कोविड-19 ने देश में ब्लड ट्रांसफ्यूजन प्रणाली की खामियों को किया उजागर, जल्द किया जाना चाहिए सुधार

भारत में लोगों को सही समय पर पर्याप्त और सुरक्षित खून का मिल पाना अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। हब-एंड-स्पोक मॉडल ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे ब्लड बैंकों को उन्नत तकनीकों के साथ क्षेत्रीय हब से जोड़ने में सक्षम बनाएगा।

Update: 2021-06-18 11:03 GMT

ग्रामीण भारत में रक्तदान को लेकर गलत सूचना और भ्रांतियों के कारण प्रभावित हुई है। फोटो: पिक्साबे

सरोज के पिता को मल्टीपल मायलोमा (प्लाज्मा कोशिकाओं का एक कैंसर) था और उन्हें महीने में दो बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती है। (ब्लड ट्रांसफ्यूजन एक मेडिकल प्रक्रिया है जिसमें दान किया गया खून एक पतली नली से हाथ की नस में चढ़ाया जाता है।) वह हर अस्पताल या ब्लड बैंक में अपने परिवार और दोस्तों से अपने पिता को दी गई यूनिट के बदले रक्तदान करने के लिए आग्रह करती थीं। उन्होंने अपने पिता के जीवन के अंतिम दिन यानी लगभग आठ महीने से अधिक समय तक असहाय रूप से रक्तदान करने वालों की तलाश की।

मध्य प्रदेश के नागोड की रहने वाली सरोज ने बताया कि सतना जिले और आस-पास के अन्य शहरों में स्थित अस्पतालों और ब्लड बैंकों में उनका अनुभव काफी बुरा था। सरोज के अनुभव के अनुसार, भारत में कई मरीजों और उनके परिवारों को खून की सख्त जरूरत पड़ती है, वहीं इस मामले में ग्रामीण भारत में स्थिति और भी भयावह है।

ग्रामीण भारत के लोगों के पास मदद की अपील करने के लिए व्हाट्सएप ब्रॉडकास्ट समूह नहीं हैं, और ना ही सोशल मीडिया में उनकी ज्यादा लोगों तक पहुंच है। ऐसे में उनके लिए रक्तदाता की तलाश करना और भी मुश्किल होता है और यह स्थिति बहुत भयावह हो जाती है।

भारत में लोगों को सही समय पर पर्याप्त और सुरक्षित खून का मिल पाना अब भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, देश में रक्त आवश्यकता को पूरा करने के लिए कम से कम एक प्रतिशत आबादी को रक्तदान करना चाहिए। भारत में, वर्तमान में केवल 0.84 प्रतिशत जनसंख्या ही स्वेच्छा से रक्तदान करती है। इसकी वजह से देश में 20 लाख यूनिट से अधिक रक्त की कमी रह जाती है।

रक्त की कमी भी रक्त बैंकों के बीच खराब संपर्क और संचार के परिणामस्वरूप होती है। फोटो: पिक्साबे

अधिक ब्लड यूनिट्स और बेहतर प्रबंधन की है जरूरत

भारत की ब्लड ट्रांसफ्यूजन प्रणाली काफी अव्यवस्थित है। सामान्य तौर पर यह समझा जाता है कि ज्यादा ब्लड बैंक खोलने से लोगों को आसानी से खून उपलब्ध हो पाएगा, लेकिन सच्चाई यह नहीं है। मानक के अनुसार प्रति 10 लाख लोगों पर 2.2 ब्लड बैंक होने चाहिए, इस हिसाब से भारत को ज्यादा ब्लड बैंकों की जरूरत नहीं है। इसके बजाए भारत को केवल अधिक बल्ड यूनिट्स और बेहतर प्रबंधन के ज़रिए लोगों की मांग के अधार पर उन्हें खून उपलब्ध कराए जाने की जरूरत है।

खून उपलब्ध नहीं हो पाने का एक अन्य कारण विभिन्न ब्लड बैंकों के बीच बेहतर कनेक्टिविटी या संचार का नहीं होना भी है। इसकी वजह से जरूरतमंदों को सही समय में खून उपलब्ध नहीं हो पाता है। खून और इसके घटकों को अलग-अलग तरीके से संसाधित और संग्रहीत नहीं कर पाने के कारण ग्रामीण ब्लड बैंकों में रक्त का कम उपयोग होता है, और इसके साथ ही इसकी बर्बादी भी होती है।

अपने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के 2015-16 के बजट में भारत सरकार ने ग्रामीण इलाकों को रक्त संग्रह और रक्त परिवहन वैन से लैस करने के लिए 20 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। लेकिन इस पहल के तहत सरकार अपने द्वारा तय लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाई।

इस बीच, कोविड-19 महामारी के कारण लोगों के लिए समान रूप से खून की उपलब्धता पहले से ज्यादा मुश्किल हो गई। खून की कमी का यह संकट ग्रामीण और अर्ध-नगरीय इलाकों में बढ़ गया है। पिछले कई महीनों में, स्वैच्छिक तौर पर रक्तदान करने वालों की संख्या में भारी गिरावट आई है, क्योंकि महामारी की वजह से रक्तदान अभियानों को रद्द करना पड़ा। कोरोनो वायरस के डर और लॉकडाउन की वजह से भी रक्तदान मे कमी आई है।

COVID-19 महामारी के कारण रक्त की उपलब्धता विशेष रूप से प्रभावित हुई है। फोटो: पिक्साबे

