इस नृत्य से जंगल के देवताओं को खुश करते हैं आदिवासी

Update: 2017-01-04 17:56 GMT
थारुओ की लोक कलाओं में कई सारे लोक नृत्य हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। देश में बहुत सी जनजातियां हैं, जिनकी अपनी अलग संस्कृति और सभ्यता होती है। उनके मनोरंजन के लिए उनके अलग लोक नृत्य और संगीत भी हैं। ऐसे ही एक जनजाति है थारू जनजाति।

थारु जाति का आवास क्षेत्र उत्तरांचल के तराई प्रदेश के पश्चिमी भाग में नैनीताल ज़िला व उत्तर प्रदेश के दक्षिण पूर्व से लेकर पूर्व में गोरखपुर और नेपाल की सीमा तक है। यह क्षेत्र हिमालय पर्वतपदीय एवं शिवालिक क्षेत्र में नैनीताल, गोंडा, खीरी, गोरखपुर और नेपाल, पीलीभीत, बहराइच एवं बस्ती ज़िलों में पूर्व-पश्चिम दिशा के मध्य विस्तृत है।

थारु जनजाति का सबसे अधिक जमाव नैनीताल ज़िले के बिलहारी परगना, खातीमाता तहसील की नानकमता, विलपुरी एवं टनकपुर बस्तियों के आसपास पाया जाता है। इसी भांति नेपाल की सीमा पर खीरी ज़िले के उत्तरी क्षेत्रों में बिलराइन से कनकटी के मध्य अनेक थारजन जाति की बस्तियां पायी जाती हैं। इनमें से मुख्य किलपुरी, खातीमाता, बिलहारी एवं नानकमाता है। प्रांतीय सरकार ने इन्हें 1961 में जनजाति का दर्जा प्रदान किया था।

हमारे यहां जब होली, दीपावली और खुशी के मौके पर लोक नृत्य किया जाता है, इसमें हमारे यहां की आदमी और औरते यहां की पारंपरिक कपड़े भी पहनते हैं। हम लोग जंगलों में ही रहते हैं तो हम लोग जंगल के देवता को खुश करने के लिए अपना नृत्य करते हैं।
राम सिंह (45 वर्ष), खीरी ज़िले के पलिया ब्लॉक के थारू ग्राम निझोटा के निवासी

थारू नृत्य की वेशभूषा में कलाकार।

थारुओं की लोक कलाओं में कई सारे लोक नृत्य हैं। पहला नृत्य स्टिक लौंग स्टिक डांस है। प्राचीन समय में दुश्मनों से लड़ाई करने के लिए कोई हथियार नहीं होता था, इसलिए स्टिक यानी छड़ी रक्षा के तौर पर इस्तेमाल की जाती थी। थारू लोग स्टिक को वाइंड करने में कुशल होते हैं।

वहीं दूसरा नृत्य है होली नृत्य, इसमें मार्च के महीने में आयोजित होने वाला रंगों का त्योहार होली का प्रदर्शन किया जाता है। यह दिन पूरी तरह से रंगों को समर्पित होता है और नृत्य भी।

तीसरा नृत्य फसल नृत्य होता है। थारू लोग इस डांस में दो स्टिक का इस्तेमाल करते हैं, यह डांस फसल पकने की खुशी के माहौल में किया जाता है। जिस तरह झुमरी डांस कई अवसरों पर किया जाता है, जैसे विवाह, त्योहार, जन्म आदि।

थारु नृत्य में स्त्री-पुरुष सभी भाग लेते हैं। पुत्र की प्राप्ति, शादी समारोह, भाई-बहन के त्योहार, दीपावली के दिन कर्मा नृत्य, नई फ़सल आने की खुशी में किया जाता है। थारूओं के लोक नृत्य में मांदर और झांझ-मंजीरा, घुंघरू प्रमुख वाद्ययंत्र हैं। महिलाएं सुताइल, बहुंटा और करधनी जैसे आभूषण भी पहनती हैं।

शोध संस्थान कर रहा लोक कलाओं पर काम

प्रदेश की लोक कलाओं पर शोध करने वाली संस्था अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक योगेन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं, “प्रदेश में ऐसी बहुत सी लोक गीत और लोक नृत्य हैं, जो जनजातियों की जड़ों से जुड़े होते हैं, हमारी कोशिश रहती है कि उन्हें लोगों तक पहुंचा पाएं। थारू जनजाति में इस लंबे समय में उनका नृत्य और परंपराएं बरकरार रही हैं।”

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