इंफ्लेमेशन को जानें और सावधानी बरतें

Update: 2016-01-27 05:30 GMT
गाँव कनेक्शन

इंफ्लेमेशन यानि शरीर में होने वाली समस्याएं जो सामान्यत: छोटी होती है लेकिन जिनके लम्बे समय तक शरीर में बने रहने से कैंसर जैसा भयावह रोग भी हो सकता है। इंफ्लेमेशन वास्तव में अंशकालिक रूप से शरीर में होने वाली एलर्जी, दाह, जलन, सूजन, खुजली, आंखों में लालपन होना, जोड़ों में दर्द और सर्दी जैसी समस्याओं की वजह होता है। वास्तव में ये हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का ऐसा असर है जिसकी वजह से हमारे शरीर के संपर्क में आने वाले कुछ पदार्थों और रसायनों के प्रति संवेदनशीलता बहुत तेजी से दिखती है और कई बार इस संवेदनशीलता का असर काफी लंबे समय तक दिखायी देता है। दुनियाभर में लोगों में इंफ्लेमेशन होना एक आम बात है। 

माना जाता है कि लगभग 15-20 फीसदी लोग अपने जीवनकाल में किसी ना किसी तरह की इंफ्लेमेशन से ग्रस्त होते हैं या उन्हें इंफ्लेमेशन के निवारण की ज़रूर पड़ती है। ऐसे में इंफ्लेमेशन को और बेहतर समझना जरूरी है। इंफ्लेमेशन के दौर में नाक का बंद होना, छींक, आंखों का लाल होना, खुजली, बदन पर चकत्ते, आंखों का सूजना, त्वचा पर दाग, त्वचा का अनायास शुष्क होना, उल्टियां, दस्त से लेकर तमाम कई तरह के लक्षण देखे जा सकते हैं। कई बार अपने खान-पान और आस-पास के घटनाक्रम के आधार पर भी पता चल जाता है कि हमें किस वजह से इंफ्लेमेशन हो रही है।  

इंफ्लेमेशन होने की कोई एक वजह नहीं होती है, इसके कई कारण हो सकते हैं। इसके इलाज या रोकथाम के लिए सबसे पहला कदम हमें स्वयं को उठाना चाहिए। जब भी हमें इंफ्लेमेशन महसूस हो तुरंत पिछले कुछ दिनों के खान-पान, रहन-सहन में आए बदलाव पर नज़र डालना जरूरी है। अपनी जीवनशैली में सुधार, स्वच्छता और सावधानी से काफी हद तक इस समस्या से निपटा जा सकता है।

इंफ्लेमेशन के लक्षण 

इंफ्लेमेशन को ग्रीक भाषा में itis (आयटिस) कहा जाता था जिसका शाब्दिक अर्थ शरीर में अकस्मात होने वाली सूजन, दाह, खुजली, दर्द और त्वचा रोग है। आयटिस शब्द का प्रयोग शरीर के किसी विशेष भाग में होने वाले इंफ्लेमेशन के लिए ज्यादा उपयोग में लाया जाता रहा है जैसे जोड़ों पर दर्द को आर्थरायटिस, आंखों में लालपन को कंजक्टिवायटिस, नाक-नसिका में होने वाले इंफ्लेमेशन को सायनुसायटिस और गैस की वजह से होने वाले इंफ्लेमेशन को गैस्ट्रायटिस आदि। 

इंफ्लेमेशन के दो प्रकार होते हैं अल्पकालिक इंफ्लेमेशन (short term) और दीर्घकालिक इंफ्लेमेशन (long term)। अल्पकालिक इंफ्लेमेशन एक से दो दिन या दो से चार हफ्तों तक शरीर में रहता है। दीर्घकालिक इंफ्लेमेशन छह महीने से लेकर 8 से 10 साल तक शरीर में बना रहा है। 

