पशुचिकित्सालयों में नहीं मिलते हैं डॉक्टर, घर पर इलाज करने के लेते हैं ज्यादा पैसे

Update: 2017-03-31 15:20 GMT
पशु चिकित्सालयों में नहीं मिलते हैं चिकित्सक।

दिति बाजपेई, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

शाहजहांपुर। जिले के पशु चिकित्सालयों में डॉक्टरों का सही समय पर न मिलना ज्यादातर पशुपालकों के लिए एक बड़ी समस्या बन चुका है। डॉक्टरों के न मिल पाने की वजह से पशुओं को सही समय पर इलाज नहीं मिल पता है।

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जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर कांट ब्लॉक के आदौपुर गांव के मोहम्मद असीफ (30 वर्ष) की बकरी को 15 दिन पहले पोकनी रोग (पेट खराब होने की अवस्था) हुआ था। जब वो अपनी बकरी को पशु चिकित्सालय ले गए तो उन्हें वहां एक भी डॉक्टर नहीं मिला। मजबूरी में उनको मेडिकल स्टोर से दवा लेनी पड़ी।

ददरौल ब्लॉक केगद्दीपुर गांव में रहने वाले तेजराम यादव (40 वर्ष) के पास चार गाय और भैंसें हैं जिससे उनके घर की आमदनी चलती है। तेजराम बताते हैं, “अगर सरकारी डॉक्टर को घर बुलाओ तो वे आ तो जाते हैं पर उनको पेट्रोल का भी पैसा देना पड़ता है। इसके बाद दवा भी मंहगी लिखते है। अस्पताल में मिलते नहीं है इसलिए उनको फोन करके मजबूरी में डॉक्टर को घर बुलाना पड़ता है।”

यूपी में 21 हज़ार पशुओं पर केवल एक पशु चिकित्सालय

उत्तर प्रदेश में कुल 2,200 पशुचिकित्सा केंद्र हैं। राष्ट्रीय कृषि आयोग के अनुसार देश में 5000 पशुओं पर एक पशुचिकित्सालय स्थापित होना चाहिए लेकिन उत्तर प्रदेश में 21 हज़ार पशुओं पर एक पशु चिकित्सालय उपलब्ध हैं। नियम के मुताबिक पशु चिकित्सालयों के खुलने का समय सुबह आठ बजे से दोपहर ढाई बजे तक होता है लेकिन ज्यादातर पशुपालक नादारत रहते हैं। इस बारे मेंपशुपालन विभाग के डॉ. वी.के. सिंह बताते हैं, “जो कार्यालय का समय है, उस समय पर पशुपालक उपस्थित रहते हैं। उसके बाद उनका काम फील्ड का रहता है। अगर ऐसा है तो इस पर ध्यान दिया जाएगा।”

सरकारी डॉक्टरों द्वारा ज्यादा रुपए लिए जाने के संबंध में डॉ वी.के. सिंह बताते हैं, “पशु के ज्यादा बीमार होने पर ही डॉक्टर अपनी ड्यूटी के बीच में पशुपालक के घर जाकर इलाज कर सकता है। इसके अलावा ड्यूटी के बाद समय के बाद अगर इलाज कर रहें हैं तो वे अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस कर सकते हैं। प्राइवेट प्रैक्टिस में डॉक्टर अगर ज्यादा पैसे भी लेते हैं तो इसमें सरकार दखल नहीं दे सकती है।”

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