यूपी में दूध का कारोबार करने वाले किसानों के भी हैं अपने चुनावी मुद्दे 

Update: 2017-02-11 12:32 GMT
लखनऊ जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित किसान दुग्ध मंडी उत्पाद स्थल

दीपांशु मिश्रा, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। चुनाव का समय चल रहा है। सभी पार्टियों ने अपने-अपने मुद्दे जनता को बता दिए हैं, लेकिन किसी ने ये जानने की कोशिश नहीं की कि लोग क्या चाहते हैं। चुनावी मुद्दों को लेकर दुग्ध किसानों से गाँव कनेक्शन संवाददाता ने बात की।

लखनऊ जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित किसान दुग्ध मंडी उत्पाद स्थल छठामील बीकेटी में दूध व्यापारियों से चुनाव में उनके मुद्दे जानने की कोशिश की गई। आगामी विधानसभा चुनाव में दुग्ध व्यापारियों की कई समस्याएं है, जिनका वह निवारण चाहते हैं। किसानों को दूध के दामों से लेकर चारे-भूसे के दामों तक की समस्याएं हैं।

‘’हम लोगों का दूध उचित दामों पर नहीं बिकता है, जो कि सही दामों पर बिकना चाहिए। हम लोगों का दूध इस समय 35-40 रुपए प्रति लीटर में बिकता है, यह हम लोगों के लिए उचित नहीं है। इससे हम लोगों का काफी नुकसान हो रहा है। हमारी मांग है कि दूध का रेट बढ़ाकर 50 रुपए कर देना चाहिए।’’ दूध के कैन से हाथ निकलते हुए छठामील निवासी काशीप्रसाद (45 वर्ष) बताते हैं।

इस मंडी में लखनऊ के आस-पास के गाँव सहित करीब 50 किलोमीटर दूरी तक के लगभग 1000-1500 किसान अपना दूध बेचने के लिए आते हैं। किसान पराग या अमूल द्वारा उपलब्ध कराई जा रही डेरियों से उचित मूल्य नहीं पा रहे हैं।

चिनहट ब्लॉक में पल्हरी गाँव के राधेश्याम (55 वर्ष) बताते हैं, ‘’जानवरों का रख-रखाव बहुत महंगा है। पूरे दिन में एक जानवर पर रखरखाव का खर्चा लगभग 150 रुपए होता है। सब खर्च निकालने के बाद महीने में तीन-चार हजार रुपए बचत होती है। चोकर और खली के दाम महंगे हैं जो कम होने चाहिए।’’

जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूरी पर पश्चिम दिशा में तहसील सिधौली के हुसैनगंज निवासी राजाराम (58 वर्ष) बताते हैं, ‘’दूध की जांच का मानक कई साल पुराना है। मानक में परिवर्तन करना चाहिए। पहले खेतो में इतनी रासायनिक उर्वरक नहीं डाली जाती थी लेकिन उत्पादकता बढ़ाने के लिए अब डाली जाने लगी है, उसी खेत का चारा जानवर खाते हैं, तो दूध में बदलाव जरूर हुआ होगा। दूध की जांच करके एक नया मानक बनाया जाए, जिससे किसानों को असुविधा न हो।

किसानों ने डेरियों की बात पर बताया कि डेरियां किसानों के लिए फायदेमंद है, लेकिन उनसे भी अच्छी लागत नहीं मिल पा रही है। शहरों में 65 फैट पर 33 रुपए लीटर डेरियां दूध लेती हैं, लेकिन गाँव में वही दूध मात्र 25-28 रुपए में लिया जाता है तो हम लोग उन्हें दूध नहीं देते हैं। हमारे दूध जब बेचने के बाद बच जाता है तभी हम अपना दूध डेरियों को देते हैं।

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