रोगों का भय फैलाकर हुआ मिनरल वाटर का बाज़ारीकरण

Update: 2015-11-09 05:30 GMT

ब्बे के दशक तक नल, कुएं, हैण्डपम्प और बोरवेल का पानी लोग निसंकोच पी लेते थे। मैं 1997 में पहली बार दिल्ली गया था और चांदनी चौक पर सड़क किनारे बिकता पानी देखकर आंखें फटी की फटी रह गयी थी। पानी को बिकता देखना मुझ जैसे गाँव के लड़के के लिए बिलकुल चौंकाने वाली बात थी। 

वास्तव में इसी दौर में बोतलबंद पानी का बाज़ारीकरण हुआ, जिसे मिनरल वाटर के नाम से जाना गया। अचानक से पीलिया, हिपेटाइटिस और पेयजल-जन्य रोगों की चर्चाओं ने जोर पकडऩा शुरू कर दिया। एक ज़माना था जब साफ-सुथरी जगहों और साफ-सुथरे बर्तनों या घड़े में रखा पानी हम बगैर सोचे पी लेते थे। फिर अचानक हम अपनी सेहत को लेकर इतने ज्यादा गंभीर और भयभीत हो गए कि ज्यादा प्यास लगने और मिनरल वाटर ना मिलने पर प्यासा ही रहना पसंद करने लगे। बाहर के पानी को छूने में भी भय होने लगा। 

मेरा दावा है कि वर्तमान दौर में जितने भी युवा और बुजुर्ग हैं इन्होंने 15 साल पहले तक मिनरल वाटर को छुआ तक नहीं होगा और ऐसे में एक सवाल उठना बेहद लाज़मी है कि 15 साल पहले कितने लोग हेपेटाइटिस या पीलिया के शिकार हुए, कहीं किसी जानकार के पास आंकड़े हैं जिसमें ये जानकारी मिले की 90 के दशक के 15 साल पहले और 15 साल बाद पेयजल की वजह से कुल कितनी मौतें हुई। 

तय है आंकड़ें यदि मिल जाएं तो मेरी बात का मतलब सबको समझ आ जाएगा। अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर पीने के पानी को लेकर भय की शुरुआत कहां से हुई और क्यों हुई। क्यों अचानक हम शहरी भारतीय अपनी सेहत को लेकर ज्यादा फिक्रमंद होते चले गए। क्या वाकई मिनरल वाटर आपकी सेहत को बेहतर करने में मददगार साबित हुए। मुझे नहीं लगता कि हमें ज्यादा भरोसा करना चाहिए।  

ब्रांड वालों को भी करना पड़ा बदलाव

अब जब मिनरल और बोतलबंद पानी पर बात हो ही रही है तो एक्वाफीना का भी जि़क्र किया जाए। एक्वाफीना पेप्सिको कंपनी से तैयार किए जाने वाले बोतलबंद पानी का एक ब्रांड है। यूएसए टुडे में 2007 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में पहली बार बताया गया था कि पेप्सिको को अपने ब्रांड एक्वाफीना के लेबल पर लिखे दावे जैसे 'प्राकृतिक स्रोत का पानी’ को बदलना होगा। अपने उत्पाद को दूसरे से बेहतर बताने की प्रतिस्पर्धा के चलते उत्पादों के लेबल पर भ्रामक शब्दों का इस्तेमाल कर उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करना आम बात है। 

कॉर्पोरेट अकाउंटेबलिटी इंटरनेशनल नामक संस्थान के भारी विरोध पर पेप्सिको को अपने उत्पाद के लेबल पर साफ  लिखना पड़ा कि एक्वाफीना का पानी साधारण नल से भरा गया है ना कि इसे किसी प्राकृतिक स्रोत से लिया। भारी विरोध और जांच के बाद पेप्सिको ने निर्णय़ लिया कि लेबल पर पीडब्ल्यूएस (पब्लिक वॉटर सोर्स) लिखा जाएगा। लोगों का विरोध कोका-कोला के दासानी ब्रांड वाले मिनरल वाटर पर भी देखने को मिला। चूंकि व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में इन बड़ी कंपनियों को बना रहना था इसलिए फिर ग्राहकों को अलग तरह से अपने ब्रांड्स की ओर लुभाया गया। किसी ने रिवर्स ओस्मोसिस की बात की, तो किसी ब्रांड ने 300 फीसदी से ज्यादा ऑक्सीजन का दावा किया और किसी अन्य ब्रांड ने माइक्रोन्युट्रिएंट्स से भरपूर मिनरल वाटर की बात कर बाज़ार में अपनी पैठ बनानी शुरू की और स्थानीय बाज़ार के हिसाब से छोटे प्लेयर्स भी मैदान में कूद गए। बोतलबंद पानी के अलावा प्लास्टिक के छोटे पाउच में भी धंधा होने लगा। अब तो हालात ये हैं कि 15 रुपए से लेकर 70 रुपए प्रति लीटर का बोतल बंद पानी बाज़ार में बिक रहा है और इसका उपभोक्ता हमेशा खुशी से इसे पी रहा। ये तो खुद उपभोक्ता खुद जाने कि वो हिपेटायटिस या पीलिया से कितना सुरक्षित हैं।          

हेल्थ इंड्स्ट्री का जबरदस्त फैलाव

पिछले दो दशक में हेल्थ इंड्स्ट्री का जबरदस्त फैलाव हुआ है जो कि अच्छी बात है, लेकिन इस इंड्स्ट्री के अलावा पर्यटन इंड्स्ट्री भी जमकर पनपने लगी। पानी-सेहत का सीधा संबंध है सफर या एक जगह से दूसरी जगह भ्रमण के दौरान साफ  पानी आपकी सेहत को संतुलित बनाए रखने में मदद करता है। 'साफ जल पीएं, सेहत सम्हालें’ यह वाक्य सेहत के लिए चौकन्ना रहने की बात तो है ही लेकिन इसमें बाज़ार भी छुपा है। इस बाज़ार को भांप पाने में मिनरल वाटर इंड्स्ट्री सफल हो गयी है। सेहत और पानी के संबंध को खौफ की तरह देखा जाने लगा है। 

वैसे एक अध्ययन होना बेहद जरूरी है कि जिन इलाकों में लोगों ने आज तक बोतलबंद पानी को छुआ तक नहीं हैं, वहां पीलिया, हेपेटाइटिस से कितने लोग मर गए। खैर! आंकड़ों पर गौर फरमा लें तो पता चलता है कि सन 2013 तक भारत वर्ष में मिनरल वाटर का बाज़ार 6000 करोड़ का था जो कि प्रतिवर्ष 22 फीसदी की दर से वृद्धि कर रहा है और उम्मीद की जा रही है कि सन 2018 तक ये बाज़ार 16000 करोड़ का हो जाएगा। बोतलबंद पानी में सेहत और शुद्धता का दावा करने वाली महज़ 5 कंपनियों के पास इस बाज़ार का लगभग 70 फीसदी हिस्सा है। 

जिस पानी को आप पी रहे हैं उसका स्रोत साफ है, बर्तन साफ है और आस-पास गंदगी नहीं है तो उसे बेशक पिया जा सकता है। अब मेरी इस बात पर आपके मन में एक सवाल आ सकता है कि आखिर हमें कैसे पता चलेगा कि सड़क किनारे प्याऊ, नल या किसी होटल में रखे पानी का स्रोत क्या है, सच बात है। सवाल जायज़ है तो क्या आपको पता है बोतलबंद पानी का स्रोत क्या है। 

(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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