यूपी पुलिस के डायल100 में आने वाली शिकायतों में सबसे अधिक झगड़े प्रॉपर्टी के होते हैं जबकि दूसरे नंबर पर मामले घरेलू हिंसा के मामले आते हैं। वहीं एक्सीडेंट से जुड़े मामलों की संख्या नंबर 3 पर है।
लखनऊ। यूपी-100 में आने वाली फोन कॉल्स का शुरुआती एनालिसिस करके पुलिस के पास जानकारी है कि प्रदेश के किस कोने से सबसे अधिक कौन से मामने सामने आ रहे हैं। शुरुआती 50 दिनों में कॉल सेंटर पर सबसे अधिक 60,414 शिकायतें झगड़े की आईं। इनमें भी सबसे अधिक हदबरारी के मामले थे। इस दौरान कुल 28,65,757 कॉल प्रदेश भर से सुनी गईं और कुल 2,12,424 मामले पुलिस ने निपटाए। कॉल सेंटर में आने वाली सभी काल्स को सुनने के बाद छांटा जाता है कि कॉल्स सही हैं या गलत, उसके बाद पुलिस टीम को मदद के लिए भेजा जाता है।
शहरों और गाँवों में लोगों तक एक फोन कॉल पर मदद के लिए पहुंचने वाली यूपी पुलिस की ये गाड़ियां मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी द्वारा प्रदेश की महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए शुरू किए गए 'एंटी रोमियो अभियान' में काफी अहम भूमिका निभा रही हैं। सपा सरकार द्वारा चलाई गई इस योजना को और चुस्त बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में पुलिस की गाड़ियों का समय 20 मिनट से कम करके 15 करने का प्रस्ताव रखा है।
यूपी पुलिस की इस परिकल्पना को मूर्तरूप देने वाले एडीजी अनिल अग्रवाल बताते हैं, "झगड़ों को पुलिस टीम वहीं शांत करा देती है, और अगर एफआईआर करानी हुई थाने ले जाया जाता है। उसके बाद नजर भी रखते हैं कि जिन्हें थाने ले जाया गया था, उनके साथ क्या हुआ।"
हम यह नहीं कह सकते कि हम कितनों की मदद कर देंगे, लेकिन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि एक समाज में सुरक्षा की भावना पैदा करना। यूपी-100 एक कॉल पर पहुंच कर महिलाओं को सशक्त कर रहा हैअनिल अग्रवाल, एडीजी, उप्र पुलिस
"हम यह नहीं कह सकते कि हम कितनों की मदद कर देंगे, लेकिन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि एक समाज में सुरक्षा की भावना पैदा करना। इससे पुलिस के साथ-साथ गवर्नेंस में भी रिफार्म होगा। यूपी-100 एक कॉल पर पहुंच कर महिलाओं को सशक्त कर रहा है," एडीजी अनिल अग्रवाल बताते हैं, "अब हमारे पास हर तरह के क्राइम की जानकारी है।"
प्रदेश भर से आने वाली इन फोन कॉल्स का डाटा एनेलेसिस करने के बाद यूपी पुलिस यह बता सकती है कि प्रदेश के किस कोने में सबसे अधिक कौन से मामले सामने आ रहे हैँ। साथ ही, पुलिस ने जियो मैपिंग भी की है, जिससे पुलिस की गाड़ियों को घटनास्थल तक जल्दी पहुंचने के लिए आसपास के चर्चित स्थानों की जानकारी देकर समझाया जा सके।
“नमस्ते... यूपी-100 से मैं आप की क्या सहायता कर सकती हूं? आप परेशान न हों, हम जल्द ही पुलिस की मदद आप तक पहुंचाते हैं।”
वहीं, एक बड़े से हॉल में फोन को उठाते ही नेहा पांडेय कहती हैं, "नमस्ते... यूपी-100 से मैं आप की क्या सहायता कर सकती हूं? आप परेशान न हों, हम जल्द ही पुलिस की मदद आप तक पहुंचाते हैं। कॉल करने के लिए धन्यवाद।" इतना बोलने के बाद हेडफोन लगाए नेहा पांडे कुछ कम्प्यूटर पर टाइप करने लगती है।