रक्तदान को लेकर है कई तरह की भ्रांतियां

कई बार गलत सूचनाओं और भ्रांतियों की वजह से भी मरीजों को सही समय पर खून नहीं मिल पाता है। यह समस्या ग्रामीण इलाकों में ज्यादा होती है। लोगों को लगता है कि रक्तदान करने से उनका शरीर कमजोर हो जाएगा या वे बीमार हो जाएंगे। कई लोगों को लगता है कि रक्तदान की प्रक्रिया में बहुत दर्द होता है और यह काफी डरावना है। उन्हें लगता है कि इसकी वजह से उनकी तबीयत बिगड़ सकती है और उनका रोज का कामकाज बाधित हो सकता है। कई महिलाएं सोचती हैं कि वे रक्तदान नहीं कर सकतीं, और कई लोगों का मानना है कि रक्तदान से उन्हें एचआईवी संक्रमण होने का खतरा है। रक्तदान के संबंध में अज्ञानता की वजह से कई तरह की भ्रांतियां हैं।

सरोज अकेली नहीं हैं, जिन्हें इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा है। स्वैच्छिक रक्तदान करने वालों की संख्या में कमी के कारण गांवों, कस्बों और यहां तक कि शहरों में भी सरोज जैसी कई कहानियां हैं। ब्लड बैंक और अस्पताल मरीज के परिवारों पर उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए रक्त को बदलने के लिए दबाव डालते हैं।

स्वास्थ्य एजेंडे में रक्त को कम प्राथमिकता दिए जाने की वजह से ब्ल़ड ट्रांसफ्यूजन के बुनियादी ढांचे में कम खर्च किया जाता है। इसकी वजह से स्वैच्छिक रक्तदान करने वालों की संख्या कम है और रक्त की समान उपलब्धता भी प्रभावित होती है।

देश को शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में एक स्थायी स्वैच्छिक रक्तदान कार्यक्रम बनाने की तत्काल आवश्यकता है। फोटो: पिक्साबे

लोग आपात स्थिति में ही करते हैं रक्तदान

भारत में एक और बड़ी चुनौती यह है कि लोग रक्तदान तभी करते हैं जब कोई आपात स्थिति हो। जब अपने परिवार और दोस्तों के बीच किसी को इसकी जरूरत होती है तभी उन्हें रक्तदान का ख़याल आता है।

देश को शहरी और ग्रामीण इलाकों में एक स्थायी स्वैच्छिक रक्तदान कार्यक्रम बनाने की तत्काल आवश्यकता है। सरकार, सिविल सोसाइटी समूहों, सामुदायिक नेताओं, निजी कंपनियों और मीडिया के सामूहिक प्रयासों के माध्यम से भ्रांतियों को दूर किया जाना चाहिए। और इसके साथ ही एक सामाजिक आदर्श के रूप में रक्तदान पर एक सांस्कृतिक बदलाव लाया जाना बेहद जरूरी है।

भारत की ब्लड ट्रांसफ्यूजन प्रणाली अप्रभावी और लोगों की पहुंच से बाहर है, क्योंकि इसे देश के स्वास्थ्य एजेंडे में उचित प्राथमिकता नहीं दी गई है।

हब-एंड-स्पोक मॉडल ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे ब्लड बैंकों को उन्नत तकनीकों के साथ क्षेत्रीय हब से जोड़ने में सक्षम बनाएगा। फोटो: पिक्साबे

हब-एंड-स्पोक मॉडल

ब्लड बैंकों की क्षमता में सुधार को लेकर किसी स्थायी समाधान की जरूरत है। हमें दुनिया भर के ब्लड ट्रांसफ्यूजन प्रणाली के सफल मॉडलों से सीखना होगा।

हब-एंड-स्पोक मॉडल छोटे ब्लड बैंकों, खासकर ग्रामीण इलाकों के ब्लड बैंकों को उन्नत तकनीकों के साथ एक क्षेत्रीय हब से जुड़ने में मदद करेगा। इसके ज़रिए एक उच्च प्रशिक्षित लोगों की टीम रक्त एकत्र करेगी और रक्त व उसके घटकों को बेहतर तरीके से संसाधित करेगी।

उसके बाद, स्थानीय मांग और जरूरतों को पूरा करने के लिए रक्त और उसके घटकों को ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित विभिन्न भंडारण केंद्रों या रक्त बैंकों में ले जाया जा सकता है।

इस मॉडल के ज़रिए सूची प्रबंधन प्रणाली का इस्तेमाल करते हुए रक्त की बर्बादी को कम किया जा सकता है और सबसे दूर-दराज के स्थानों में भी रक्त व रक्त उत्पादों की नियमित उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सकता है।

कोविड-19 महामारी ने इस तथ्य को सामने लाया है कि जब स्वास्थ्य देखभाल क्षमता और ध्यान महामारी की ओर जाता है, तब भी रक्त किसी भी स्वास्थ्य प्रणाली के लिए बेहद जरूरी होता है।

क्या आप कभी बिना खून के अपने शरीर की कल्पना कर सकते हैं? जब हम महामारी के बाद की दुनिया में अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकताओं को लेकर विचार करते हुए इसमें सुधार करेंगे, तो उस समय 'मरीजों को रक्त की सही समय पर पर्याप्त उपलब्धता' के इस मसले को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है।

हमें भारत में रक्त की कमी के जटिल मुद्दे को लेकर एक दूरदर्शी दृष्टिकोण रखना होगा, ताकि एक ऐसे देश की कल्पना की जा सके जहां रक्त की कमी की वजह से किसी की मौत ना हो।

(सूर्यप्रभा सदाशिवन को नीति अनुसंधान और वकालत में करीब 15 वर्षों का अनुभव है। वह एक प्रमुख नीति अनुसंधान और सलाहकार फर्म, चेज़ इंडिया में स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक क्षेत्र का नेतृत्व करती हैं। यह उनके व्यक्तिगत विचार हैं।)

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