#LIVE राज्य सभा की चर्चा, सत्ता और विपक्ष के सांसदों ने पूछे कई सवाल, गहमागहमी के बीच मेजर पोर्ट अथॉरिटी बिल 2020 पास
बजट सत्र के दौरान राज्यसभा की कार्यवाही जारी है। सदन में आज प्रश्नकाल के बाद मेजर पोर्ट अथॉरिटी बिल The Major Port Authorities Bill, 2020 पर चर्चा हुई। जिसके बाद वोटिंग के माध्यम से बिल को पास किया गया। इस बिल में देश के प्रमुख 12 बंदरगाहों को निर्णय लेने में अधिक स्वायत्तता प्रदान करने का प्रस्ताव है। विपक्ष ने इस बिल को पोर्ट को निजी हाथों में सौपने वाला बताते हुए कई सवाल खड़े किए तो सत्ता पक्ष ने पीपीपी मॉडल को पोर्ट को विकसित किए जाने की खूबियां गिनाईं।
इस बिल को कैबिनेट फरवरी 2020 में मंजूरी दी थी। ये बिल लोकसभा में पास और बुधवार को सदन में पेश किया गया। बिल पर चर्चा शुरु करते हुए पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभार के मंत्री मनसुख भाई मांडविया ने कहा कि मेजर पोर्ट अथॉरिटि बिल मैं इसलिए लेकर आया हूं कि हर सेक्टर में समय समय पर बदलाव करना जरुर है। अंग्रेज सरकार ने 1908 में पोर्ट एक्ट लागू किया था। आजादी के बाद 1968 में पोर्ट टस्ट एक्ट लागू किया, उस वक्त देश में सिर्फ मेजर पोर्ट हुए थे। बदलते समय में वर्तमान स्थिति के के हिसाब से बदलना जरुरी थी। माइनर पोर्ट और मेजर पोर्ट में प्रतिस्थप्धा है। डिजिटल तकनीकी का इस्तेमाल कैसे करें, प्राइवेट पोर्ट से प्रतिस्पर्धा के साथ आगे बिजनेस आगे बढ़े इलिए मैं ये बिल लेकर आया हूं।"
सदन में चर्चा पर जवाब देते हुए मनसुख भाई मांडविया ने कहा कि पोर्ट अथॉरिटी बिल 2020 पर आज 26 सांसदों ने अपनी बात रखी। इस बिल से सारा पोर्ट सेक्टर खत्म हो जाएगा, बिल से मजदूरों का अहित होगा। ऐसे सवालों पर मेरा कहना है कि ये बिल निजीकरण के लिए नहीं है ये निजी बिलों से प्रतिस्पर्धा के लिए हैं। पोर्ट स्वायित्व बने, पोर्ट अपने फैसले खुद ले सकें। इसलिए हमने बिल में कई प्रावधान किए हैं।
इस बिल के ड्राफ्ट पर सवाल खड़े करते हुए गुजरात से कांग्रेस सांसद शक्ति सिंह गोहिल ने इसे बंदरगाहों को कॉरपोरेट के हाथों में सौंपने वाला बताया। उन्होंने कहा, जो बिल लाया गया है उसकी ड्राफ्टिंग में कई कमियां हैं। या तो तैयारी में कमियां रही हैं या फिर जानबूझ कर कमियां रही गई हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि ये जैसे एयरपोर्ट अपने मित्रों को सौंप दिए गए हैं वैसे ही पोर्ट भी किसी को सौंपे जाने की तैयारी है। हमें कंपटीट (प्रतिस्पर्धा) या सरेंडर
मेजर पोर्ट अथॉरिटी बिल पर चर्चा करते हुए सुरेश प्रभु ने कहा कि 7600 किलोमीटर से ज्यादा देश की कोस्ट लाइन हैं। इतनी बड़ी कोस्ट लाइऩ होने के बावजूद दुर्भाग्य से देश के बंदरगाहों का उतना विकास नहीं हुआ। बंदरगाहों का विकास होने से पूरे देश का विकास हो सकता है। हमारे देश में 2014-15 में टर्ऩओवर टाइम में 95 घंटे लगते हैं पिछले साल 60 घंटे में ये काम हुआ। गुजरात में सबसे बड़ी कोस्ट लाइन है। इसलिए वहां कोस्ट लाइन पर ध्यान दिया जा रहा है। पोर्ट को व्यवसायिक और विकसित करने के लिए मंत्री जी ने अपने अधिकार में कटौती करते हुए स्थानीय स्तर पर दिए गए हैं।
प्रो. मनोज कुमार झा ने कहा, "हमारे देश की गुलामी समुद्र के रास्ते आई थी। बिल में पोर्ट को संचालित करने के लिए बनाए गए बोर्ड में लेबर का प्रतिनिधित्व नहीं होना सवाल खड़े करता है। हमें ये भी देखना होगा कि जो आप काम कर रहे हैं उससे किसी व्यक्ति विशेष का या फिर जनता का फायदा हो रहा है।