सर्दियों में चाय का स्वाद भी और सेहत भी

Update: 2016-11-05 19:55 GMT
प्रतीकात्मक फोटो

पारंपरिक ज्ञान को सही तरह से अपनाया जाए तो स्वाद के साथ सेहत की बेहतरी भी होती है। आदिवासियों का ज्ञान तो पहले से ही जांचा, परखा और सदियों से अपनाया हुआ है और इस ज्ञान के पीछे इनके तमाम सार्थक तर्क भी होते हैं और औषधीय गुणों को समाए हुए इस तरह के पारंपरिक चाय-पेय को समय-समय पर हम जैसे शहरी लोगों द्वारा अपनाया जाए तो रोगों से कोसों दूर रहने में हमें मदद मिलेगी। ऐसी स्वादिष्ट चाय पिलाकर मेहमानों से वाह-वाही बटोरते वक्त एक बार दिल से हमारे देश के पारंपरिक ज्ञान को सलाम जरूर ठोंक दीजिएगा।

नव सभ्यता और संस्कृति जैसे-जैसे विकसित और अग्रसर होते गए, इसके साथ-साथ हमने पेड़-पौधों और उनके तमाम अंगों के साथ तरह-तरह के परिक्षण भी करने शुरू कर दिए। चाय भी ऐसी ही एक वनस्पति है जो सभ्यता के दौर के साथ हमारे दैनिक जीवन का एक अहम हिस्सा बनते गई। हालांकि यह बात कम ही लोग जानते होंगे कि चाय का सर्वप्रथम प्रयोग एक औषधि के तौर पर किया गया था। जड़ी-बूटियों के जानकार समय-समय पर तमाम रोगों के इलाज के लिए चाय की ताजा पत्तियों और इसके बीजों को औषधि के तौर पर इस्तमाल करते गए। जैसे-जैसे समय बीता, चाय हमारी जिंदगी का हिस्सा और दिन के शुरुआत में पहला पेय के रूप में हमारे परिवारों के बीच प्रचलित हो गई। खाद्य और पेय पदार्थों को औषधीय गुणों के आधार पर अपने दैनिक जीवन संतुलित मात्रा में लेने से कई रोगों से दूर-दूर तक आपका पाला नहीं पड़ता है और इस तरह के औषधीय गुण लिए भोज्य और पेय पदार्थों को आधुनिक विज्ञान "क्रियाशील खाद्य पदार्थ और पेय" यानि "फंक्शनल फूड्स एंड बेवरेज" मानता है। चाय भी एक फंक्शनल फूड और बेवरेज की श्रेणी में रखी गयी है। संतुलित मात्रा में चाय का सेवन अनेक रोगों को आपके नजदीक भटकने भी नहीं देता।

समय-समय पर चाय के अनेक प्रकारों और सेवन की विधियों पर शोध होते रहें हैं और हमने अपनी सहुलियतों के अनुसार अलग अलग तरह की चायों को अपने जीवन का हिस्सा बनाया है। ग्रीन टी के नाम से प्रचलित गौती चाय (लेमन ग्रास) की बात हो या संतरे के छिल्कों की सुगंध लिए ओरेंज टी या मुलेठी के स्वाद लिए मीठी चाय। हर एक तरह की चाय का एक खास स्वाद और औषधीय गुण है। भारत वर्ष के सुदूर जंगलों और देहातों क्षेत्रों में घूमते फिरते मुझे कई प्रकार की चायों की चुस्कियां लेने का मौका मिला। मेरे अपने अनुभवों को थोड़ा आप सब के साथ भी बांटता चलूं।