नेहा की ही तरह सैकड़ों लड़कियां लोगों की फोन कॉल सुनने में लगी रहती हैं। ताकि परेशान लोगों तक जल्द से जल्द पुलिस की मदद पहुंचाई जा सके। "जब लोग अपनी समस्या बताते हैं तो हम उन्हें सबसे पहले सांत्वना देते हैं। उसके बाद हम आगे बताते हैं कि कहां पुलिस की गाड़ी (पीआरवी) भेजनी है।" यूपी-100 के कॉल सेंटर में हर रोज सैकड़ों लोगों की समस्या फोन पर सुनने वाली नेहा पांडेय बताती हैं।
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यूपी-100 के एक बड़े से ऑफिस में दो कॉल सेंटर हैं, एक में सिर्फ लड़कियां काम करती हैं जो पीड़ितों की फोन कॉल नोट करती हैं, उसके बाद इस डिटेल को आगे बढ़ा दिया जाता है। दूसरे कॉल सेँटर में पुलिस के जवान बैठते हैं, जिन्हें विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया है। वो पुलिस की गाड़ियों (पीआरवी) से संपर्क करके घटनास्थल पर जल्द से जल्द पहुंचाने की कोशिश करते हैं।
"हर पीआरवी वैन का रूट चार्ट बना हुआ है। एक पीआरवी 20 किमी तक चलती है, लेकिन 50 किमी तक भी जा सकती है। कॉल नहीं आ रही तो भी पीआरवी को चलते ही रहना है। हर चौराहे पर पांच-पांच मिनट रुकना होता है। अपनी स्थिति की जानकारी हर घंटे बाद देनी होती है," यूपी-100 में कार्यरत एसपी राहुल राज बताते हैं, "यह कम्युनिटी पुलिसिंग की ओर बढ़ रहा कदम है, हम समाज के हर उस वर्ग से जुड़ रहे हैं जिनकी पुलिस तक पहुंच नहीं थी। एक जिले में 30 से 40 पीआरवी वैन हैं।
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कॉल सेंटर में एक बड़े से स्क्रीन पर पल-पल की जानकारी अपडेट होती रहती है। जैसे-कितनी कॉल आईं, और किस सिस्टम पर पिछले पांच मिनट में कोई कॉल अटेंड नहीं की गई आदि। अपनी आठ घंटे की शिफ्ट पूरी करके घर जाने की तैयारी करते हुए कॉल सेंटर की टीम लीडर अर्चना सिंह कहती हैं, "पुलिस के खिलाफ आई शिकायत नोट करने में हमारा हाथ कीबोर्ड पर रुकता नहीं। अब पुलिस को फोन करने में लोगों का स्वागत होता है, डांट नहीं पड़ती।"
किसी पीड़ित को मदद पहुंचने के बाद कॉल सेंटर पर थैंक्यू कॉल्स भी आती हैं, जो इस पूरी टीम का हौसला और बढ़ा देता है। आने वाली थैंक्यू कॉल का पूरी टीम तालियां बजा कर स्वागत करती है। एडीजी अनिल अग्रवाल कहते हैं, "अभी तक पुलिस गंभीर अपराधों के निपटारे में ही लगी रहती थी, जो एक प्रतिशत ही हैं। जो सबसे अधिक हैं उनकी ओर ध्यान ही नहीं जाता। जैसे तनाव हो गया, जो झगड़े का बड़ा रूप ले सकते हैं, इसे मौके पर ही निपटाया जा रहा है," आगे बताते हैं, "प्रदेश के कुल पुलिसकर्मियों का मात्र 10 प्रतिशत ही यूपी-100 में लगे हैं, ये 10 फीसदी जो पुलिस से 95 प्रतिशत काम छूटा हुआ था, वह कर रहे हैं। बाकी हमारी पुलिस फोर्स गंभीर अपराधों को देखने के लिए फ्री है। जो दिखता है वही लॉ एंड आर्डर है।"
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