मनरेगा मजदूरों के पलायन पर लगे रोक

Update: 2017-03-20 17:17 GMT
वर्तमान समय में मनरेगा की हालत बहुत खराब है।

स्वाती शुक्ला, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। प्रदेश के 59,144 ग्राम पंचायतों में काम करने वाले 225.42 लाख मजदूरों की नई सरकार से उम्मीद है कि उनको पलायन न करना पड़े और समय पर ही मेहनताना मिले। गाँव के हालात बदलने के लिए गाँव में ही रोजगार के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराने के लिए मनरेगा की शुरुआत की गई थी, लेकिन वर्तमान समय में मनरेगा की हालत बहुत खराब है।

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बाराबंकी के हरख ग्राम पंचायत के प्रधान अन्ना सिंह बताते हैं, “तालाब भी बन गए, सड़कें भी बन गईं अब सरकार मनरेगा के तहत गाँवों में क्या काम करायेगी। ये सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है कि वो कैसे मजदूरों के उम्मीदों पर खरी उतरेगी।” वह आगे बताते हैं, “पिछली मजदूरी का पैसा ही मिल जाए यही बड़ी बात है।”

“पिछली सरकार ने मनरेगा मजदूरों को न पैसा दिया न ही काम। जो हाल पुरानी सरकार ने किया वो अब न हो इस लिए मोदी को वोट दिया। आठ महीने से ज्यादा काम किए हो गया है। पैसा अभी तक नहीं मिला।” सिगरामऊ गाँव के रहने वाले रामखेलावन (56 वर्ष) बताते हैं।

उत्तर प्रदेश में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (मनरेगा) के तहत 157.26 लाख जॉब कार्डधारक मजदूर हैं, जबकि कुल मजदूरों की संख्या 225.42 लाख है। जिला मुख्यालय से 38 किलोमीटर ग्राम पंचायत धावर के रहने वाले सुखराम लोदी बताते हैं, “हमारे भाई के लड़के ने मनरेगा के तहत सड़क बनाने का काम किया था। लेकिन पैसा नहीं मिला। अब नई सरकार से उम्मीदे हैं कि हमें काम और मजदूरी मिलेगी। बालागंज मजदूर मण्डी में काम के लिए आए मनरेगा मजदूरों ने कहा गाँव में काम नहीं मिला इसलिए मजदूर मण्डी आए हैं।

जबकि पैसा देने की डेडलाइन 15 दिन की है। भुगतान में देरी, मानदेय को लगाने पड़ते हैं चक्कर मनरेगा में समय से भुगतान न होना भी इसकी बड़ी समस्या है। मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों को 15 दिन के अंदर भुगतान हो जाना चाहिए। लेकिन 87 फीसदी इस समय सीमा के बाद ही होता है।

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