दुनिया भर की महिलाओं में क्यों बढ़ रहा है स्तन कैंसर
स्तन कैंसर दुनिया भर में महिलाओं की मौत का एक प्रमुख कारण है। इस बीमारी के आंकड़ों में लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है, जो चिंता की बात है। चिकित्सक मानते हैं कि मृत्यु दर को कम करने के लिए महिलाओं में कैंसर के लक्षणों के प्रति जागरूकता ज़रूरी है।
अक्टूबर को गुलाबी महीना कहा जाता है। गुलाबी रंग स्तन कैंसर जागरुकता से जुड़ा है। हर साल इस महीने को स्तन कैंसर जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है। वहीं 13 अक्टूबर को स्तन कैंसर जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
नेशनल ब्रेस्ट कैंसर अवेयरनेस मंथ की शुरुआत 1985 में हुई थी। ग्लोबोकॉन 2020 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में हर चार मिनट में एक महिला को स्तन कैंसर का पता चलता है। प्रतिवर्ष लगभग 1,78,000 नए मामलों में निदान के साथ स्तन कैंसर की घटनाओं ने सर्वाइकल कैंसर को पीछे छोड़ दिया है।
चिकित्सक मानते हैं कि बदलती जीवन-शैली और तनाव का स्तर काफी हद तक स्तन कैंसर के लिए ज़िम्मेदार हैं। वसायुक्त उत्पादों का अधिक सेवन, कॅरियर को प्राथमिकता देने के कारण लड़कियों के विवाह और पहले बच्चे को जन्म देने की औसत आयु 25 से 30 वर्ष होने तथा बच्चे को स्तनपान न कराने के कारण भारत में हर साल स्तन कैंसर के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार स्तन कैंसर का पारिवारिक इतिहास, विशेष रूप से माँ या बहन जैसे करीबी रिश्तेदारों में इसका होना आपके जोखिम को बढ़ा सकता है। इसके अलावा मोटापा, कम उम्र में पीरियड्स शुरू होना, मेनोपॉज में देरी, बिना डॉक्टर की सलाह के हार्मोन्स का सेवन, धूम्रपान और शराब का सेवन करने वाली महिलाओं में इसका ख़तरा काफी हद तक बढ़ जाता है।
स्तन में कुछ कोशिकाओं के असामान्य रूप से बढ़ने के कारण स्तन कैंसर होता है। ये कैंसर कोशिकाएँ, स्वस्थ कोशिकाओं की तुलना में अधिक तेज़ी से विभाजित होती हैं और जमा होने लगती हैं, जिसके कारण गांठ बन जाती है। यह कोशिकाएँ स्तन के माध्यम से लिम्फ नोड्स या शरीर के अन्य भागों में भी फैल सकती हैं। स्तन में गांठ को आसानी से महसूस किया जा सकता है। स्तन कैंसर के लक्षणों में स्तनों में गांठ, भारीपन और दर्द महसूस होता है। सबसे बड़ी पहचान दोनों स्तनों के आकार में फर्क दिखने लगता है।
कई बार महिलाएँ स्तन कैंसर के लक्षणों का पता न होने के कारण इसे नज़र -अंदाज़ कर देती हैं या फिर इस बात को स्वीकार नहीं करना चाहतीं कि उन्हें कैंसर है, इसलिए महिलाओं को यह सलाह दी जाती है कि खुद से अपनी जाँच करना सीखें या नियमित रूप से अपनी जाँच कराने जाएँ। इससे बीमारी के शुरुआती चरण में ही पता करने में मदद मिलेगी, जिससे इलाज करना आसान हो जाएगा। जिन सामान्य लक्षणों की जाँच करनी है, उनमें नहाते समय साबुन लगे हाथों से स्तन जाँचना सबसे सही तरीका है।
नहाने से पहले शीशे में अच्छी तरह से देखें कि कहीं कोई लंप, त्वचा में बदलाव या किसी तरह का डिस्चार्ज तो नहीं है। निप्पल बाहर की जगह स्तन के अंदर तो नहीं धंस गया है, निप्पल पर दाद या रैशेज तो नहीं हो रहे हैं। इसके साथ ही महिलाएं अपनी बगलों की जाँच करना न भूलें।
चिकित्सकों के मुताबिक, स्तन कैंसर की पहचान मैमोग्राफी द्वारा संभव है, जिसमें छोटी से छोटी गांठ का पता लगाया जा सकता है। 45 से 65 साल की प्रत्येक महिला को हर दो साल में एक बार मैमोग्राफी ज़रूर करवानी चाहिए। अपने वजन पर नियंत्रण के साथ महिलाओं को हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी से भी बचना चाहिए। स्तन कैंसर के जोखिम को कम करने के लिए महिलाओं को खट्टे फल, सब्जियां और साबुत अनाज से भरपूर संतुलित आहार को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए। शराब और धूम्रपान के प्रयोग से बचना चाहिए। इसके साथ ही रोजमर्रा के जीवन में प्रतिदिन सवेरे आधे घंटे का व्यायाम, सुबह-शाम की सैर को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।