आधुनिक शोध परिणाम बताते हैं अल्पकालिक इंफ्लेमेशन का शरीर में होना कई मायनों में फायदेमंद होता है जबकि दीर्घकालिक इंफ्लेमेशन लगातार बना रहना कैंसर जैसे भयावह रोग में परिवर्तित हो सकता है। बाज़ार में इंफ्लेमेशन की रोकथाम के लिए अनेक एलौपैथिक दवाएं बतौर एंटीइन्फ्लेमेट्री ड्रग्स उपलब्ध हैं पर इन दुष्प्रभावों को नकारा नहीं जा सकता है। ऐसी स्थिति में खान-पान में सावधानी के अलावा अपने परिवेश में साफ़-सफ़ाई का रखना बेहद जरूरी है, इसके अलावा कुछ देशी नुस्खों को आजमाकर काफ़ी हद तक इनपर काबू पाया जा सकता है। 

गाय के घी का मिश्रण रामबाण

नाक से पानी, अचानक खांसी का तेज होना, गले में $खराश इंफ्लेमेशन ही है। हर्बल जानकारों के अनुसार गाय के दूध से बना शुद्ध घी करीब 25 ग्राम लें और गर्म कर लें। इसमें 5-6 काली मिर्च के दानों को डाल दिया जाए। जब काली मिर्च कड़कड़ा जाए तो इसे आंच से उतारकर इसमें करीब दो चम्मच शक्कर मिला दी जाए। इंफ्लेमेशन महसूस होने पर इस मिश्रण का सेवन करें, ऐसा दिन मे कम से कम तीन बार किया जाए, एलर्जी छूमंतर हो जाएगी।

जैतून का तेल व सदाबहार लाभप्रद

प्रदूषित वाहनों के धुएं, रसायनयुक्त त्वचा उत्पादों आदि के उपयोग, या साबुन आदि के इस्तेमाल से भी इंफ्लेमेशन होता है। इंफ्लेमेशन की वजह से त्वचा पर अचानक दाग, धब्बे या कालापन दिखाई देने लगते हैं।

तात्कालिक उपाय के तौर पर हर्बल जानकारियों को आजमाकर  इंफ्लेमेशन से बचा जा सकता है। जब भी अचानक इंफ्लेमेशन के दुष्प्रभाव दिखाई दें, जैतून का तेल जरूर लगाएं, संक्रामक रसायनों के असर को कम करने के अलावा जैतून का तेल दाग-धब्बों को त्वचा से दूर करने में काफी मददगार साबित होता है। 

त्वचा पर होने वाली खुजली को दूर करने के लिए तुलसी की पत्तियों को पीस कर इसमें लहसुन की कुचली हुई दो कलियों को मिला दिया जाए। करीब आधा चम्मच जैतून का तेल इसमें डालकर इंफ्लेमेशन से ग्रस्त अंगों पर लगाया जाए, आराम मिल जाता है। 

सदाबहार नामक पौधे की पत्तियों के रस को भी त्वचा पर खुजली, लाल निशान या किसी तरह के इंफ्लेमेशन होने पर लगाया जाए तो आराम मिल जाता है।

अदरक के रस से दूर होगा शरीर पर लाल चकत्तें

आदिवासी अंचलों में अर्टिकेरिया नामक एलर्जी (शरीर पर लाल चकत्तों का बनना) जो कि एक इंफ्लेमेशन ही है, से निपटने के लिए ताजे अदरक को कुचलकर रस तैयार किया जाता है और इसका लेप सारे शरीर पर दिन में कम से कम चार बार किया जाता है। जानकारों का मानना है कि ऐसा लगातार नियम से करने से समस्या में आराम मिल जाता है। कुछ इलाकों में आदिवासी महुए की फल्लियों से प्राप्त तेल को शरीर पर लगाते हैं। इनका मानना है कि यह तेल शरीर के बाहरी हिस्सों पर हुई किसी भी तरह की एलर्जी को दूर करने में बेहद कारगर होता है।

नीम की कच्ची कोपलें का सेवन फायदेमंद

मार्च अप्रैल के महीने में जब नीम के पेड़ पर कच्ची कोपलें निकलती हैं तब आदिवासी इनके सेवन की सलाह देते हैं। करीब 20 ग्राम पत्तियों को कुचलकर 100 मिली पानी के साथ मिलाकर रोज सुबह 30 दिनों तक लेने की सलाह दी जाती है। इनके अनुसार, जो व्यक्ति ऐसा करता है उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर हो जाती है और किसी भी तरह के इंफ्लेमेशन से शरीर को बचाने में ये असरकारक होता है।

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