नए पेड़ों का पता नहीं, पुराने पर चली कुल्हाड़ी 

Update: 2017-03-31 13:09 GMT
क्षेत्र में जोरों पर है पेड़ों की कटाई।

अरविन्द्र सिंह परमार, स्वयं कम्यूनिटी जर्नलिस्ट

छपरट/ललितपुर। सरकार द्वारा हर साल करोड़ों रुपए हरियाली के नाम पर खर्च किए जाते हैं। सरकार की मंशा है, पर्यावरण को हरा-भरा रखा जाए। इसके लिए तमाम योजनाएं संचालित हो रहीं हैं। वहीं जनपद में कुछ लोग सरकार की इस मंशा पर पलीता लगाने पर तुले हुए हैं। नए पेड़ लगाना तो दूर, पुराने पेड़ों को ही काटने पर आमादा हैं।

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छपरट वन रेंज आधा दर्जन गाँवों में फैली है। ग्रामीणों का आरोप है, वन विभाग के अधिकारी और लकड़ी माफिया की मिलीभगत से क्षेत्र में पेड़ का कटान जोरों पर है। यूपी के 76923.23 हेक्टेयर में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के शासन में पांच करोड़ पौधे 24 घण्टे में लगाने का काम पूरा किया गया था।

अधिकारियों के बड़े-बड़े वादे थे कि पौधों की सुरक्षा सहित संरक्षण होगा। इसी अभियान के चलते जनपद ललितपुर में 17 लाख 83 हजार पौधे लगाए गए थे लेकिन इनमें से कई हजार पौधे नहीं बचे हैं। इस बारे में अमौरा गांव के बलखन्डी (42 वर्ष) बताते हैं, “पौधारोपण के दौरान लगाया गया एक भी पौधा नहीं मिला। जो गड्ढे पिछले साल खुदे थे, उन्हीं को फिर से खुदवाने का काम वन विभाग करवा रहा है।”

अवैध कटान को रोकने के लिए आठ टीमें गठित

अवैध कटान पर रोक लगाने के लिए प्रधान मुख्य वनरक्षक (लखनऊ) ने डीएफओ को पत्र भेजकर छापामार टीमें गठित करने के निर्देश दिए। जिस पर डीएफओ वीके जैन ने जिले में आठ टीमें गठित कीं जिससे अवैध कटान पर शिकंजा कसा जा सके, बावजूद इसके लगाम नहीं लगाई जा सकी है।

तीन सालों में लगाए गए पौधों की नहीं है कोई खबर

छपरट रेंज के तहत तीन सालों में 11.95 लाख पौधों का रोपण हुआ। दिसम्बर 2011 के अनुसार, 83.56 फीसदी यानी 9.98 लाख पौधों को वन विभाग ने जीवित बताया। इसके बाद भी ये पौधे कहां लगे, किसी को नहीं पता। आरटीआई कार्यकर्ता सुखवेन्द्र सिंह (28 वर्ष) बताते हैं, “छपरट रेंज के अलावा जिले की बाकी सभी रेंजों में यही हाल है। कागजों में जिला हरा भरा किया जा रहा है लेकिन मौके पर लगाए गए पौधे नज़र नहीं आएंगे। हर साल बरसात के पहले बजट खर्च होता है। पौधारोपण के दावे किए जाते हैं लेकिन ये धरातल पर मिलते नहीं हैं।”


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