हैदराबाद निवासी 34 वर्षीय सारा अरोड़ा एक कामकाजी महिला हैं। अपना अनुभव साझा करते हुए वह बताती हैं कि उन्हें कुछ वर्ष पूर्व स्तन कैंसर हुआ था। उनके माता-पिता जयपुर रहते हैं, इसलिए सहयोग के लिए उन्होंने जयपुर आकर इलाज करवाने का फैसला किया। उन्होंने जयपुर के अस्पताल में अपना स्तन कैंसर का ऑपरेशन कराया और स्तन को प्लास्टिक सर्जरी से दोबारा बनवाया। ये दोनों ऑपरेशन उन्होंने साथ-साथ करवाए। उनका यह ऑपरेशन सफल रहा। सारा अब पहले की तरह अपनी बेटी के साथ एक सामान्य जीवन जी रही हैं।
सारा कहती हैं, "मैंने बहुत कम उम्र में ही इस बीमारी को झेला है, लेकिन इसके बावजूद मेरा रवैया जीवन के प्रति हमेशा सकारात्मक ही रहा। यही वजह है कि मैंने इस बीमारी पर विजय पा ली। मेरा अनुभव कहता है कि इस ऑपरेशन के बाद महिलाएं पहले की तरह सामान्य दिखने लगती हैं। वे कहती हैं कि ऐसी स्थिति आने पर महिलाओं को इस ऑपरेशन से घबराना नहीं चाहिए। अगर उनके सामने स्तन निकलवाने जैसी स्थिति आती है तो सबसे पहले उन्हें एक काबिल प्लास्टिक सर्जन से मिलना चाहिए। प्लास्टिक सर्जरी तकनीक ऑपरेशन किए गए स्तन को दूसरे स्तन के सापेक्ष सुडौल बना देता है।"
जयपुर के जाने-माने बर्न और प्लास्टिक सर्जन डॉ. प्रदीप गोयल के मुताबिक, स्तन कैंसर किसी भी महिला के लिए भयावह सपने की मानिंद है। महिलाओं में होने वाले स्तन कैंसर से उनका पूरा जीवन ही बदल जाता है। स्तन कैंसर से संघर्ष की जंग सिर्फ शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी काफी कठिन होती है। क्योंकि ना सिर्फ इस रोग का इलाज लंबा और कष्टकारी है, बल्कि इस अवधि में रोग से जुड़े भ्रम, ठीक न होने का डर, दवाइयों का शरीर पर प्रभाव, बालों, सौंदर्य और सेहत पर उसके प्रभाव एक महिला के मानसिक स्वास्थ्य को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। महिलाओं को यह समझना होगा कि यह बीमारी लाइलाज नहीं है। इसे उपचार से ठीक किया जा सकता है।
डॉ. प्रदीप बताते हैं, "स्तन कैंसर आज 35 साल से कम उम्र की महिलाओं में सबसे अधिक होने वाली बीमारी बन गई है। इलाज के लिए स्तन निकलवा कर सर्जरी भी की जा रही है। कैंसर फिर से न हो, इस डर की वजह से पीड़ित महिलाएँ पूरा स्तन ही निकलवा रही हैं, जबकि 60-65 फीसदी महिलाओं को ही पूरा स्तन निकलवाने की जरुरत होती है। यह सर्जरी पूरी तरह से सुरक्षित है।"
डॉ. प्रदीप कहते हैं,"मैंने महसूस किया है कि स्तन निकलवाने के बाद महिलाएँ काफी मानसिक तनाव में रहती हैं। क्योंकि न केवल परिवार, बल्कि समाज में भी उन्हें रहने के लिए खुद का खास ध्यान रखना पड़ता है, इसलिए स्तन फिर बनवाना बहुत जरूरी हो गया है। यही कारण है कि अब महिलाएँ स्तन कैंसर के उपचार के बाद प्लास्टिक सर्जन से संपर्क करने लगी हैं। हमारे यहाँ अभी इस सर्जरी के प्रति लोगों में जागरुकता का अभाव है।"
उनका मानना है कि यदि स्तन कैंसर के दौरान ही स्तन को प्लास्टिक सर्जरी द्वारा दोबारा बनवाया जाए, तो मरीज को एक ही सर्जरी में दो फायदे हो सकते हैं। दोबारा सर्जरी कराने में न केवल खर्च बढ़ता है, बल्कि अस्पताल में भी आठ दिन तक भर्ती रहना पड़ता है। इसलिए स्तन कैंसर सर्जरी के दौरान ही, मरीज को इस बात के लिए तैयार करना चाहिए। वह बताते हैं कि सरकारी अस्पतालों में इसका कोई खर्च नहीं आता है।
ऑटोलोगस डीआईआईपी फ्लैप तकनीक से ही ब्रेस्ट री-कंस्ट्रक्शन किया जाता है। इसमें एब्डोमिनल बैली नाभि के नीचे का हिस्सा और कमर की तरफ से फैट लिया जाता है। इसे स्तन पर सर्जरी करके लगाया जाता है। करीब पाँच से छह घंटे की सर्जरी के बाद ब्रेस्ट री-कंस्ट्रक्शन हो जाता है। यह एक अच्छी और बेहतरीन तकनीक है और इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं हैं। इस सर्जरी का एक फायदा यह होता है कि अगर किसी महिला का वजन अधिक है, तो उसका फैट भी कम हो जाता है। ऑपरेशन के बाद सात से आठ दिन बाद मरीज को छुट्टी मिल जाती है।
बाहरी कृत्रिम अंग को पहनने में एक महिला को शर्म महसूस हो सकती है, लेकिन इस ऑपरेशन के बाद सब कुछ पहले की तरह सामान्य हो जाता है। अपने शरीर से संतुष्टि और आईने का आत्म-सम्मान के साथ सामना करने की उसमें ताकत आ जाती है। कैंसर के इलाज के लिए अनेक पद्धतियों का सहारा लिया जाता है। कीमोथेरेपी, रेडिएशन, हार्मोन थेरेपी, सर्जरी को प्रयोग में लाया जाता है। यह कैंसर के स्वरूप और व्यक्ति को प्रभावित करने वाले चरण पर निर्भर करता है। कुछ सामान्य बातों और उपायों को ध्यान में रखकर इसके ख़तरे से बचा जा सकता है।
(गीता यादव, जयपुर, राजस्थान की वरिष्ठ पत्रकार हैं)