भीख के पैसे से चलता है घर का खर्च

Update: 2017-03-19 13:02 GMT
जो पैसे भीख में मिलते हैं उससे घर में खाने का सामान लाया जाता है।

मीनल टिंगल ,स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। “मेरे मम्मी-पापा मेरा मेकअप करते हैं और मुझे भीख मांगने भेज देते हैं। जो पैसे भीख में मिलते हैं उससे घर में खाने का सामान लाया जाता है।” दुख के साथ यह बात भीख मांगने वाले उन चार बच्चों ने कही, जिनको झांसी रेलवे स्टेशन से एक अभियान के तहत भीख मांगते पकड़ा गया।

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यह चारों बच्चे झांसी रेलवे स्टेशन पर भीख मांगते पाए गए जहां आरपीएफ के उपनिरीक्षक अमित कुमार मीणा और कांस्टेबल कमलेश कुमार ने चाइल्ड लाइन के कार्यकर्ता हिमांशु विमल, सोनिया व तारा के साथ संयुक्त रूप से चाइल्ड रेस्क्यू अभियान चलाया था।

यूनिसेफ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में लगभग 4.40 करोड़ भिखारी हैं। इनमें भारत में लगभग 1.80 करोड़ भिखारी शामिल हैं। भीख मांग रहे लोगों में बड़ी संख्या में बच्चे शामिल हैं, जिनको सड़कों के किनारे भीख मांगते देखा जा सकता है। जिनमें से रोजाना 36 लाख भिखारी महानगरों की लाल बत्तियों पर हाथ में कटोरा लेकर भीख मांगते हैं। वहीं दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा पिछले वर्ष जारी एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में एक दिन में लगभग 5507 बच्चे प्रतिदिन भीख मांगते हैं।

इस संबंध में महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा, “बच्चों द्वारा भीख मांगने के चलन के प्रति सरकार ने कतई बर्दाश्त न करने का रवैया अपनाया है। इस संबंध में अगले महीने एक योजना भी सामने आ सकती है। इस संबंध में अगले महीने के पहले सप्ताह में राज्य सरकार, पुलिस व इस क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाएं व मंत्रालय के अधिकारियों की बैठक बुलाई गयी है।”

चाइल्ड लाइन झांसी के कार्यकर्ता हिमांशु विमल ने कहा, “अभियान के तहत भीख मांग रहे बच्चों को पकड़े जाने के बाद स्टेशन पर मौजूद यात्रियों से बच्चों के बारे में पूछताछ की गई, लेकिन इनके माता-पिता का पता नहीं चल सका इसलिए बच्चों को चाइल्ड लाइन लाया गया है।”

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