फोटो साभार: गूगल

काली चाय

पातालकोट अक्सर आना जाना लगा रहता है और यहां आदिवासियों के बीच चाय मेहमान नवाज़ी का एक अहम हिस्सा है। जबरदस्त मिठास लिए ये चाय बगैर दूध की होती है और चाय की चुस्की लेते हुए जब इन आदिवासियों से इस चाय की ज्यादा मिठास की वजह पूछी जाए तो जवाब भी उतना ही मीठा मिलता है, “आपके और हमारे बीच संबंधों में इस चाय की तरह मिठास बनी रहे।” खैर, इस चाय को तैयार करने के लिए तीन कप पानी में एक चम्मच चाय की पत्ती और तीन चम्मच शक्कर को डालकर उबाला जाता है। जब चाय लगभग एक कप शेष रह जाती है, इसे उतारकर छान लिया जाता है और परोसा जाता है। हर्बल जानकारों के अनुसार मीठी चाय दिमाग को शांत करने में काफी सक्रिय भूमिका निभाती है यानि यह तनाव कम करने में मदद करती है। आधुनिक शोध भी चाय के इस गुण को प्रमाणित करते हैं। सच ही है, यदि चाय की एक मिठास रिश्तों में इस कदर मजबूती ले आए तो अपने आप हमारे जीवन से तनाव छू मंतर हो जाए।

गौती चाय

बुंदेलखंड में आपका आदर सत्कार अक्सर गौती चाय या हरी चाय से किया जाता है। लेमन ग्रास के नाम से प्रचलित इस चाय का स्वरूप एक घास की तरह होता है। हल्की सी नींबू की सुंगध लिए इस चाय की चुस्की गजब की ताजगी ले आती है। लेमन ग्रास की तीन पत्तियों को हथेली पर कुचलकर दो कप पानी में डाल दिया जाता है और उबाला जाता है। स्वादानुसार शक्कर डालकर इसे तब तक उबाला जाता है जब तक कि यह एक कप बचे। जो लोग अदरक का स्वाद पसंद करते हैं, वे एक चुटकी अदरक कुचलकर इसमें डाल सकते हैं। इस चाय में भी दूध का उपयोग नहीं होता है। गौती चाय में कमाल के एंटीओक्सीडेंट गुण होते हैं, और शरीर के अंदर किसी भी प्रकार के संक्रमण को नियंत्रित करने में गौती चाय काफी असरकारक होती है। यहां के आदिवासियों की मानी जाए तो यह चाय मोटापा कम करने में काफी सक्षम होती है। आधुनिक शोध भी इस तथ्य को प्रमाणित करते दिखाई देती है। हरी चाय वसा कोशिकाओं यानि एडिपोसाईट्स के निर्माण को रोकती है, इसी वजह से दुनिया के अनेक देश गौती चाय को मोटापा कम करने की औषधि के तौर पर देख रहें हैं और इस पर निरंतर शोध जारी है। नई शोधें बताती है कि वसा और कोलेस्ट्राल को कम करने वाले प्रोटीन काईनेस को क्रियाशील करने में गौती चाय महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

मुलेठी चाय

सौराष्ट्र में जेठीमद चाय के नाम मशहूर इस चाय को मध्यभारत में मुलेठी चाय के नाम से जाना जाता है। साधारण चाय तैयार करते समय चुटकी भर मात्रा मुलेठी की डाल दी जाए तो चाय में एक नयी तरह की खुश्बु का संचार होता है और चाय स्वादिष्ठ भी लगती है। दमा और सर्दी खाँसी से परेशान लोगों को इस चाय को प्रतिदिन दिन में दो से तीन बार लेना चाहिए, माना जाता है कि मुलेठी के गुणों की वजह से चाय सेहत के हिसाब से अत्यंत लाभकारी होती है।

अनंतमूली चाय

पातालकोट में सर्द दिनों में अक्सर आदिवासी अनंतमूली चाय पीते हैं। अनंतमूल स्वभाव से गर्म प्रकृति का पौधा होता है, इसकी जड़ें निकालकर लगभग 1 ग्राम साफ जड़ पानी में खौलायी जाती है। इसी पानी में थोड़ी सी चाय की पत्तियों को भी डाल दिया जाता है। दमा और सांस की बीमारी से ग्रस्त रोगियों को इसे दिया जाता है। जब ज्यादा ठंड पड़ती है तो इसी चाय का सेवन सभी लोग करते हैं, माना जाता है कि यह चाय शरीर में गर्मी बनाए रखती है। अनंतमूल का उपयोग करने की वजह से इसे अनंतमूली चाय के नाम से जाना जाता है।

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