सेल्समैन की नौकरी छोड़ शुरू की नींबू की खेती, सालाना दो से तीन लाख रुपए की हो रही कमाई
- 0.72 हेक्टेयर की जमीन ने बदल दी किसान की जिंदगी
- 15 हजार की सहकारी समिति की नौकरी छोड़ कर अपनाई खेती
- नींबू की खेती से दो से तीन लाख रुपए सालाना कमा लेते हैं अभयराज सिंह
मेहनतकश किसान को जमीन का छोटा टुकड़ा भी मिल जाये तो वह अपनी लगन और जज्बे से न केवल उपजाऊ बना सकता बल्कि जीविकोपार्जन का साधन बना लेता है। यह कहानी भी ऐसे ही एक किसान की है जो सहकारी समिति के सेल्समैन की नौकरी से तौबा कर खेतों की सोंधी मिट्टी में उतर गया। यह महक इतनी रास आई कि अब इससे दूर जाना इनके लिए नामुमकिन है। प्रकृति से प्रेम की पराकाष्ठा यह है कि लहलहाते पौधों से खुद को दूर भी नहीं कर पाते।
बात मध्यप्रदेश के सतना जिले के सात सौ की आबादी वाले गांव पोइंधा कला की है। यहां के किसान अभयराज सिंह को दुनियादारी से ज्यादा अपने खेत और लहलहाते पौधों की फ्रिक है। तीन भाइयों और एक बहन में सबसे बड़े अभयराज ने परिवार की चिंता किए बिना साल 2005 में सहकारी समिति की सरकारी नौकरी छोड़ दी। परिवार के सामने पेट पालने का संकट खड़ा हो गया लेकिन हिम्मत नहीं हारे। हिस्से में आई एक हेक्टेयर से भी कम की जमीन पर पहले कुदाली चलाई फिर हल से जोता।
इस लायक बनाया कि इसमें अनाज या फिर फलदार पौधे उग सके। तैयार खेत में किसान अभयराज सिंह ने पारंपारिक खेती की जगह फल उगाने का क्रम शुरू किया। वह बताते हैं कि सहकारी समिति में सेल्समैन की नौकरी करते समय पांच उचित मूल्य की दुकानों का जिम्मा था इसके बाद भी तनख्वाह वही 15 हजार, इससे पत्नी और दो बच्चों का गुजारा ही चल रहा था। आगे कोई भविष्य नहीं दिख रहा था सो नौकरी छोड़ दी यह सोचे बिना कि आगे क्या करूंगा पर अपने हौसलों को टूटने नहीं दिया. फिर फलों की खेती शुरू कर दी। इसी के दम पर आज अभयराज सिंह ने अपना मकान पक्का करा लिया, बिटिया की शादी कर ली।
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पहले पहले 0.72 हेक्टेयर की छोटी सी जमीन में पपीते लगाए साथ ही सब्जियां भी, पर पपीता ने दूसरे साल ही साथ छोड़ दिया इसे चुर्रा-मुर्रा रोग गया। इस रोग के कारण पत्तियां सूख गईं और फल नहीं आए। यहां हिम्मत नहीं हारी और फिर नींबू के बारे में पता चला।बात वर्ष 2008 की है जब इस खेत में नींबू के मात्र 20 पौधे लगाए थे। आज 300 पेड़ हैं। तब महज 50 रुपए ही खर्च हुए थे। नींबू का पेड़ तैयार होने में करीब 3 साल लग जाते हैं। इसलिए इंटर क्राॅपिंग के लिए गन्ना भी लगा दिया था। इससे यह फायदा हुआ कि परिवार के सामने भरण पोषण का संकट नहीं आया। जब नींबू के पेड़ तैयार हो गए तो इंटर क्राॅपिंग बंद कर दी। उन 20 पेड़ों से तब करीब 25 से 30 हजार रुपए कमाए थे।
अभयराज कहते हैं कि नींबू एक ऐसा पेड़ है जिसे बाहरी जानवरों और पक्षियों से कोई खतरा नहीं है। चिड़िया भी आकर बैठ जाती है पर कभी चोंच नहीं मारतीं। गांव के आसपास आम के बगीचे हैं जिससे बंदर भी आते हैं। इनसे पपीता, गन्ना और अन्य सब्जियों को खतरा रहता है पर नींबू को छूते तक नहीं इसलिए खेती करना आसान हुआ। आज पूरा बाग तैयार है। यहां जितने पौधे हैं वह कलम विधि से तैयार किए हैं। यह काम भी स्वयं किया है। इसके लिए कहीं प्रशिक्षण नहीं लिया है।
वह बताते हैं कि कलम विधि से 300 से अधिक पौधे तैयार किए हैं कुछ बेच दिए। यहां तैयार कलम को लेने मिर्जापुर तक के लोग आए थे। इसके अलावा अपने क्षेत्र में पन्ना, छतरपुर आदि जगहों से भी लोग आए। वह कहते हैं कि इस खेत में अब तक कोई रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया है पूरी प्रक्रिया जैविक तरीके से कर रहा हूं ताकि कोई समस्या न आए।
सालाना उत्पादन के बारे में अभयराज बताते हैं कि नींबू के एक पेड़ में 3 से 4 हजार फल आते हैं। इस हिसाब से 300 पेड़ों में करीब 1 लाख नींबू आते हैं। इनकी एक रुपए भी कीमत लगाई जाय तो 1 लाख रुपए होती है। गांव से करीब 16 किलोमीटर दूरी पर सतना शहर है जहां उपज बेचाता हूं। खुली मंडियों की जगह शहर के 6 होटलों और इतने ही ढाबों में सप्लाई है। यहां पैसा फंसने की गुंजाईश कम है इसलिए ज्यातादर होटलों और ढाबों को ही नींबू सप्लाई करता हूं। इसके अलावा दुकान वाले भी डिमांड करते हैं बाहर टोटका लटकाने के लिए। इससे लगभग साल भर सप्लाई जारी रहती है। इस साल लॉकडाउन की वजह से सब बिगड़ा हुआ है।वृक्ष लदे हुए हैं लेकिन कोई क्रेता नहीं मिल रहा जिससे समस्या हो रही है। हालांकि इस साल नींबू भी अपेक्षाकृत कम आया है।
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वह बताते हैं कि जीविका चलाने के लिए यही एक मात्र जमीन है इसके अलावा कुछ नहीं। आय के लिए इंटर क्राॅपिंग का सहारा ले रहे हैं। नींबू से बची क्यारियों में केला, अमरूद के पेड़ तैयार कर रहे हैं। केला लगभग तैयार है अमरूद के लिए अभी वक्त है। इसके अलावा हल्दी, शहतूत, बरसीम आदि भी है जिससे रोजमर्रा के खर्चों के लिए कोई दिक्कत नहीं आती। किचन गार्डन भी बना रखा है जिसमें जैविक तरीके से सब्जियां उगा रहा हूं। अब तक जितने भी काम किए हैं उनमें कहीं भी कोई सरकारी मदद नहीं ली। वह चाहते हैं कि सरकार मदद करे तो यह काम और विस्तार पकड़ सकता है।
खेत को बनाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ थी तब सिंचाई के लिए घर में लगे बोर से पानी लाना पड़ता था। करीब 5 साल पहले बोर से 1700 फिट पाइप डाल कर डिप के माध्यम से सिंचाई करते हैं इसके अलावा गोडाई करने के लिए पावर बिडर भी एक साल पहले खरीदा है। नींबू की उपज से जो कमाई हुई उससे बेटी की शादी करने में सक्षम हुआ।