अब सौर ऊर्जा से चलेगा मेंथा का आसवन संयंत्र, सीमैप के वैज्ञानिकों ने बनाया सोलर डिस्टीलेशन टैंक

Update: 2017-01-31 19:40 GMT
केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौध संस्थान (सीमैप) द्वारा तीन किलो वाट विद्युत क्षमता का आसवन संयंत्र बनाया है। इसकी क्षमता बीस लीटर की है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। अब किसानों को मेंथा का आसवन करते समय न ही धुएं से परेशान होना होगा, न ही घंटों आग के सामने बैठना होगा, क्योंकि सीमैप के वैज्ञानिकों ने सौर ऊर्जा से चलने वाला सोलर डिस्टीलेशन टैंक बनाया है।

‘किसान अभी तक ऐसे आसवन टैंक प्रयोग में लाते हैं, जिसमें धुएं और आग से किसानों को परेशानी तो होती है। लेकिन नए सोलर टैंक में में न धुएं का झंझट है और न ही भट्ठी जलाने का। इसे सोलर एनर्जी के साथ ही बिजली से भी चलाया जा सकता है।
डॉ. अश्विनी दीपक नन्नारे, वैज्ञानिक, (सीमैप)

वे आगे बताते हैं, ‘ज्यादातर किसान आसवन के लिए देसी टंकी का प्रयोग करते है, इस टंकी में तैयार फसल को भरकर उसके नीचे गहरा गड्ढ़ा खोदकर आग जला देते हैं। इसके बाद टंकी के अंदर भरे मेंथा से तेल निकलता है। टंकी की लोहे की चादर और वाष्प के बीच का अनुपात सही न होने से विस्फोट भी हो जाता है।’

केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौध संस्थान (सीमैप) द्वारा अभी तीन किलो वाट विद्युत क्षमता का आसवन संयंत्र बनाया है। इसकी क्षमता बीस लीटर की है। डॉ. अश्विनी बताते हैं, ‘इसे अभी बीस लीटर के क्षमता का बनाया गया है, आगे हम इसकी क्षमता बढ़ा देंगे, जिससे बड़े किसानों आसानी से मेंथा का आसवन कर सकें।’

एक हेक्टेयर मेंथा की फसल से लगभग 150 किलो तेल प्राप्त हो जाता है, यदि अच्छे से प्रबंधन किया जाए और समय से रोपाई हुई हो तो 200 से 250 किलो तेल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है। उत्तर प्रदेश में बाराबंकी, सीतापुर, रायबरेली, कन्नौज, लखनऊ, फैजाबाद जैसे जिलों में बड़ी मात्रा में मेंथा की खेती जाती है। मेंथॉल के व्यापारी बाराबंकी, रामपुर, चंदौसी, बदायूं और बरेली में हैं, जो छोटे व्यापारियों से तेल की खरीदारी करते हैं।

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