हरी खाद की बुवाई का है सही समय, घट जाएगी उर्वरकों की लागत

Update: 2024-05-09 12:22 GMT

हरी खाद उस सहायक फसल को कहते हैं, जिसकी खेती मिट्टी में पोषक तत्वों को बढ़ाने और उसमें जैविक पदार्थों की पूर्ति करने के लिए की जाती है। मई से जून महीने में ढैंचा और सनई जैसी हरी खाद की बुवाई की जाती है।

सनई अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार त्रिपाठी हरी खाद से होने वाले फायदे के बारे में बताते हैं, "इस समय खेत में सनई या फिर ढैंचा लगा देने किसानों को अगली फसल के लिए अच्छी हरी खाद मिल जाती है; इनकी जड़ों में राइजोबियम नाम का जीवाणु होता है, जो मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाता है।"

ढैंचा

यह एक दलहनी फसल होती है, यह सभी प्रकार के जलवायु और मिट्टी में भी वृद्धि कर लेती है। यह फसल एक सप्ताह तक 60 सेमी तक जलभराव भी सहन कर लेती है। इन परिस्थितियों में ढैंचा की जड़ें गहराई तक जाती हैं, जो उसे तेज़ हवा चलने पर गिरने नहीं देती हैं। अंकुरण होने के बाद यह सूखे को सहन करने की क्षमता रखती हैं। इसे क्षारीय और लवणीय मृदाओं में भी उगाया जा सकता है। ऊसर में ढैंचे से 45 दिन में 20-25 टन हरी खाद और 85-100 किलो तक नाइट्रोजन मिल जाता है। धान रोपाई के पहले ढैंचा को पलटने से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।

सनई

यह अच्छे जल निकास वाली बलुई या दोमट मिट्टी के लिए सही हरी खाद की फसल होती है। इसकी बुवाई मई से जुलाई तक बारिश शुरु होने के बाद की जा सकती है। यह जल्दी वृद्धि और मूसला जड़ वाली फसल है जो खरपतवार को दबाने में भी समर्थ होती है। बुवाई के 40-50 दिन बाद इसको खेत में पलट देते हैं। सनई की फसल से 20-30 टन हरी खाद मिल जाती है।

किस्में

ढैंचा की नरेंद्र ढैंचा-1, पंत ढैंचा-1 और सनई की अंकुर, स्वास्तिक और शैलेश मुख्य किस्में हैं।

हरी खाद की बुवाई का समय

ढैंचा और सनई के बुवाई के लिए मई से जून के महीने में हल्की बारिश के बाद इनकी बुवाई कर सकते हैं।

बुवाई की तैयारी और बीज की मात्रा

हल्की बारिश के बाद या फिर हल्की सिंचाई करके जुताई कर बीज छिड़क दिया जाता है। ढैंचा के हरी खाद के प्रति हेक्टेयर 60 किलो बीज की जरूरत होती है और सनई के लिए एक हेक्टेयर खेत में 80-90 किलो बीज बोया जाता है। जबकि मिश्रित फसल में 30-40 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।

खेत में हरी खाद बनाने की विधि

इस विधि में हरी खाद की फसल को उसी खेत में उगाया जाता है, जिसमें हरी खाद का प्रयोग करना होता है। फसल तैयार होने के बाद लगभग 40-50 दिनों में फूल आने से पहले ही मिट्टी को पलट दिया जाता है। मिट्टी में थोड़ी नमी होने से ये अच्छी तरह से सड़ जाती है।

अगर खेत में 5-6 सेमी पानी भरा रहता है तो पलटने और मिट्टी में दबाने में कम मेहनत लगती है। जुताई उसी दिशा में करनी चाहिए जिधर पौधों को गिराया गया हो। इसके बाद खेत में 8-10 दिन तक 4-6 सेमी पानी भरा रहना चाहिए, जिससे पौधों के अपघटन में सुविधा होती है। यदि पौधों को दबाते समय खेत में पानी की कमी हो या देर से जुताई की जाती है तो पौधों के अपघटन में अधिक समय लगता है।

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