उड़ीसा दिवस पर पढ़िए कैसे बनाई जाती है वहां की मशहूर पत्ताचित्रकारी

Update: 2018-04-01 13:23 GMT
ओड़ीसा की प्राचीन लोकर कला है पत्ता चित्र, चित्र में परिवार के साथ भगवान जगन्नाथ।

उड़ीसा अपने आप में ही संस्कृति और कलाओं से समृद्ध प्रदेश है। यहां की लोक कलाओं में से एक कला है, 'पत्ताचित्र'। इस तरह की चित्रकारी करने में पूरी तरह से ध्यान केन्द्रित करने और कुशल शिल्पकारिता की जरूरत होती है। इसमें केवल पत्ता (कैनवास) तैयार करने में ही पांच दिन लग जाते हैं।

पत्ताचित्र का नाम संस्कृत के दो शब्दों को मिलाकर बना हुआ है। पत्ता जिसका अर्थ होता है कैनवास और चित्र का अर्थ है तस्वीर। इस तरह पत्ताचित्र कैनवास पर की गई एक चित्रकारी है जिसे चटकीले रंगों का प्रयोग करते हुए सुन्दर तस्वीरों और डिजाइनों में तथा साधारण विषयों को व्यक्त करते हुए प्रदर्शित किया जाता है।

तस्वीर में अर्धनारीश्वर शिव।

पौराणिक पात्रों की होती है चित्रकारी

इस कला के माध्यम से लोकप्रिय विषयों का चित्रण किये जाते हैं। इनमें वाधिया-जगन्नाथ मंदिर का चित्रण, कृष्णलीला-जगन्नाथ का भगवान कृष्ण के रूप में छवि जिसमें बाल रूप में उनकी शक्तियों को प्रदर्शित किया गया है। दसावतारा पति-भगवान विष्णु के दस अवतार, पंचमुखी-पांच सिरों वाले देवता के रूप में श्री गणेश जी का चित्रण।

चित्रों को बनाने में होती है धैर्य की जरूरत

इनको बनाने में सबसे पहले पत्ता बनाया जाता है। शिल्पकार जिन्हें चित्रकार भी कहा जाता है, सबसे पहले इमलह का पेस्ट बनाते हैं, जिसे बनाने के लिए इमली के बीजों को तीन दिन पानी में भिगो कर रखा जाता है। इसके बाद बीजों को पीस कर पानी में मिला दिया जाता है और पेस्ट बनाने के लिए इस मिश्रण को मिट्टी के बर्तन में डालकर गर्म किया जाता है। इसे निर्यास कल्प कहा जाता है। फिर इस पेस्ट से कपड़े के दो टुकड़ों को आपस में जोड़ा जाता है और उस पर कई बार कच्ची मिट्टी का लेप किया जाता है जब तक कि वह पक्का न हो जाए। जैसे ही कपड़ा सूख जाता है तो उस पर खुरदरी मिट्टी के अन्तिम रूप से पालिश की जाती है। इसके बाद उसे एक नरम पत्थर अथवा लकड़ी से दबा दिया जाता है, जब तक कि उसको सतह नरम और चमड़े की तरह न हो जाए। यही कैनवास होता है जिस पर चित्रकारी की जाती है।

बहुत बारीकी से करना होता है काम।

प्राकृतिक रंगों का होता है प्रयोग

पेंट तैयार करना पत्ताचित्र बनाने का सबसे महत्वपूर्ण काम होता है। इसमें प्राकृतिक रूप में उपलब्ध कच्ची सामग्री को पेंट का सही रूप देने में चित्रकारों की शिल्पकारिता का प्रयोग होता है। कैथा वृक्ष की गोंद इसकी मुख्य सामग्री है और भिन्न-भिन्न तरह के रंग द्रव्य तैयार करने के लिए एक बेस के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, इसमें तरह-तरह की कच्ची सामग्री मिलाकर विविध रंग तैयार किए जाते है। उदाहरण के लिए शंख को उपयोग सफेद रंग बनाने और काजल को प्रयोग काला रंग बनाने के लिए किया जाता है। कीया के पौधे की जड़ का इस्तेमाल एक साधारण ब्रुश बनाने और चूहे के बालों का प्रयोग जरूरत होने पर ब्रस बनाने के लिए किया जाता है जिन्हें लकड़ी के हैंडल से जो दिया जाता है।

समय के साथ हो रहे हैं बदलाव

समय के साथ-साथ पत्ताचित्र की कला में उल्लेखनीय क्रांति आई है। चित्रकारों ने टस्सर सिल्क और ताड़पत्रों पर चित्रकारी की है और दीवारों पर लटकाए जाने वाले चित्र तथा शो पीस भी बनाए हैं। इस प्रकार की नवीनतम से आकृतियों की परम्परागत रूप में अभिव्यक्ति और रंगो के पारम्परिक प्रयोग में कोई रूकावट नहीं आई है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी उसी रूप बरकरार है। पत्ताचित्र की कला की प्रतिष्ठा को बनाए रखने में इसके प्रति चित्रकारों की निष्ठा एक मुख्य कारण है और उड़ीसा में इस कला को आगे बढ़ाने के लिए स्थापित किए कुछ विशेष केन्द्र इसकी लोकप्रियता को उजागर करते हैं।

स्रोत: राष्ट्रीय पोर्टल विषयवस्तु प्रबंधन दल

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