अब किसान भी बनेंगे कृषि विशेषज्ञ 

Update: 2017-03-19 17:11 GMT
किसानों को दिया जा रहा जैविक खेती का प्रशिक्षण

सुधा पाल, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। खेती के उचित प्रशिक्षण के जरिए प्रदेश के साथ देशभर के गाँवों को समृद्ध और किसानों को कृषि विशेषज्ञ बनाने की तैयारी जोरों पर है। पं. दीनदयाल उपाध्याय उन्नत कृषि शिक्षा योजना में किसानों को प्राकृतिक खेती के गुर सिखाए जा रहे हैं। प्रदेश के कई जिलों में 23 केन्द्रों का चयन किया गया है, जहां पर उन्नत किसान ही अन्य किसानों को प्रशिक्षण देते हैं।

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कृषि मंत्रालय की ओर से उन्नत भारत अभियान के तहत शुरू की गई इस योजना में एक केंद्र पर सालभर में पांच बार प्रशिक्षण शिविर लगाए जाएंगे। पांच दिन तक चलने वाले हर एक शिविर में 30 किसान जैविक खेती सीख सकेंगे। उतर भारत जोन में प्रशिक्षण के समन्वयक और पेशे से एक उन्न्त किसान आचार्य श्याम बिहारी बताते हैं, “किसान एक एकड़ की खेती से बिना यूरिया, कीटनाशक और रासायनिक उर्वरकों का बिना उपयोग किए कम से कम दो लाख रुपए तो कमा ही सकें, इसके लिए जोर दिया गया है।” उन्होंने बताया, “इस तरह से जैविक, प्राकृतिक खेती के साथ गो आधारित अर्थव्यवस्था में सुधार लाया जा सकता है। वह आगे बताते हैं, “किसानों को खेती की विभिन्न तकनीकों की जानकारी देकर उन्हें रासायनमुक्त फसल उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।”

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की ओर से प्रमाणित किसान और जैविक खेती के विशेषज्ञ आशीष सिंह बताते हैं, “आने वाले समय में भारत की कृषिपद्धति को बेहतर बनाने के लिए यह योजना पिछले साल शुरू की गई थी। इसके तहत लखनऊ में इस प्रशिक्षण के लिए पहला शिविर भारतीय गन्नाअनुसंधान संस्थान (आईआईएसआर) में लगाया गया था। आने वाले समय (2017-18) में प्रशिक्षण लेने वाले किसानों की ये संख्या बढ़कर 500 हो जाएगी।”

प्रशिक्षण के दौरान किसानों को खेती की अधिक जानकारी देने के लिए जगह-जगह ले जाया जाता है जहां उन्हें प्राकृतिक खेती के सफल परिणाम दिखाए जाते हैं। किसानों को प्रेरित किया जाता है कि वे गोबर गैस, गोबर खाद, गोमूत्र, सोलर ऊर्जा का उपयोग अपनी खेती में करें। इससे वे अधिक और बेहतरउत्पादन कर अच्छा मुनाफा कर सकते हैं।

प्रशिक्षण के लिए किसानों का भी होता है चयन

आचार्य श्याम बिहारी ने बताया, “ऐसे लोग जो किसान होने के साथ प्राकृतिक खेती, गोमूत्र की उपयोगिता के बारे में जानते हों और अपनी खेती में उनकाउपयोग करते हों, उन्हीं को प्रशिक्षण के लिए चुना जाता है। इससे वे और ज्यादा सीखकर अन्य किसानों को भी प्रशिक्षित कर सकेंगे। इस तरह इस योजनाके जरिए इन्हीं किसानों को कृषि विशेषज्ञ बनाने की कोशिश की जा रही है।”वे बताते हैं, “प्रशिक्षण के लिए दूर-दराज़ से आए किसानों के ठहरने, खाने-पीनेऔर आने-जाने का किराया भी सरकार की तरफ से दिया जाता है। इसके साथ ही किसानों को बायोगैस संयत्र लगाने के लिए विभाग से मिलने वाली सब्सिडी से संबंधित सभी तरह की जानकारी दी जाती है।”

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