चित्रकूट में एक मंच पर दिखीं बुंदेलखंड की कई लोक विधाएं

Update: 2017-03-21 17:55 GMT
समारोह में बुन्देलखण्ड ही नहीं देश के कोने-कोने की लोक विधाओं की प्रस्तुतियां हुई।

डॉ. प्रभाकर सिंह, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

चित्रकूट। एक समय था जब खेत में बुवाई से लेकर कटाई तक गीत गाए जाते थे, लेकिन अब न तो गीत बचे और न ही उसको गाने वाले गायक। ऐसी ही लोक विधाओं और कलाकारों के संरक्षण के लिए चित्रकूट की संस्था काम कर रही है।

बुंदेलखंड के चित्रकूट जिले में अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान और अन्तोदय संस्थान चित्रकूट पिछले कई कई वर्षो से भारत जननी परिसर रानीपुर भट्ट चित्रकूट में लोक-लय समारोह के माध्यम से लुप्त हो रही लोक कलाओं के संरक्षण के लिए काम कर रही है।

दो दिवसीय लोक-लय समारोह में लोक विधाओं के लोक कलाकारों ने विभिन्न प्रस्तुतियां दी लोक-लय समारोह में बुन्देलखण्ड ही नहीं देश के कोने-कोने की लोक विधाओं लमटेरा, कछियाई, आल्हा, कुम्हरई, अचरी, कोलहाई, फाग, कबीरी, सैरो, छठी, नौटंकी, तंबूरा गायन, जवारा नृत्य, सोहर, बधाई, डण्डा पाई, गाथा गायन की प्रस्तुतियां हुई।

छनेहरालाल पुर बांदा के रामायणी उर्फ नन्ना की फाग टीम ने ‘‘जब से प्रजातंत्र भा जारी’’ फाग की मनमोहक प्रस्तुति दी। जालौन के लोक गायक साहब सिंह और उनकी टीम अचरी और रावला लोक विधा गायन वादन एवं नृत्य प्रदर्शन कर लोक विधाओं की अविरल जीवन्तता का प्रमाण प्रस्तुत किया। बड़ोखर बुजुर्ग बांदा के चन्द्रपाल एवं उनके दो दर्जन से अधिक साथी कलाकारों ने दीवारी नृत्य का अनूठा प्रदर्शन कर सबको अपनी ओर आकर्षित किया।

बांदा जिले के बड़ोखर खुर्द के रहने वाले चंद्रपाल अपने साथियों के साथ दीवारी नृत्य करते हैं। चंद्रपाल बताते हैं, "एक समय था जब हम लोगों कई जिलों में दीवारी नृत्य करने जाते थे, अब बहुत काम जगह जाते हैं, लेकिन यहां पर कार्यक्रम कर बहुत अच्छा लगा।"

पाठा की आदिवासी कलाकार बालिकाओं ने इस तरह राई और कोलहाई विधा का रोचक और मार्मिक प्रदर्शन किया गया कि आदिवासी जनजीवन की समूची संस्कृति सुख-दुख, पीड़ा और मस्ती साकार हो उठी।

दिल्ली से आए डॉ. राजेश टण्डन ने कहा, ’’हर तरफ पर्यावरण बदलाव की बात हो रही है। इसमें हममे से कुछ लोगों ने लोक ज्ञान की बात की है। आज प्रकृति का शोषण करने वाली साइंस के पास भी इसका कोई समाधान नहीं है। जब तक कि उसमें लोक ज्ञान न हो। इसका समाधान केवल लोक ज्ञान के माध्यम से ही किया जा सकता है। शिक्षा स्वास्थ्य, आजीविका, महिला सशक्तीकरण सभी मुद्दों में लोक ज्ञान विद्यमान है।"

बुजुर्ग आदिवासी कलाकर दादूलाल के बलमा गायन, हरीराल, लाल, बलराम, रंगलाल, राजाभइया, रामबहोरी के लोक वादन में नृत्य पर फिरकी की तरह नाचती कोल बालायें लक्ष्मी, सुनीता, संखी, सुकीर्ति और सरिता ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। अपने सुरीले कोकिल कंठ के लिये चर्चित पाठा की आदिवासी लोक गायिका श्रीमती बूटी बाई ने जब पाहुनों (मेहमानों) के स्वागत में अपनी मधुर तान छेंड़ी तो कार्यक्रम में उपस्थित अतिथि गदगद हो उठे।

बांदा के बदलू और उनके सहयोगी कलाकारों ने नौटंकी (लोक नाट्य) की प्रस्तुति दी। ललितपुर के लोक गायक सन्तोष परिहार ने विविध बुन्देली गीतों और झांसी के रामकिशुन कुशवाहा और उनकी टीम ने कछियाई लोक विधा का प्रदर्शन कर लोक विधाओं की समृद्धि परम्परा का एहसास कराया। समारोह में कबीरी एवं कुम्भरई लोक विधा का भी राग-अनुराग देखने-सुनने को मिला। बरगढ़ की रोहिणी, प्रीतू एवं सहेलियों ने बधाई चंगेली, रामपाल खप्टिहा ने कबीरी भजन गायन और भरखरी बांदा की टीम ने छठी जागरण के लोकगीतों की आकर्षक प्रस्तुतियां दी।

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