वाराणसी के सरकारी स्कूलों में खुल गई है खिलौनों की दुनिया

सरकारी स्कूलों में ज्यादा से ज्यादा छात्रों को नामांकित करने और खेल-आधारित शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए एक अनूठी पहल चलाई जा रही है। इसी पहल के चलते वाराणसी में बेसिक शिक्षा विभाग और एक गैर-लाभकारी संस्था ने संयुक्त रूप से दो सरकारी स्कूलों में खिलौना पुस्तकालय खोले हैं। जिले भर में इस तरह की और भी कई लाइब्रेरी आने वाली हैं।

Update: 2022-12-12 08:06 GMT

वाराणसी, उत्तर प्रदेश

वाराणसी के पिशाच मोचन प्राइमरी स्कूल के तीसरी क्लास में पढ़ने वाली अनन्या शाह बेहद खुश हैं। और हो भी क्यों नहीं, आज उसके आस-पास ढेर सारे खिलौने हैं, जिनके साथ वह खेल सकती हैं।

अनन्या सिर्फ अकेली नहीं हैं, उनके जैसे सैकड़ों बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ अब खिलौनों के साथ खेल भी सकते हैं और इसका श्रेय बेसिक शिक्षा विभाग, वाराणसी और 'समय बैंक' नामक एक गैर-लाभकारी संगठन की पहल को जाता है।

अनन्या ने गाँव कनेक्शन को बताया, "वास्तव में, मेरे पास कोई भी खिलौना नहीं था, जिसके साथ में खेल पाती। अब हम स्कूल में पढ़ने के अलावा खेल भी सकते हैं।"

उनकी सहपाठी प्रीति ने गाँव कनेक्शन को बताया कि पहले ऐसा नहीं था। वह कहती हैं, 'खिलौना लाइब्रेरी बहुत बढ़िया है। हमें खेलने के लिए कहीं और जाने की जरूरत नहीं है, सब कुछ यहीं मिल जाता है।"


टॉय लाइब्रेरी की पहल समाज के उन कमजोर तबकों के बच्चों के लिए शुरू की गई थी, जिनके पास घर पर खिलौनों और खेलों तक पहुंच नहीं थी। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले इन बच्चों को पढाई के साथ-साथ खिलौनों से खेलने का मौका भी मिल रहा है।

प्राथमिक विद्यालय, मालदहिया टॉय लाइब्रेरी बनाने वाला वाराणसी का पहला स्कूल था । 23 नवंबर, 2022 को इस लाइब्रेरी की शुरुआत की गई थी। तीन दिन बाद एक अन्य स्कूल पिशाच मोचन प्राइमरी स्कूल में भी एक नई खिलौना लाइब्रेरी खोली गई।

शिक्षा का चेहरा बदलना

बेसिक शिक्षा अधिकारी, वाराणसी, अरविंद कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "अभी तक स्कूलों में सिर्फ किताबें ही लाइब्रेरी में मिला करती थीं। लेकिन शिक्षा का चेहरा बदल रहा है। हमने यह महसूस किया कि खिलौना पुस्तकालय होने से न सिर्फ इन सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ेगी, बल्कि बच्चों को बेहतर तरीके से भी पढ़ाया जा सकेगा"। उन्होंने कहा कि जब बच्चे पहली बार प्राइमरी क्लास में पढ़ने के लिए स्कूल आएंगे, तो खिलौने उन्हें रोजाना स्कूल आने के लिए प्रेरित करेंगे।

वाराणसी जिले के सरकारी स्कूलों में लगभग दो लाख उनचास हजार (249,000) छात्र पढ़ते हैं। वर्तमान शैक्षणिक सत्र में ' स्कूल चलो अभियान' (2000 में राज्य सरकार की ओर से 6-14 उम्र के बीच के बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने के लिए शुरू किया गया) के तहत 83,000 नए छात्रों को सरकारी स्कूलों के साथ जोड़ा गया है।

बेसिक शिक्षा अधिकारी अरविंद कुमार ने कहा कि जिले के अन्य सरकारी स्कूलों में भी ऐसी और खिलौना लाइब्रेरी खोलने की योजना है। उन्होंने बताया, "हमें उम्मीद है कि इससे स्कूल में दाखिले बढ़ेंगे और उपस्थिति में सुधार होगा। हम इस बात का ध्यान रखेंगे कि लाइब्रेरी में रखे जाने वाले खिलौने उनकी उम्र के हिसाब से हों।"


मलदहिया और पिशाच मोचन सरकारी स्कूलों में 250 से ज्यादा बच्चे प्राइमरी एजुकेशन के लिए आते हैं।

पिशाच मोचन स्कूल में कक्षा पांच में पढ़ने वाले 13 साल के आलोक कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमारे स्कूल में पहली बार हमारे पास खेलने के लिए इतने सारे खेल आएं हैं। शतरंज, बैट-बॉल, म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट, सॉफ्ट टॉय, पजल्स और भी बहुत कुछ। "

कक्षा तीन के छात्र अनुराग ने गाँव कनेक्शन को अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, " मेरा पढ़ाई में मन नहीं लगता है। इसलिए हफ्ते में कम से कम दो या तीन बार तो मैं छुट्टी मार ही लेता था. लेकिन अब तो मैं रोज स्कूल जाऊंगा" यह कहते हुए 12 साल का अनुराग मंद-मंद मुस्कुराने लगा।

