पहले फसल बेचने से किसानों का फायदा, लेकिन फसल खरीददार को लगा झटका, अनुमान से भी कम आये बौर

Update: 2017-03-07 14:38 GMT
पिछले साल की अपेछा इस साल 40 फीसदी बौर ही आये हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। मार्च का महीना लग गया है। जहां पिछले साल इस महीने में 80 फीसदी बौर आ चुके थे वहीं इस बार अभी तक केवल 40 फीसदी बौर ही आए हैं। ज़ाहिर सी बात है कि उत्पादन पर भी इसका काफी असर पड़ेगा, लेकिन आम उत्पादकों को इस बार राहत है। ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादातर किसानों ने अपनी फसल बौर आने से पहले ही बेच ली है।

खेती किसानी से जुड़ी सभी बड़ी खबरों के लिए यहां क्लिक करके इंस्टॉल करें गाँव कनेक्शन एप

राजधानी स्थित मलिहाबाद से लगभग 13 किमी दूर रहीमाबाद में पुशपाल सिंह यादव आठ बीघे में आम का उत्पादन करते हैं। पुशपाल सिंह (38 वर्ष) बताते हैं, “घर में शादी थी और पैसों की जरूरत थी। इसलिए ढाई महीने पहले ही पूरी फसल बेच दी। उस समय तो बौर भी नहीं आया था। दो लाख 30 हजार में फसल बेच दी है। अब जबतक खरीददार वापस मुझे बाग हैंडओवर नहीं कर देते हैं तबतक वहां पैर नहीं रखूंगा।”

उन्होंने बताया कि पिछले साल उन्होंने पूरी फसल तीन लाख 80 हजार में क्षेत्र की मंडी में ही बेची थी। इस बार पैसों की जरूरत की वजह से समय से पहले ही बागों का सौदा कर दिया है। इसलिए कीमत भी कम है। क्षेत्र के व्यापारी रमेश को उन्होंने फसल बेची है। आगे वे बताते हैं, “हमारे लिए यह बहुत ही फायदा का सौदा रहा है क्योंकि जिस हिसाब से बौर आए हैं उससे तो यही लग रहा कि उत्पादन भी ज्यादा नहीं होगा।”

काकोरी, मलिहाबाद और माल सहित बीकेटी के कुछ भाग को मिलाकर आम फलपट्टी क्षेत्र बनाया गया है। लगभग 36 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में आम के बाग हैं। यहां दशहरी, लखनऊ सफेदा, चौसा आमों के साथ कई और भी रंगीन प्रजातियों के आमों के बाग हैं। यहां हर तरह से आम के सीजन में बागों का सौदा किया जाता है। नवंबर से लेकर जनवरी तक फसलों के खरीदार आने लगते हैं। खरीददारी का यह सिलसिला मार्च तक चलता रहता है।

दशहरी के लिए मशहूर मैंगो बेल्ट कहे जाने वाले मलिहाबाद ब्लॉक के किसान कलीमुल्लाह (67 वर्ष) ने बताया, “बौर से पहले ही कई करोड़ रुपए की आम फसल की बिक्री हो चुकी है। गरीब और जिनके घरों में शादियां थीं उन्होंने पहले ही फसल बेच दी। लगभग 60 फीसदी बाग बिक चुके हैं।” “तीन लाख में आठ बीघे का सौदा नवंबर में ही कर दिया था। उस समय बस पेड़ देखकर सौदा हुआ था। अच्छा है, बहुत फायदे में हूं कि दे दिया। अब तो बस एक फीसदी हो सकता है कि बौर आ जाएं नहीं तो अब वो भी नहीं। इस बार तो पिछले साल के मुकाबले आधे से भी कम बौर दिख रहे हैं तो अच्छे उत्पादन के आसार नहीं हैं।”

ये कहना है मलिहाबाद से लगभग 6 किमी दूर ढेढ़ेमऊ गाँव के किसान मदन बहादुर (57 वर्ष) का। मदन बहादुर ने बताया कि व्यापारी पहले से ही सौदा तय कर पैसों का लेनदेन कर लेते हैं। कई बार अगर कीमत ज्यादा होती है तो किस्तों में किसानों को पैसे दिए जाते हैं। उत्पादन दिल्ली, झांसी, कानपुर, हरदोई में भेजा जाता है। मदन बहादुर आगे बताते हैं, “ये किस्मत की बात है। उत्पादन ज्यादा तो खरीदार को मुनाफा अगर कम रहता है तो हमें लेकिन इस बार का सौदा सच में मुनाफे का रहा।”

खरीददारों के लिए रहा घाटे का सौदा

“मैं तो उन्हें बेचारा ही कहूंगा जिन्होंने पहले ही बाग खरीद लिए हैं। उनके लिए यह बहुत ही घाटे का सौदा है। अबतक जितना भी बौर आना था सब आ चुका है अब कोई ऐसी संभावना नहीं है। अब बौर नहीं कल्ला ही आएगा। इसलिए उत्पादन में भी काफी कमी आ सकती है। मेरे खुद के बाग में ही केवल 30 फीसदी ही बौर आए हैं” पद्मश्री कलीमुल्लाह खान ने बताया। आगे वे बताते हैं, “खरीदारों को तो धुलाई तक का पैसा मिलेगा या नहीं यह कह पाना मुश्किल है। इसके आलावा जिन्होंने बेचे हैं बाग उनके लिए ठीक है।”

उनका कहना है कि इस समय तो कीटों से भी बाग को सुरक्षित रखना है। इसके साथ ही पेड़ों की धुलाई भी चहिए। बाग बेचने के बाद उसकी देखभाल का पूरा ज़िम्मा खरीदारों पर ही आता है। इस तरह आने वाले समय में यह खरीद उन्हें महंगी भी पड़ सकती है। उन्होंने बताया कि आठ दिन पहले जो बौर खिल रहे थे उनमें चने जैसे दाने आ चुके हैं। लगभग 90 फीसदी बौरों में फूल आ चुके हैं लेकिन बड़ी संख्या में बौर नहीं आया है जो खरीदारों के लिए नुकसानदायक है।

पेड़ देखकर उत्पादन का लगाया जाता है अंदाज़ा

आम उत्पादक पुशपाल सिंह ने बताया, “खरीददार बागों को खरीदने से पहले उनका निरीक्षण करते हैं। पेड़ों को बारीकी से देखते हैं। इस बात की पुष्टि की जाती है कि पेड़ फल देने की अवस्था में है भी या नहीं। अगर पेड़ के पत्ते हरे रंग के हैं तो उनमें आम आएंगे। पत्ते अगर कालापन लिए हुए हैं और हरे नहीं हैं तो उस पेड़ में फल नहीं लगते हैं। इस बात का खास तौर से ध्यान दिया जाता है। इसके साथ ही पेड़ की लंबाई- चौड़ाई को देखते हुए उसकी उत्पादन क्षमता का अंदाजा लगाया जाता है। इससे इस बात का पता लग जाता है कि खरीदार को उस पेड़ से औसतन कितना उत्पादन मिल पाएगा।

ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।

Similar News