गन्ना बुवाई की ट्रेंच विधि : इन बातों का ध्यान रखेंगे तो मिलेगा ज्यादा उत्पादन

Update: 2019-09-23 11:24 GMT

किसान परंपरागत तरीके से गन्ने की बुवाई करते हैं, लेकिन किसान ट्रेंच विधि से गन्ने की बुवाई करके दूसरे तरीकों के मुकाबले ज्यादा पैदावार पा सकते हैं, इस विधि से बुवाई करने पर फसल की ज्यादा सिंचाई भी नहीं करनी पड़ती है।

भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार साह गन्ने की ट्रेंच विधि की पूरी जानकारी दे रहे हैं कि कैसे इस विधि से गन्ने का उत्पादन बढ़ा सकते हैं। ट्रेंच विधि के बारे में वो बताते हैं, "ट्रेंच का मतलब होता है नाली, ट्रेंच विधि का मतलब नाली खोदकर नाली में गहराई में गन्ने की बुवाई की जाती है।पिछले चार-पांच वर्षों में उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत के कई राज्यों में ट्रेंच विधि से गन्ने की बुवाई किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हुई है, क्योंकि इस विधि में किसान गन्ना किसानों को प्रचलित विधियों के मुकाबले ज्यादा उत्पादन पा सकते हैं।"

डॉ. अजय कुमार साह, प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान

वो आगे कहते हैं, "अभी तक उत्तर प्रदेश के किसान जो सामान्य विधि से गन्ने की खेती कर रहे हैं, उन्हें प्रति हेक्टेयर 60-70 टन गन्ने का उत्पादन मिलता है और अगर वही किसान ट्रेंच विधि से गन्ना लगाता है तो इसमें दस से बीस टन ज्यादा गन्ने का उत्पादन मिलता है। जैसे कि कोई किसान सामान्य विधि से एक हेक्टेयर में 70 टन गन्ने का उत्पादन ले रहा है तो ट्रेंच विधि से 90 से 100 टन तक उत्पादन ले सकता है।"

कैसे करें तैयारी

ट्रेंच विधि से बुवाई के लिए सबसे पहले किसान को बुवाई के लिए खेत तैयार करना होता है, खेत तैयार करने के लिए जैसे आप प्रचलित विधियों से गन्ना बुवाई के लिए खेत को तैयार करते हैं। खेत तैयार करने के लिए एक बात का विशेष ध्यान दें कि खेत तैयार करने के लिए ऐसे खेत का चुनाव करें, जहां पर पहले लगी गन्ना की फसल में कोई बीमारी न लगी रही हो, उस खेत में जल भराव की समस्या न हो। एक सामान्य खेत हो, जिसमें दोमट मिट्टी हो, ऐसे ही खेत का चयन करें।

पहले खेत की गहरी जुताई करें, गहरी जुताई के समय अगर आपको उसमें गोबर की खाद मिलानी है तो गोबर की खाद मिला दें। उसके बाद कल्टीवेटर ये देसी हल से चलाकर उसमें जो भी पत्थर या रोड़े पड़े हों, उन्हें एकदम समतल कर लें। और मिट्टी पूरी तरह से भुरभुरी हो जाए, इस तरह से आप खेत तैयार करें।

गन्ने की बुवाई

उसके बाद ट्रेंचर से खुदाई करें, ट्रेंचर की ज्यमिति 30 सेमी गहरी और 30 सेमी चौड़ी होती है। और एक ट्रेंच से दूसरे ट्रेंच की दूरी अगर आप अक्टूबर में बुवाई कर रहे हैं तो चार फीट रखनी चाहिए। लेकिन अगर आप फरवरी-मार्च में बसंतकालीन गन्ने की बुवाई करते हैं तो एक ट्रेंच से दूसरे ट्रेंच की दूरी घटा सकते हैं। इसे तीन फीट या साढ़े तीन फीट रख सकते हैं।


इस प्रकार से पूरे खेत में ट्रेंच बना लें, अब तो ट्रेंच बनाने के बाद दोनों तरफ जो मिट्टी जमा होती है, उस ट्रेंच में सबसे पहले आप उर्वरक डालें। रसायनिक खाद में डीएपी, यूरिया और पोटाश डालें। प्रति हेक्टेयर के लिए सौ किलो यूरिया, 130 किलो डीएपी और 100 किलोग्राम पोटाश, ये तीनों मिलाकर ट्रेंच की तलहटी पर जमीन पर डाल दें। और जब आप उर्वरक डाल रहे होते हैं तो उसी समय आपको बिजाई भी करनी होती है।


करें स्वस्थ्य बीजों का चयन

बुवाई करने के लिए हमेशा स्वस्थ बीजों का चुनाव करें, आपके क्षेत्र के लिए जो संस्तुत प्रजातियां हैं उन्हीं की बुवाई करनी चाहिए। बीज लेने के बाद उसकी टुकड़ों में कटाई करें। इसके लिए दो आंख का टुकड़ा ले और उसे किसी भी फफूंदनाशी से बीज का शोधन करें। बीज शोधन के बाद ही गन्ने की बुवाई करें। बुवाई करने के बाद अगर खेत में पर्याप्त नमी है तो गन्ने की सिंचाई न करें, अगर मिट्टी में नमी नहीं है तो हल्की सिंचाई करें।


इन किस्मों का करें चयन

शीघ्र पकने वाली प्रजातियों में को०शा० 8436‚ को०शा० 88230‚ को०शा० 95255‚ को०शा०96268‚ को०शा० 03234‚ यू०पी० 05125 को०से० 98231 को०शा० 08272 को०से० 95422 को० 0238‚ को० 0118‚ को० 98014 और देर से पकने वाली प्रजातियों में को०शा० 767‚ को०शा० 8432‚को०शा० 97264‚ को०शा० 96275‚ को०शा० 97261‚ को०शा० 98259‚ को०शा० 99259‚ को०से० 01434‚ यू०पी० 0097‚ को०शा० 08279‚ को०शा० 08276‚ को०शा० 12232‚ को०से० 11453‚ को० 05011, को०शा०09232 प्रमुख किस्में होती हैं। 

एक सप्ताह में जमाव शुरू हो जाता है और एक माह में पूरा हो जाता है। जमाव 80-90 प्रतिशत तक होता है जबकि सामान्य विधि से 40 से 50 प्रतिशत तक ही होती है। जमाव अधिक व समान रूप से होने तथा गन्ने के टुकड़ों को क्षैतिज रखने से नाली में दोहरी पंक्ति की तरह जमाव दिखता है जिसके कारण कोई रिक्त स्थान नहीं होता और पेड़ी की पैदावार भी पौधा गन्ने के समान होती है।

सिंचाई बुवाई के समय नमी की कमी या देर बसन्त की दशा में पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें। पर्याप्त नमी की दशा में बुवाई की गई हो तो पहली सिंचाई 2-3 दिन पर भी कर सकते हैं। मिट्टी के अनुसार ग्रीष्मकालीन में समाप्त के अन्तराल पर सिंचाई करना चाहिए। जबकि बरसात में 20 दिन तक बारिश न होने की दशा में सिंचाई जरूर करें। नाली में सिंचाई करने से प्रति सिंचाई 60 प्रतिशत पानी की बचत होती है। नाली में सिंचाई करने से केवल 2.5-3 घण्टा प्रति हेक्टेयर का समय लगता है जिससे ईंधन/डीजल की बचत होती है।

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