कितने सारे बच्चों को पढ़ाई नीरस लगती है और इसी के चलते वह पूरी तरह से कक्षा से बाहर हो जाते हैं या स्कूल छोड़ देते हैं। चौथी क्लास में पढ़ने वाले अंश ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मैं अक्सर स्कूल से भाग जाता था और सड़कों पर घूमता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। मैं स्कूल में ही मजे कर सकता हूं और खेल सकता हूं।"

एक टॉय लाइब्रेरी का विचार

राज्य सरकार के बेसिक शिक्षा विभाग के साथ मिलकर गैर-सरकारी संस्थान 'समय बैंक' के प्रवीरचंद्र अग्रवाल ने इस पहल को आगे बढ़ाने की शुरुआत की थी।

अग्रवाल ने गाँव कनेक्शन को बताया, "टॉय लाइब्रेरी का विचार वाराणसी के सरकारी स्कूलों में एक बड़ा बदलाव लाने वाला है।"

58 वर्षीय ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मैं एक प्राइवेट कंपनी में काम करता हूं। वाराणसी में अपने परिवार के साथ एक मध्यमवर्गीय जीवन जी रहा हूं। अपने बच्चों के लिए खिलौने खरीदने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हुआ करते थे. मैं अक्सर सोचता था कि निम्न-मध्यम वर्ग के घरों के बच्चे कैसे सफल हो पाएंगे।"

"समय बैंक" की शुरुआत अग्रवाल ने कुछ स्वयंसेवकों के साथ 2015-16 में की थी। तब वह खिलौनों से भरी एक गाड़ी को वाराणसी के सरकारी स्कूलों में लेकर जाते और बच्चों को उनके ब्रेक के दौरान या स्कूल के बाद उनके साथ खेलने के लिए देते थे। उसके बाद वह फिर खिलौनों को गाड़ी में भरकर वापस ले आते थे।


अग्रवाल ने कहा, "लेकिन टॉय लाइब्रेरी बनने से एक फायदा हुआ है। अब बच्चे जब चाहे अपने खाली समय में खिलौनों से खेल पाते हैं"। उनका दृढ़ विश्वास है कि बच्चे के विकास में खेल भी उतनी ही बड़ी भूमिका निभाते हैं जितनी कि पढ़ाई। अग्रवाल मुस्कुराए और बोले, "खेलने को 'समय की बर्बादी' कहने की बजाय हम इसे 'बेहतरीन समय' में बदल सकते हैं।"

अग्रवाल ने समझाया, "सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिए आने वाले समाज के हर तबके के बच्चों की पहुंच अब खिलौनों तक होगी। क्योंकि ये खिलौने उन्हें बमुश्किल ही उनके घर में मिल पाते हैं। यह इन बच्चों में बचपन को जीवित रखने का एक प्रयास है। "

पिशाच मोचन स्थित प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापिका अनीता श्रीवास्तव ने बताया कि स्कूल में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों से आते हैं।

श्रीवास्तव ने गाँव कनेक्शन को बताया, "खिलौने इन बच्चों के लिए लग्जरी आटम हैं। उनके माता-पिता के पास उनके खेलने का सामान खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। टॉय लाइब्रेरी ने बच्चों में काफी उत्साह पैदा किया है।" उन्होंने उम्मीद जताई की कि यह पहल ज्यादा से ज्यादा बच्चों को सरकारी स्कूलों की तरफ आने को आकर्षित करेगी।

चंदौली जिला अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ नितेश कुमार सिंह गांव कनेक्शन को बताते हैं कि अभाव और आर्थिक कमी के चलते जिन बच्चों को बचपन में खिलौने नहीं मिल पाते हैं, ऐसे बच्चों का सर्वांगीण व बौद्धिक विकास अधूरा ही रह जाता है। ये बच्चे आगे चलकर असुरक्षा का भाव महसूस करने लगते हैं। जैसे- इंजाईटी, बेचैनी, घबराहट, समाज में घुलने-मिलने या लोगों से बातचित करने में कतराने या घबराहट महसूस होती है। तो वहीं व्यक्तित्व विकास भी प्रभावित होता है। कई शोध रिपोर्ट में यह पाया गया है कि सामान्य बच्चों की अपेक्षा खिलौने के साथ खेलने व समय नहीं बिता पाने की वजह से बच्चों के शारीरिक विकास की गति भी धीमी हो जाती है। "

"बच्चों के बुद्धि का सर्वाधिक विकास बचपन में होता है। बच्चें जब खिलौने के साथ खेलते हैं, कई प्रकार के रोल प्ले करते हैं। इससे बच्चों की कल्पनाशीलता और विचार शक्ति बढ़ती है। खिलौने के साथ बच्चों का भावनात्मक संबंध भी होता है, जो समय के साथ आगे चलकर परिवार, दोस्त और समाज में लोगों के साथ व्यवहार कुशलता का विकास होता है। जिसे इमोशनल इंटेलिजेंस कहा जाता है। सरकारी स्कूल में खिलौना लाइब्रेरी खोला जाना अच्छी पहल है। जिन बच्चों के पास खिलौने नहीं हैं और वे इन स्कूलों में पढ़ने जाते हैं। ऐसे में स्कूल में पढ़ने के साथ उपलब्ध खिलौने से खेलकर मानसिक और शारीरिक विकास बेहतर होगा, बल्कि पढ़ाई और खेल में रुचि भी बनी रहेगी। खिलौना लाइब्रेरी से स्कूल का माहौल खुशनुमा रहेगा और बच्चों में ऊर्चा का संचार भी बना रहेगा।"

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