दूध उत्पादन में कमी लाता है थनैला रोग, पशुपालक ऐसे करें रोकथाम

Update: 2016-11-27 19:01 GMT
थनैला रोग स्ट्रैप्टोकोकस, स्टेफाइलोकस, कोर्नीबैक्टिरियम आदि जीवाणु के द्वारा पशुओं में फैलता है।

लखनऊ। दुधारू पशुओं के थनों में होने वाला थनैला रोग एक जीवाणु जनित रोग है। इस रोग से पीड़ित पशु दूध देना कम कर देते हैं जिससे पशु पालक को काफी नुकसान भी हो सकता है। गंदगी से होने वाले विषाणु ही पशुओं में थनैला रोग पैदा करते हैं।

यह बीमारी स्ट्रैप्टोकोकस, स्टेफाइलोकस, कोर्नीबैक्टिरियम आदि जीवाणु के द्वारा पशुओं में फैलती है। जब मौसम में आर्द्रता अधिक होती है तब इस बीमारी का प्रकोप और भी बढ़ जाता है। किसी भी पशुपालक के पशु को यदि ये बीमारी हो तो वे दूध बाजार में न बेचें क्योंकि इस रोग से ग्रसित पशु के दूध का सेवन लोगों को (खासकर बच्चों) को नहीं करना चाहिए इससे के गले संबधित बीमारियां हो जाती है।

रोग की पशुपालक खुद कर सकता है पहचान

  • दूध पतला एवं फटा हुआ
  • पशुओं के थनों में सूजन देखकर
  • दूध उत्पान में कमी होने पर
  • थनों में गांठ
  • दूध में नमकीनपन

रोकथाम

  • पशुओं के बांधने की जगह साफ-सुथरी रखना चाहिए।
  • दूध निकालने से पहले हाथों को साबुन से धोना चाहिए।
  • दूध निकालने के बाद पशु को आधे घंटे तक बैठने नहीं देना चाहिए।
  • दुधारू पशुओं को साफ, मुलायम एवं सूखा बिछावन में रखना चाहिए।

इन बातों का रखें विशेष ध्यान

  • दोहान करने से पहले एक प्रतिशत पोटेशियम परमैग्नेट (लाल दवा) पानी में डालकर थनों में अच्छी तरह से साफ कर लें।
  • इस बीमारी से ग्रसित दुधारू पशु के थनों की सिकाई न करें, ऐसा करने पर दूध देने की क्षमता कम हो जाती है।
  • अगर कोई दवा थनों में डालनी हो तो खुद न डाले किसी पशुचिकित्सक से ही डलवाएं वरना दूध ऊपर से नीचे तो आ जाएगा लेकिन छन के नहीं आएगा और टपकता रहेगा।

ओपिनियन पीस: राजेंद्र प्रसाद, मुख्य चिकित्साधिकारी, शाहजहांपुर

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