रायपुर: कभी पर्यटकों की भीड़ लगी रहती थी, अब दिन भर में एक-दो लोग आते हैं

लॉकडाउन में कई महीनों तक घर बैठने के बाद रायपुर के महादेव घाट के नाविक एक बार फिर वापस काम पर लौटने लगे हैं, लेकिन उन्हें ये भी डर है कि कब तक उन्हें काम मिलता रहेगा।

Update: 2020-07-23 13:44 GMT

रायपुर (छत्तीसगढ़)। कुछ महीने पहले तक महादेव घाट पर पर्यटकों को नदी की सैर कराने वाले नाविकों के पास काम की कोई कमी नहीं थी, किसी पर्व-त्यौहार पर तो लोगों की भीड़ लग जाती, लेकिन लॉकडाउन के बाद से इनका काम पूरी तरह से ठप पड़ गया था, लेकिन अनलॉक के बाद सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए एक बार फिर नाव चलाने लगे हैं।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में महादेव घाट एक धार्मिक व पर्यटन स्थल है, खारुन नदी के तट पर बने महादेव घाट में हर साल लाखों की संख्या में भक्त और पर्यटक आते थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण अब मानों ज़िन्दगी थम सी गई थी, शुरू के चार महीने पूर्ण रूप से नाविकों का काम बंद था लेकिन अब धीरे धीरे सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन करते हुए नाविक अपनी नाव को लेकर एक बार फिर से नदी में उतरे हैं। पहले की तरह ग्राहक तो नहीं मिलते लेकिन थोड़ा बहुत काम शुरू हुआ है।


कई महीने बाद खारुन नदी में नाव लेकर उतरे नाविक अशोक बताते हैं, "लॉकडाउन के कारण चार महीने नाव चलाना बंद था, जिसके कारण सभी नाविकों को बहुत घाटा हुआ है। रायपुर का महादेवघाट एक आध्यात्मिक के साथ साथ पर्यटन स्थल भी है लेकिन कोरोना के चलते अब न तो लोग मंदिर पहले की तरह आते हैं और न ही घूमने आते हैं। इस घाट में कुल 35 नाविक हैं और नाव का काम बंद होने के कारण आजीविका चलाने के लिए मछली पकड़ने का काम करने लगे थे।"

वो आगे कहते हैं, "अच्छी बात यह है कि सावन की वजह से अब कुछ पर्यटक और श्रद्धालु आने लगे हैं, बचपन से इसी घाट के पास नाव चलाता आ रहा हूं और मेरे दादा-परदादा भी नाविक थे लेकिन ऐसी बीमारी और इतना भयावह संकट न तो कभी सुना और न कभी देखा। चार महीने बहुत चुनौतियों का सामना किया है। कोई काम नहीं था। दिन भर घर में बैठे रहते थे। शाम को मछली पकड़ने के लिए निकलते थे लेकिन नदी में एक किलो मछली मिल गई तो भी बड़ी बात है। बहते पानी में मछली मिलने की सम्भावना कम होती है।"

गोताखोर समिति के अध्यक्ष लोकनाथ धीवर की भी स्थिति भी कुछ ऐसी ही। दिन भर नदी किनारे नाव लगाए बैठने पर कभी कोई मिल जाता है। वो कहते हैं, "लॉकडाउन के कारण रोजगार और पर्यटन का काम कम हो गया है लेकिन अब अनलॉक होने के बाद सोशल डिस्टेन्सिंग और सैनिटाइज़र का उपयोग करते हुए हम फिर से नाव चलना शुरू किये हैं। लॉक डाउन के कारण कोई भी घूमने नहीं आता था लेकिन अब कुछ लोग आने लगे हैं। हम पहले 8 लोग को बैठाते थे, लेकिन अब एक नाव में 2 -4 लोग को ही बैठाते हैं। सावन के सोमवार के अवसर पर लोग भोले बाबा का दर्शन करने आते हैं तो थोड़ा बहुत काम मिल जाता है।"

लेकिन नाविकों को लग रहा है कि अगर ऐसी ही कोरोना बढ़ता रहा तो कब तक वो नदी में नाव चला पाएंगे। 

ये भी पढ़ें: लॉकडाउन: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में मल्लाहों की 'आजीविका' की नाव डूब गई

Full View


Similar News