सरकार के सर्वेक्षण में राष्ट्रीय स्तर पर लिंगानुपात में आया सुधार, 914 से बढ़कर 919 हुआ

Update: 2017-03-01 18:57 GMT
मातृ-शिशु मृत्यु। 

नई दिल्ली (भाषा)। सरकार के नवीनतम सर्वेक्षण में 2015-16 के दौरान जन्म के समय लिंगानुपात में सुधार तथा शिशु मृत्यु दर में गिरावट समेत अहम स्वास्थ्य सूचकांकों में सकारात्मक रुझान सामने आया है।

वर्ष 2015-16 के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 (एनएफएचएस-4) में छह लाख परिवारों से सूचनाएं जुटाई गयीं। उसमें सात लाख महिलाओं और 1.3 लाख पुरुषों पर अध्ययन किया गया। स्वास्थ्य सचिव सी के मिश्रा ने कहा, ‘‘शिशु मृत्युदर एनएफएचएच-3 (2005-06) और एनएफएचएस- 4 के बीच जिंदा जन्म लेने वाले प्रति 1000 पर 57 से घटकर 41 रह गयी। पिछले दशक में करीब करीब सभी राज्यों में आईएमआर में काफी गिरावट आई है। त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, झारखंड, अरुणाचल प्रदेश, राजस्थान और ओडिशा में उसमें 20 फीसदी से अधिक कमी आई। ''

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मिश्रा ने कहा, ‘‘शिशु मृत्युदर एनएफएचएच-1 (1992-93) में प्रति 1000 पर 79 से घटकर एनएफएचएस- 4 में प्रति 1000 पर 41 हो रह गई।''

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार सर्वेक्षण के नतीजे दर्शाते हैं कि इस क्षेत्र पर संगठित प्रयास और पूरा ध्यान देने से नतीजे में सुधार आता है। सर्वेक्षण यह भी दर्शाता है कि पिछले दशक में जन्म के समय लिंगानुपात (प्रति 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या) राष्ट्रीय स्तर पर 914 से सुधरकर 919 हो गया। केरल में यह सर्वाधिक रहा जहां 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या 1047 रही। मेघालय 1009 के साथ दूसरे नंबर और छत्तीसगढ़ 977 के साथ तीसरे नंबर पर रहा। हरियाणा में भी अहम बढ़ोत्तरी हुई और यह 762 से बढ़कर 836 हो गई।

इसी तरह, संस्थानात्मक प्रसव में भी 40 फीसदी अंक की वृद्धि हुई और यह एनएफएचएस-3 के 38.7 फीसदी से बढ़कर एनएफएचएस-4 में 78.9 फीसदी हो गया। मिश्रा ने कहा, ‘‘जननी सुरक्षा योजना के माध्यम से लक्षित पहल ने अच्छे नतीजे दिए।''

सर्वेक्षण के अनुसार कुल प्रजनन दर एनएफएचएस-3 के प्रति महिला 2.7 बच्चे से घटकर 2.2 रह गए जो 2.1 के लक्ष्य के करीब है।

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