महिला किसानों को नहीं मिल पाता ऋण और सिंचाई सुविधा का लाभ

Update: 2017-03-23 18:04 GMT
आक्सफेम इण्डिया, रीजनल मैनेजर नन्द किशोर कहा कि महिला किसानों की सहखाती कानून को बनाने के लिए सरकार विचार करें।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। कृषि क्षेत्र में अस्सी फीसदी हिस्सेदारी महिला किसानों की होती है, लेकिन फिर महिला किसानों को उनका अधिकार नहीं मिल पाता है, उन्हें ऋण और सिंचाई सुविधा जैसी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता है।

गोरखपुर एनवायरन्मेंटल एक्शन ग्रुप, साथी संस्थाओं व आक्सफैम इंडिया के सहयोग से एक दिवसीय महिला किसानों के विषय पर विमर्श कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में महिला किसान मुन्नी देवी, इसलावती देवी, कुन्ता देवी, मीरा देवी एवं जगरानी देवी को भी सम्मानित किया गया।

आक्सफेम इण्डिया, रीजनल मैनेजर नन्द किशोर कहा कि महिला किसानों की सहखाती कानून को बनाने के लिए सरकार विचार करें तथा कुछ अलग से भी योजनाओं का क्रियान्नवयन करें। सरकार ने हर वर्ष 15 अक्टूबर को महिला किसान दिवस मनाने का निर्णय लिया है।

इस अवसर पर भारत भूषण, अध्यक्ष पानी संस्थान ने कहा कि देश के सम्पूर्ण कृषि जगत का 81 प्रतिशत महिला किसानो द्वारा की जाने वाली खेती से ही है जहां से 60 प्रतिशत उत्पादन प्राप्त होता है। खेती में महत्वपूर्ण भूमिकाओं के बावजूद महिला किसानो की पहचान कृषक के रूप में नहीं है न ही कृषक अधिकारों की दावेदारी उनके नाम है।"

बीजों का संरक्षण, गृहवाटिका, जानवरों का पोषण, सिंचाई, वृक्षारोपण, मत्स्य पालन जैसी अन्य गतिविधियों में भी महिला किसान की अग्रणी भूमिका है।

महिला किसान खाद्यान के साथ देश को प्रत्यक्ष, अपत्यक्ष रुप से अन्य आर्थिक क्षेत्रो के विकास और निर्यात के माध्यम से आर्थिक योगदान भी कर रही हैं। महत्वपूर्ण भूमिकाओं के बावजूद महिला किसानो की पहचान कृषक के रूप में नहीं है न ही कृषक अधिकारों की दावेदारी उनके नाम है।

विनोबा सेवा संस्थान के अध्यक्ष रमेश भैया ने महिलाओं के कृषि के योगदान के बारे में बताया, "जमींदारी उन्मूलन के 60 वर्षां के बाद भी महिला किसानों द्वारा बिना स्वामित्व के जमीन पर काम करना इस एक्ट की भावना का उल्लंघन जैसा है। भू-स्वामित्व और किसानी के बीच का अन्तर भारतीय कृषि संरचना का बुनियादी अवरोध है। इसके कारण सीमित संसाधनों का असक्षम उपयोग हो रहा है। महिला किसानों को ना ऋण मिल पाता है ना ही सिंचाई सुविधा।"

खेती का 70 से 80 प्रतिशत कार्य सम्पन्न करने वाली महिला किसानों को सुनने समझने वाला कोई नहीं। वो आज भी अपनी पहचान से दूर हैं, वो कृषि करती हैं, पर किसान नहीं। आवश्यक आर्थिक संसाधन, कृषि प्रसार और तकनीक उनके अनुकूल नही है, जिस खेत पर काम कर रही हैं, वो उनका नहीं है।

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