संरक्षण के अभाव में ‘संजीवनी’ हो गई बीमार 

Update: 2017-03-28 20:01 GMT
संरक्षण के अभाव में ‘संजीवनी’ हो गई बीमार।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

सोनभद्र। उत्तर प्रदेश को सर्वाधिक राजस्व, ऊर्जा, खनिज और वन संपदा देने वाला जिला सोनभद्र है। प्रदेश के दूसरे सबसे बड़े जिले की भूमि पर कभी अनगिनत औषधीय पौधों की भरमार थी। अनेकों प्रकार की बीमारियों जो जड़ से खत्म कर देने वाले औषधीय पौधे (संजीवनी) यहां की भूमि पर आज भी जिंदा है, लेकिन कहीं-कहीं। यह अफसोस नहीं बल्कि प्रशासनिक और स्थानीय जरूरतों ने ऐसे पौधों को खत्म होने के कगार पर खड़ा कर दिया है।

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रिटायर्ड प्रोफेसर विजय दुबे (76 वर्ष) बताते हैँ, “ सोनभद्र को प्रकृति का वरदान है। जिले में औषधी के पौधों की भरमार थी। गुड़हर, सतावर, चिरौंजी, महुआ, कालमेघ जैसी औषधी पौधे यहां पर जंगलों में खूब हुआ करते थे, लेकिन अब इन पौधों का अस्तित्व सोनभद्र में खत्म होने की कगार पर है, क्योंकि अंधाधुध कटाई से औषधीय पौधे खत्म होते जा रहे हैं।”

जनपद का 6,788 वर्ग किमी क्षेत्रफल में विस्तार है। यह प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा जिला है। यह गंगा घाटी से 400 से 1,100 फीट ऊंचा है। ऊंचाई ज्यादा होने के कारण जनपद को अन्य मैदानी इलाकों से अलग करता है। सोनभद्र जनपद के राबट्र्सगंज, चतरा व घोरावल के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर जंगल ही जंगल है, लेकिन स्थानीय स्तर पर जलावन के उपयोग में तेजी से कटान की भेंट चढ़ते वृक्ष अब अल्प संख्या में बचे हैं।

वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार औेषधीय पौधे जनपद के हर एक क्षेत्र में बहुतायत में प्राप्त होते रहे हैं। ये पौधे वैसे तो देश के उन सभी हिस्सों में पाये जाते हैं जहां की ऊंचाई समुद्र तल से छह सौ मीटर है, लेकिन प्रदेश में ये पौधे बहुतायत यहीं मिलते रहे हैं।

इन पौधों पर किसानों को मिलेगा अनुदान

राष्ट्रीय आयुष योजना में उत्तर प्रदेश में सर्पगन्धा, अश्वगंधा, ब्राम्ही, कालमेघ, कौंच, सतावरी, तुलसी, एलोवेरा, वच और आर्टीमीशिया जैसे औषधीय पौधों की खेती के लिए सरकार की तरफ से अनुदान दिया जा रहा है। जिसमें प्रति एक एक हेक्टेयर सर्पगन्धा की खेती के लिए 45753.00 रुपए, अश्वगंधा के लिए 10980.75 रुपए, ब्राम्ही के लिए 17569.20 रुपए, कालमेघ के लिए 10980.75 रुपए, कौंच के लिए 8784.60 रुपए, सतावरी के लिए 27451.80 रुपए, तुलसी के लिए 13176.90 रुपए, एलोवेरा के लिए 18672.20 रुपए, वच के लिए 27451.80 रुपए और आर्टीमीशिया के लिए 14622.25 रुपए का अनुदान दिया जा रहा है।

  • प्रशासनिक उपेक्षा व स्थानीय मजबूरी की भेंट चढ़े जीवनदायी पौधे
  • औषधीय खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार दे रही है अनुदान

तेजी से अतिक्रमण, ग्रामीणों में स्थानीय स्तर पर औषधीय पौधों के गुणों को न जानना पौधों के लगातार गायब होने के प्रमुख कारण हैं। विभाग भी ऐसे हालात से निपटने में सफल नहीं हो पा रहा है। इसके लिए ग्रामीणों व प्रशासन का सहयोग मिले तभी ऐसे पौधों को बचा पाना संभव है। 
एसवीपी सिंह, डीएफओ, सोनभद्र।

इन जिलों में मिलेगा अनुदान

सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, बिजनौर,सम्भल, मेरठ, बुलंदशहर, बरेली, बदायूं, शाहजहाँपुर, लखनऊ, सीतापुर, हरदोई, फैजाबाद, बाराबंकी, अम्बेडकर नगर, सुल्तानपुर, बस्ती, गोरखपुर, महाराजगंज, कुशीनगर, इलाहाबाद, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, कन्नौज, कानपुर देहात, इटावा, फतेहपुर, आगरा, मथुरा, एटा, अलीगढ़, हाथरस, आजमगढ़, वाराणसी, गाजीपुर, जौनपुर, चन्दौली, मिर्जापुर, सोनभद्र, बाँदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, झांसी, जालौन, ललितपुर और बहराइच। इन जिलों के किसाना इस योजना का लाभ लेने के लिए उद्यान विभाग में संपर्क कर सकते हैं।

सरकार दे रही है अनुदान

“उत्तर प्रदेश के किसान भी औषधीय खेती करके अपनी आमदनी बढ़ा सकें, इसके लिए राष्ट्रीय आयुष मिशन योजना के जरिए उत्तर प्रदेश उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग यहां औषधीय खेती को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है। इसमें औषधीय खेती के लिए किसानों को अनुदान दिया जा रहा है। इस योजना के पहले चरण में प्रदेश के 75 में से 48 जिलों का चयन किया गया है।” यह जानकारी उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के निदेशक एसपी जोशी ने दी।

धीमे-धीमे गायब होते गए औषधीय पौधे

“जनपद के 1989 में अस्तित्व में आने से पूर्व यहां पर ऐसे पौधों को भरमार थी। चारों ओर जंगल का जाल बिछा हुआ था। लेकिन जैसे-जैसे आधुनिकीकरण का दौर तेजी से बढ़ा उसी तरह जंगल अपने अस्तित्व खोते गए। अब स्थिति यह है कि जंगल तो सिकुड़े ही ये जीवनदायिनी पौधे भी संजीवनी की जगह खुद बीमार हो गए। इसका मुख्य कारण यहां के वन विभाग का प्रशासनिक असहयोग व स्थानीय जरूरतों के आगे पंगू हो जाना।” यह कहना है दुद्धी के रहने वाले अभय सिंह (61 वर्ष) का।

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