सुरेन्द्र कुमार
कम्युनिटी जर्नलिस्ट
मलिहाबाद (लखनऊ)। पांच दिन बाद दशहरी मण्डी में अपनी छटा बिखेरने लगेगी। इसे मण्डी में पहुंचाने के लिए आम उत्पादकों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस समय दक्षिण प्रान्तों का आम बाज़ारों में बिक रहा है। डाल की पकी दशहरी के लिए लोगों को 15 दिन और इन्तजार करना पड़ेगा।
अपनी मिठास, सुगन्ध व लाजवाब स्वाद के लिए देश व विदेशों में अपनी पहचान रखने वाली दशहरी भारी उत्पादन की कमी के कारण आम लोगों की पहुंच से थोड़ा दूर हो सकती है। आम के बागों मे 30 प्रतिशत ही फसल आई थी, जिसमें गत दिनों मे दो बार आयी आंधी से फसल को भारी नुकसान हुआ। कम उत्पादन व हुए नुकसान के कारण इसके कारोबार पर भी अधिक असर पड़ेगा।
गत कई वर्षों से अच्छी फसल व उसका अच्छा मूल्य मिलने के कारण उत्साहित कारोबारियों ने पिछली समाप्त हुई फसल के बाद इस वर्ष की फसल की खरीद भारी कीमत पर कर ली थी। लेकिन तापमान के उतार चढ़ाव के कारण आम के पेड़ों में बौर बहुत कम निकली। बची फसलों का आंधी व विभिन्न रोगों की चपेट में आने से काफी नुकसान हुआ। क्षेत्र मे करीब 36 हजार हेक्टेयर भू-भाग पर आम के बाग फैले हैं।
बागों से गायब हुईं चारपाईयां
कम फसल होने के कारण बागों की रखवाली के लिए उत्पादक व कारोबारी मई माह शुरू होते ही अपने बागों मे त्रिपाल की झोपड़ियां बनाकर उसके नीचे चारपाईयां डालकर रखवाली करने लगते थे। इस बार बागों से झोपड़ियां व चारपाईयां गायब दिखाई पड़ रही हैं।
कारोबारी जीतबहादुर सिंह ने बताया कि उनके चार बीघे बाग मे 50-60 पेटी आम होगा, जिसकी रखवाली के लिए 7 हजार रुपया प्रतिमाह की दर से मजदूर मिल रहे हैं। इतने कम उत्पादन मे वह मजदूर कहां से डालें।
उत्पादक रवि सिंह बताते हैं, “काफी दिनों बाद ऐसा सन्नाटा वह पहली बार आम के बागों में देख रहे हैं। इस बार क्षेत्र मे करीब 20 प्रतिशत ही आम की पैदावार है।”
पद्मश्री हाजी कलीम उल्ला खां का कहना है कि आम की फसल के बुरे हालात होते जा रहे हैं। अपनी 77 साल की उम्र मे इतनी कमजोर फसल कभी नहीं देखी। आम की भारी कमी के कारण आम की कीमतों मे काफी उछाल रहने के आसार दिखाई पड़ रहे हैं।
आम की पेटियों की हो रही किल्लत
उत्पादित आम को मण्डियों मे भेजने के लिए बागवानों के समक्ष पैकेजिंग के लिए लकड़ी की पेटियों की समस्या आड़े आ रही है। लकड़ी की पेटी में आम भरकर मण्डियों में आम पहुंचाने वाले बागवानों को यह पेटियां उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। शासन की सख्ती के कारण इस क्षेत्र में चल रही अवैध आरा मशीनें बन्द हो जाने से पेटियों का उत्पादन नहीं हो पा रहा है।
बागवानों के समक्ष पैदावार की कमी दूसरे पेटियों का न मिलना एक समस्या बनी हुई है। लकड़ी की पेटियों से आम का विपणन करना आसान होता है। बागवान रमेशचन्द्र का कहना है कि लकड़ी की पेटियां न मिलने से इस बार गत्ते से बनी मंहगी पेटियों का प्रयोग करना पड़ेगा।