देवांशु मणि तिवारी, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। पिछले साल गौरेया संरक्षण को प्राथमिकता देते हुए सरकार ने गौरैया बचाव के लिए बड़े स्तर पर देश के सभी राज्यों में अभियान चलाया था। इसके बावजूद इस बार गौरैया संरक्षण पर सरकारों ने अपनी नज़रें फ़ेर ली हैं।
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पिछले साल प्रदेश सरकार की अगुवाई में गौरैया संरक्षण के लिए प्रदेश में चार करोड़ छात्र-छात्राओं द्वारा सरकारी और निजी विद्यालयों में रैलियां निकाली गईं। बदलती जलवायु के कारण विश्व में गौरैया की संख्या तेज़ी से घट रही है। चिड़ियों के संरक्षण और उनके बचाव के आंकलन के लिए ब्रिटेन की रॉयल सोसाइटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स ने इस वर्ष गौरैया को अपनी रेड लिस्ट में शामिल किया है।
तो इसलिए इस साल गौरैया दिवस पर लोगों ने नहीं दिया ध्यान
आंध्र विश्वविद्यालय के इस साल के अध्ययन में भी गौरैया की संख्या में 60 फीसदी की कमी देखी गई है। देश में इस साल गौरैया दिवस को लेकर लोगों की चुप्पी की मुख्य वजह पता चली। यह वजह बताते हुए प्रदेश में बड़े पक्षियों के संरक्षण पर काम कर रहे अनूप मणि त्रिपाठी बताते हैं, “इस वर्ष गौरैया दिवस पर लोगों का ध्यान न आकर्षित होने का सबसे बड़ा कारण प्रदेश में नई सरकार के आने की गर्मागर्मी है। दूसरा स्कूलों में इस समय बोर्ड परीक्षाऐं चल रही हैं। इसलिए स्कूलों में पिछले साल की अपेक्षा इस बार गौरैया दिवस पर शांति है।”
शहरों में इन्हें नहीं मिल पा रहा इनका प्राकृतिक भोजन
महाराष्ट्र की बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएमएचएस) के मुताबिक, भारत में साल 2005 से 2012 तक तकरीबन 50 फीसदी क्षेत्र में गौरैया गायब हो चुकी हैं। उत्तरप्रदेश में गौरैया की जनसंख्या लगातार घटने की वजह बताते हुए यूपी स्टेट एन्वायरमेंटल एऐस्मेंट एथॉरिटी के डॉ. एमजेड हसन ने कहा, “गौरैया काकून, बाजरा, धान पके हुए चावल के दाने आदि खाती है। अब लेकिन अत्याधुनिक शहरीकरण के कारण उसके प्राकृतिक भोजन के स्रोत समाप्त होते जा रहें हैं। उनके आशियाने भी उजड़ रहें हैं।”
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