गोंडा: पांच दशक से एक स्कूल मांग रहा इंसाफ

Update: 2017-02-02 09:27 GMT
प्राइमरी के बच्चों को मिड-डे-मील की भी सुविधा नहीं मिल रही है। साथ ही स्कूल ड्रेस और किताब खुद खरीदनी पड़ रही है। 

हरी नारायण शुक्ल, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

गोंडा। मुख्यालय के रेलवे की जमीन पर स्थित कस्तूरबा रेलवे इंटर कॉलेज के सैकड़ों नौनिहालों के भविष्य से शिक्षा विभाग पांच दशक से खिलवाड़ कर रहा है। कारण एक ही कॉलेज में जूनियर और हाईस्कूल के बच्चों को सरकरी सुविधाएं मिल रही हैं, लेकिन प्राइमरी के बच्चों को वित्त पोषित श्रेणी में नहीं लिया गया, जिससे ये बच्चे मुफ्त शिक्षा से महरूम हैं।

गोंडा मुख्यालय के निकट रेलवे कालोनी है, जहां पर गांधी विदया मंदिर व कस्तूरबा रेलवे बालिका इंटर कालेज की स्थापना 1970 में आनंद कुमारी मिश्रा के प्रयास से हुई। उस समय इस इलाके में कोई शिक्षण संस्थान नहीं हुआ करते थे। आनंद कुमारी को लड़कियों की अशिक्षा का दर्द था कि आधी आबादी शिक्षा से वंचित है। कालेज में प्राइमरी की शिक्षा शुरू हुई और इसके बाद जूनियर की मान्यता हो गई। 1977 में हाईस्कूल की मान्यता हुई और सन 1982 में इंटर की मान्यता मिली।

इसके बाद सरकार ने सन 1989 में इन विदयालयों को वित्तीय सहायता में शामिल कर लिया, लेकिन इस विदयालय का प्राइमरी विदयालय इस वित्तीय सुविधा से छूट गया। इसके बाद से 26 साल यूं ही बीत गये और यहां के प्राइमरी के बच्चों को सरकारी मदद नहीं मिल पा रही है। ऐसे में प्राइमरी के बच्चों को मिड-डे-मील की भी सुविधा नहीं मिल रही है। साथ ही स्कूल ड्रेस और किताब खुद खरीदनी पड़ रही है।

यहां के सेवानिवृत शिक्षक एसपी श्रीवास्तव को दर्द है कि एक ही कॉलेज में दो तरह के अध्यापक पढ़ा रहे हैं। एक तरफ वित्त पोषित जूनियर और हाईस्कूल के अध्यापक अच्छा वेतन पा रहे हैं। वहीं प्राइमरी के शिक्षक चंदे से मानदेय पा रहे हैं, जो नाकाफी है।

अध्यापकों का अभाव झेल रहे छात्र

जूनियर स्कूल में सात सौ बच्चे हैं। इन्हें पढ़ाने के लिए दो अध्यापक हैं। इसी तरह हाईस्कूल में गणित और भौतिक अध्यापक नहीं हैं। यहां पर सन 1982 से गणित अध्यापक तैनात नहीं हुए। अंग्रेजी व हिंदी के अध्यापक रिटायर हो गये, लेकिन तैनाती नहीं हो पाई। ललिता कुमारी रसायन विज्ञान व गृह विज्ञान पढ़ा रही हैं। 1100 छात्राओं को पढ़ाने के लिए अध्यापकों की जरूरत है। इंटर में विज्ञान की मान्यता न होने से सैकड़ों छात्राओं को विज्ञान पढ़ने का मौका नहीं मिल पा रहा है।

इस संबंध में प्रधानाचार्य पपिया नियोगी का कहना है कि सीमित संसाधनों में बेहतर शिक्षण कार्य का प्रयास किया जा रहा है। प्राइमरी के बच्चों को पढ़ाने व खिलाने के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रयास किया जाता है। वित्तीय मदद न मिलना शासन स्तर का मामला है, उसमें कुछ नहीं कहा जा सकता। वहीं, जिला विदयालय निरीक्षक राम खेलावन वर्मा का कहना है कि प्रकरण की जानकारी कर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।

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