सफाई कर्मचारी के हवाले आयुर्वेदिक अस्पताल 

Update: 2017-04-01 16:08 GMT
आयुर्वेदिक चिकित्सालय सुविधा के अभाव में अस्तित्व खोते जा रहे हैं।

प्रशांत श्रीवास्तव ,स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बहराइच। उत्तर प्रदेश में 2105 कुल आयुर्वेदिक चिकित्सालय हैं, जो सुविधा के अभाव में अस्तित्व खोते जा रहे हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा विभाग के डॉक्टर और उनका अमला इस प्राचीन चिकित्सा पद्धति को विलुप्ति के कगार पर पहुंचाने में जुटा है।

जिला मुख्यालय से 35 किमी दक्षिण फखरपुर ब्लॉक के नंदवल आयुर्वेदिक चिकित्सालय में कागजों पर तो दो सफाई कर्मचारी एक डॉक्टर व एक फार्मासिस्ट हरिश्चन्द्र वर्मा तैनात हैं, लेकिन अकसर इस चिकित्सालय में ताला ही लटकता रहता है।

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अस्पताल में तैनात सफाई कर्मचारी सुशील कुमार ने बताया, “यहां कोई डॉक्टर व फार्मासिस्ट नहीं आते है। यह अस्पताल हमारे सहारे चल रहा। जब भी कोई मरीज आता है तो उसको दवा हम दे देते हैं।” यहां पर तैनात डॉ. पूजा साहू के बारे में सफाई कर्मचारी ने बताया कि डॉक्टर साहब लखनऊ से कभी कभार आते हैं, बाकी ऐसे ही चलता है।

फार्मासिस्ट हरिश्चन्द्र वर्मा के बारे में बताया कि फार्मासिस्ट साहब बहराइच से किसी दिन आते हैं, किसी दिन नहीं आते हैं। ऐसे में मरीजों की चिकित्सीय सुविधाओं पर एक सवालिया निशान खड़ा हो जाता है। मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. अरुण लाल ने फोन पर बताया, “मैं अभी मीटिंग में व्यस्त हूँ और ये मामला अभी मेरे संज्ञान में नहीं है।”

जब तक नहीं समझेंगे जिम्मेदारी

हालांकि सरकार ने प्रदेश में इस चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने के लिए स्नातकों को शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराने की दृष्टि से लखनऊ, पीलीभीत, झांसी, बरेली, मुजफ्फरनगर, अर्तरा-बांदा, हंडिया-इलाहाबाद और वाराणसी में आठ राजकीय आयुर्वेदिक कालेजों के माध्यम से कुल 320 आयुर्वेदिक स्नातकों को प्रशिक्षित करने के लिये प्रतिवर्ष सीपीएमटी के माध्यम से प्रवेश दिला रही है, जिससे इस चिकित्सीय पद्दति को बढ़ावा मिल सके, लेकिन जब तक डॉक्टर स्वयं ही अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहन नहीं करते तब तक सरकार के हर प्रयास असफल होते ही नजर आएंगे।

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