ रहे थे और पुलिस इन्‍हें रोकने की नाकाम कोशिश करती नजर आ रही थी। वजह थी कि पुलिस वाले प्रदर्शनकारियों की संख्‍या में आधे भी नहीं थे। इस हो-हल्‍ले के साथ जो भीड़ निकली वह करीब 30 सेकंड में ही उग्र हो चुकी थी। पलक झपकते ही मीडिया की ओबी वैन में आग लगा दी गई और पत्‍थरबाजी की शुरुआत हो गई।

प्रदर्शनकारी, जो अब उपद्रवियों में बदल चुके थे, उन्‍होंने हजरतमहल पार्क में अपना डेरा जमा लिया। यहीं से वे पुलिस से सीधी टक्‍कर ले रहे थे। पुलिस परिवर्तन चौक के एक कोने से आंसू गैस के गोले दागती तो दूसरी ओर से सैंकड़ों की संख्‍या में पत्‍थर बरसते। जैसे खुले तौर पर जंग चल रही थी। इस जंग का असर जमीन पर पत्‍थरों की खेप से लेकर आसमान में पसरे काले धुएं तक में दिख रहा था।

पुलिस के सामने यह भी चुनौती थी कि उपद्रवी सिर्फ हजरतमहल पार्क तक ही सीमित नहीं रहे, उनका दायरा बढ़ता गया और फिर वो परिवर्तन चौक को घेर चुके थे। कम संख्‍या में पुलिस बल को प्रदर्शनकारियों ने घेर लिया था। कभी हजरतमहल पार्क की ओर से पत्‍थरबाजी होती तो कभी दूसरी ओर से भी उपद्रवी पत्‍थराव करते। इन सब से जूझते हुए पुलिस ने करीब 20 मिनट तक उपद्रव‍ियों को उलझाए रहा, जब तक उन्‍हें बैकअप नहीं मिल गया। इसके बाद करीब डेढ़ घंटे तक आमने-सामने की जंग में उपद्रवियों को पीछे हटना पड़ा। 



पुलिस ने पूरे चौराहे पर अपना कब्‍जा जमा लिया। उपद्रव‍ियों में से बहुत भाग खड़े हुए थे। कुछ को पुलिस इधर-उधर से पकड़कर ला रही थी। इन सब के बीच परिवर्तन चौक जो शाम के वक्‍त गुलजार रहता है, वहां एक अजीब सी संजीदगी और डर का माहौल तैर रहा था। बुझी हुई गाड़ियों के धुंए से शाम का सूरज छिप रहा था और धीमे-धीमे इलाके में अंधेरा छा गया।  

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