'दुनियाभर से मानसून ख़त्म हो सकता है, खेती कैसे होगी, खाएंगे क्या?' - डॉ सुभाष पालेकर

पद्मश्री डॉ सुभाष पालेकर अंतर्राष्ट्रीय कृषि विशेषज्ञ हैं; उन्होंने ऐसी तकनीक विकसित की है जिसमें खेती के लिए रासायनिक कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, उनका नेचुरल फार्मिंग फॉर्मूला दुनिया के कई देशों में किसानों के लिए मिसाल है। गाँव कनेक्शन से बातचीत में उन्होंने कई नई बातों का खुलासा किया।

Update: 2024-05-09 12:05 GMT

भारतीय किसानों के सामने आज सबसे बड़ी समस्या क्या है और कैसे उसे दूर किया जा सकता है?

- सिर्फ भारतीय किसानों के सामने समस्या नहीं है, पूरी दुनिया के किसान रो रहे हैं या सड़कों पर हैं। सरकारें क्या कर रही हैं, या नहीं कर रही है इसपर बात से ज़्यादा ज़रूरी है ये देखना, कि ग्लोबल वार्मिग से समूचा विश्व हिला हुआ है। समय की माँग है अब हमें कोई विकल्प किसानों को देना होगा। सबसे अधिक नुकसान एशिया और अफ्रीका को होगा; अभी किसी को इसकी गंभीरता समझ नहीं आ रही है। यूरोप और अमेरिका विकसित हैं, उनको उतना नुकसान नहीं होगा जितना भारत जैसे देशों को होगा। हम विकसित तो दूर अभी विकासशील भी पूरी तरह नहीं है। अफ्रीका के देशों का तो और भी बुरा हाल होगा। किसान आपको तभी कुछ खेत से देगा जब प्रकृति भी उसका साथ दे। जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग से सभी को निपटना होगा।

ऐसी स्थिति में भारत इस दिशा में क्या -क्या कर सकता है, समस्या तो दुनिया से जुड़ी है?

-जैसा मैंने पहले कहा, पूरी दुनिया को अब सिर्फ सोचना ही नहीं, करना भी होगा; देखिए, अमेरिका और यूरोप के पास बहुत पैसा है, हमारे पास नहीं है। वो सारा खनिज ख़त्म किए जा रहे हैं आखिर में हमें वो महँगी कीमत पर बेचेंगे। हमें अब खुद के दम पर इससे लड़ना होगा। सोचिए जो हालात हैं, दुनियाभर से मानसून ख़त्म हो सकता है, बारिश नहीं होगी तो खेती कैसे होगी? आप हम क्या खाएंगे? अभी हर कोई इसे बहुत गंभीरता से नहीं ले रहा है। ज़मीन है नहीं जनसंख्या बढ़ती जा रही है। अनाज तो सभी को चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारें इस दिशा में काम तो कर रही हैं लेकिन आम लोगों और किसानों को भी इसके लिए जागरूक करना होगा। कहीं कहीं ब्यूरोक्रेसी के कारण भी दिक्कत होती है; सरकार की योजना का ठीक से पालन नहीं हो पाता। इसके लिए सभी देशों की मीडिया को आगे आना होगा। मैं अपने हर शिविर में प्राकृतिक खेती के साथ इस दिशा में काम कर रहा हूँ, लेकिन जितना ज़्यादा ये फैलेगा उतना बेहतर होगा।

प्राकृतिक खेती को आप सबसे बेहतर बताते रहे हैं, जबकि रासायनिक खेती को शुरू से बेहतर और उत्पादन के मामले में भी ठीक माना जाता रहा है।

-जब मैं कृषि की पढ़ाई कर रहा था तब सिखाया गया कि अधिक उत्पादन के लिए रासायनिक खाद ज़रूरी है, लेकिन एक बार जब अपने प्रोजेक्ट के सिलसिले में सतपुड़ा के मेलघाट गया तो वहाँ देखा बिना रासायनिक खाद के पेड़ फलों से कैसे लदे हैं; वापस आकर जब अपने प्राचार्य से सवाल किया तो वह जवाब नहीं दे पाए। इसके बाद मैंने अपने खेतों में काम करना शुरू कर दिया। फिर पिता जी की पारंपरिक खेती को समझा, गोबर की खाद से खेती करने पर क्या लाभ हो सकते हैं, इस पर काम शुरू किया। 1985 से 1988 तक अपने खेतों में काम किया जिसके परिणाम सामने आने लगे।

अभी किसान ख़राब फसल को लेकर परेशान हैं, उत्पादन की कमी से आर्थिक संकट उनके सामने है, क्या सलाह देंगे?

-इस समय तीन प्रकार की खेती हो रही है। रासायनिक, ऑर्गेनिक और प्राकृतिक। मैंने सबसे पहले रासायनिक, आर्गेनिक और प्राकृतिक का तुलनात्मक अध्ययन किया। प्राकृतिक खेती में बाकी दोनों के मुकाबले कम लागत से उत्पादन अधिक हो रहा था। प्राकृतिक खेती अधिक टिकाऊ है क्योंकि वह प्रकृति पर निर्भर है। इससे ओलावृष्टि, बारिश और सूखे में अधिक नुकसान नहीं होता है क्योंकि खेती प्रकृति के अनुरूप ढल जाती है। किसान भाई अगर इस तरफ ध्यान दें तो नुकसान कम होगा, लागत भी कम आएगी। सबसे बड़ी बात इसमें ज़हरीला कीटनाशक इस्तेमाल नहीं होता।

अगर ऐसा है तो हर कोई प्राकृतिक खेती क्यों नहीं कर रहा है, किस बात का डर है?

जागरूकता की कमी है; आज कई जगह किसान एमएसपी की माँग पर अड़े हैं। उधर डब्लूटीओ कहता है सरकार बाजार में दखल ना दें, खुला बाजार चलने दो। सरकारें किसानों के हितों की सोचती हैं और एमएसपी तय कर देती हैं लेकिन वो इससे गलत बता देता है, धमकी देता है, दोहरी चुनौती है। कई देशों में कीमतों को लेकर किसान परेशान हैं। हमें स्थायी हल खोजना होगा, जो प्राकृतिक खेती से ही संभव है। इसके लिए बड़े स्तर पर सरकार के साथ अभियान चलाना होगा।

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