मानवता की मिसाल हैं उत्तराखंड की सुषमा, अब तक सैकड़ों पशुओं की बचा चुकी हैं जान

निस्वार्थ सेवा का ये काम सुषमा ने जब से होश संभाला है तब से कर रही हैं। सुषमा अकेले ही 55 गायों और 75 कुत्तों को पालती हैं।

Update: 2019-06-03 07:23 GMT

कोटद्वार (उत्तराखंड)। जहां पूरे देश में आवारा पशु एक बड़ी समस्या बने हुए हैं, वहीं उत्तराखंड़ की सुषमा जकमोला पिछले कई वर्षों से सड़कों पर घायल लावारिस पशुओं की सेवा करने में लगी हुई हैं। अब तक वह हज़ारों आवारा जानवरों को नया जीवन दे चुकी हैं।

उत्तराखंड राज्य के पौड़ी जिले से 25 किमी. दूर कोटद्वार में रहने वाली सुषमा पशु प्रेम की मिसाल हैं। सुषमा बताती हैं, ''हम सिर्फ गायों के लिए ही गो सदन बनवाते हैं, कभी पशुशरणालय नहीं बनाते हैं। पशुशरणालय का मतलब है उसमें सभी तरह के पशुओं को शरण मिले। यह गो सदन भी है और पशु शरणालय भी है यहां हम सभी पशुओं को लेकर आते हैं।''

निस्वार्थ सेवा का ये काम सुषमा ने जब से होश संभाला है तब से कर रही हैं। सुषमा अकेले ही 55 गायों और 75 कुत्तों को पालती हैं। पशुशारणालय में पशुओं को दिखाते हुए बताती हैं, "यहां जितने भी पशु उनकी कोई न कोई कहानी है यह सब मुझे घायल अवस्था में मिले। मैं दिन रात इनकी सेवा करके इन्हें ठीक कर देती हूं।''

अपनी बात को जारी रखते हुए सुषमा आगे कहती हैं, ''मैंने देखा है सभी फील्ड में लोग काम करते हैं, लेकिन इस फील्ड में बहुत कम लोग करते हैं। इसलिए मैंने यह पशुशारणालय बनाया। किसी गाय की तबीयत नहीं ठीक है तो पूरी रात इन्हीं पशुओं के साथ गुजारती हूं।''


सुषमा के इस काम में उन्हें उनके परिवार के अलावा कोई मदद नहीं करता है। उनके परिवार के सदस्य कमाई का एक प्रतिशत हिस्सा इस पशुशारणालय में खर्च करते हैं। एक घटना का जिक्र करते उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, ''एक समय की बात है एक गाय को एक ट्रक ने कुचल दिया था उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई थी तो वो रात भर वहीं पड़ी रही। मुझे जब सूचना मिली तब मैं वहां गई और देखा कि सियारों ने उनको खाने के चक्कर काफी घायल कर दिया था।''

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वह आगे कहती हैं, ''मैं जब उसे उठा रही थी तो कई लोगों से मदद मांगी। लेकिन मदद कोई करने का तैयार नहीं फिर छोटा हाथी बुक किया। उसने भी गाय को उठाने के लिए मुझसे दोगुनी कीमत मांगी। उस समय मैंने अपने कान टॉप्स बेचकर उस गाय को उठवाया और अस्पताल पहुंचाया। डॉक्टर जानते थे तो इलाज में कोई खर्चा नहीं आया।''

सड़कों पर घायल मिले पशुओं को सुषमा डॉक्टरों की मदद से पूरी तरह ठीक करती हैं और फिर उन्हें जरुरतमंद लोगों को देती हैं। ''जरुरतमंद लोगों को गाय दे देते हैं, लेकिन विजिट जरुर करते हैं ताकि लोगों दूध न देने पर छुट्टा न छोड़े। इसके साथ जो लोग कुत्तों की विदेशी नस्लों को पालते हैं, उनको देशी नस्लों के पालने के फायदे बताते हैं और लोग पाल भी रहे हैं बदलाव भी आया है, ''सुषमा ने कहा।


सुषमा घायल पशुओं को बचाने की इस मुहिम में अपने साथ कई लोगों को जोड़ चुकी हैं। पौड़ी जिले में कोई भी घायल पशु का मामला आता है तो सुषमा खुद या उनके साथी उस पशु का इलाज कराकर उस पशु शारणालय में पहुंचा देते हैं। सुषमा के बहुत संघर्ष के बाद उनको पौड़ी जिले में एक ज़मीन मिली है जिसमें वह सभी पशुओं को रखती है।

''पशुओं को पालना अब लोग मुसीबत समझने लगे हैं उनको अब लगता है पशु पालने से कोई फायदा नहीं है इंसान फायदा ज्यादा देखते हैं। दूध न देने पर पशुओं को सड़कों पर छोड़ देते हैं ऊपर से कहते हैं इनके लिए सरकार करेगी।'' सुषमा ने बताया, ''ये सरकार की जिम्मेदारी नहीं है हमारी है अगर आप उसे गौ-माता कहते हैं। अगर सरकार सपोर्ट नहीं करती है तो क्या हम पशुओं को सड़क पर छोड़ देंगे। यह हमारी भी जिम्मेदारी बनती है।''

सरकार द्वारा गोशालाओं में मिल रही मदद को सुषमा बहुत कम बताती हैं। वह कहती हैं, ''सरकार ने एक दर बनाई है यूपी के हिसाब से उत्तराखंड में वह दर बहुत कम है। एक गाय पर एक दिन में 30 रुपए का खर्च नहीं आता है। इस फील्ड में काम कर रहे लोग बहुत ही संघर्ष कर रहे हैं। सरकार को ऐसे लोगों को सपोर्ट करना चाहिए।'' 

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