क्या आपने गधों के अस्पताल के बारे में सुना है?

Update: 2018-04-05 10:36 GMT
अहमदाबाद शहर में एक ऐसा चिकित्सा केंद्र बना है जहां पर गधों का इलाज होता है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। आपने आवारा कुत्ते, गाय-भैंस आदि कई जानवरों के चिकित्सा केंद्र के बारे में सुना होगा, लेकिन अहमदाबाद शहर में एक ऐसा चिकित्सा केंद्र बना है जहां पर गधों का इलाज होता है।

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शहर के छारोदी इलाके में निरमा विश्वविद्यालय के पास लगभग चार एकड़ में बने इस अस्पताल में करीब 62 गधे हैं। इस अस्पताल में गधों के खाने-पीने से लेकर उनके रहने तक का पूरा इंतज़ाम है। इस अस्पताल में उनकी देख-रेख के लिए दो डॉक्टर भी तैनात हैं। डंकी सैंचुरी इंडिया के पशु चिकित्सक डॉ. रमेश कुमार पेरुमल बताते हैं, “गधों को ईंट ढोने या फिर शहर के बाहर निर्माणस्थलों पर रेत उठाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अगर उन्हें चोट लग जाती है या फिर कोई बीमारी हो जाती है, तो लोग उन्हें छोड़ देते हैं। ऐसे लावारिस गधों को हम अपने यहां लाते हैं और उनकी देखभाल करते हैं और जब इनका इलाज करके इन्हें ठीक कर देते हैं तो उन्हें जरूरतमंद लोगों को दे देते हैं।”

डॉ. रमेश आगे बताते हैं, “हमारे केंद्र में पूरा इलाज नि:शुल्क होता है। क्योंकि जो इसको पालते हैं वो गरीबी रेखा से नीचे होते हैं। गधों के लिए कोई भी अस्पताल नहीं है इसीलिए हमने इस केंद्र को खोला है।” डंकी सैंचुरी एक अंतर्राष्ट्रीय पशु कल्याण संस्था है। इसका मकसद गधों और खच्चरों की सुरक्षा करने के साथ-साथ हर जगह उनके लिए एक स्वीकृति कायम करनी है। भारत में अहमदाबाद के अलावा यह केंद्र ग्वालियर, नई दिल्ली, राजस्थान और सोलापुर में भी है।

गधों के प्रवृति के बारे में डॉ. पेरुमल बताते हैं, “गधा बेहद शांत और विनम्र जानवर है। इसके साथ बेहद अपमानजनक तरीके से बर्ताव किया जाता है। गधा किसी इंसान में आत्मविश्वास बढ़ाने और विकलांग व खास जरूरतों वाले बच्चों के बीच शारीरिक व मानसिक विकास में काफी अहम भूमिका निभा सकता है। हम गधों के प्रति इंसानों की सोच बदलने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए हम स्कूलों और मेलों में लोगों को जागरूक करते हैं।”

अवसाद को रोकता है गधा

गधों से अवसाद दूर करने के बारे में डॉ. पेरुमल बताते हैं, “डंकी असिस्टेड थेरपी (डीएटी) को इंसानों में अवसाद, दुख, अकेलापन और चिंता-परेशानी दूर करने के लिए बेहद कारगर माना जाता है। श्रीलंका में यह तरीका नई बात नहीं है। श्रीलंका, ब्रिटेन और यूरोप में इसे सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जाता है। जल्द ही इसको हम अपने केंद्र में शुरू करेंगे। इसके लिए हमने दो गधों (मोंटी और डूकन) को तैयार किया है। अभी भी हमारे केंद्र में वृद्धाश्रम से बुर्जुग इस थेरेपी के लिए आते हैं।”

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