बिना लागत के कमाई का जरिया बने खरपतवार

Update: 2017-03-08 14:11 GMT
खेतों में अनावश्यक रूप से उगने वाले खरपतवार किसानों की आय का जरिया बने हुए हैं।

अरुण मिश्रा, स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

विशुनपुर (बाराबंकी)। खेतों में अनावश्यक रूप से उगने वाले खरपतवार किसानों की आय का जरिया बने हुए हैं। बिना लागत और थोड़ी मेहनत की बदौलत काफी लोग इन खरपतवारों को बेचकर अच्छा लाभ कमा रहे हैं। ये खरपतवार अंग्रेजी तथा आयुर्वेदिक दवाइयों में प्रयोग होते हैं।

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खेतों में अनावश्यक रूप से उगने वाली मकोय, गजरा, आलू का तना (डरका) जैसे खरपतवार कई दवाइयों को बनाने में काम आते हैं। आयुर्वेदिक व अंग्रेजी दवा कम्पनियों में ऐसे खरपतवारों की अच्छी मांग रहती है। खाली सीजन में क्षेत्र के कई गाँवों के लोग इन खरपतवारों को खेतों से इकठ्ठा करके बेचने का कार्य करते हैं। जिससे बिना लागत के किसानों की आमदनी हो जाती है।

इस समय खेतों में कोई काम नहीं है। इस समय खेतों में खरपतवार के रूप में लगी मकोय के पेड़ों को जड़ समेत उखाड़कर इकठ्ठा कर लेते हैं। इसे चारा मशीन में काटने के बाद इसे धूप में सुखाया जाता है। सूखने के बाद यह लखनऊ की शहादतगंज मंडी में आठ से नौ रुपए प्रति किलों के भाव से बिक जाता है।  
रामकेत, स्थानीय निवासी, सिसवारा

बाराबंकी मुख्यालय से 35 किमी दूर देवा ब्लाक के धर्मपुर, सिसवारा, मोहनपुर व बेडीज्वार जैसे गाँवों में यह धंधा इस समय जोरों पर है। रामकेत आगे बताते हैं, “एक कुंतल ताज़ी मकोय से लगभग 25 किलो सूखा माल निकलता है। इस तरह लगभग रोज 300 से 400 रुपए तक काम हो जाता है। यह सीजन केवल महीने भर का होता है। महीने भर में लगभग 12 से 15 हजार रुपए की अतिरिक्त कमाई हो जाती है, जिससे परिवार का खर्च निकल जाता है।”

विशुनपुर में मेडिकल की दुकान चलाने वाले इरशाद अंसारी बताते हैं, “मकोय का प्रयोग इंजाइम बनाने वाली सीरप में अधिक किया जाता है। इसके अलावा मकोय का प्रयोग लीवर गठिया, बवासीर, सूजन, दिल के रोग आंखों की बीमारी, खांसी उल्टी और कफ जैसी बीमारियों की आयुर्वेदिक व अंग्रेजी दवाइयों को बनाने में होता है। इसके साथ ही इसका साग बना कर खाने से पेट से सम्बंधित सभी बीमारियों का खात्मा हो जाता है।”

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