आदिवासियों की एकजुटता का प्रतीक है कर्मा नृत्य, आप भी बस देखते रह जाएंगे

Update: 2017-01-02 19:42 GMT
पिछले दिनों स्वयं फेस्टिवल में भी गोंड आदिवासियों ने कर्मा नृत्य पेश किया था

करन पाल सिंह, स्वयं डेस्क

राबार्ट्गंज (सोनभद्र)। घुंघरुओं की झनकार, ढोलक की थाप और सामूहिक रूप से एक ही स्वर में नृत्यगायन यह वह कर्मा नृत्य है जो पूरे गोंड आदिवासी, ग़ैर-आदिवासी सभी का यह लोक मांगलिक नृत्य है। यह नृत्य जनजाति की खुशी का इजहार करने का तरीका है। कर्मा नृत्य संपूर्ण गोंड आदिवासी समाज का प्रचलित लोक नृत्य है जो ज्यादातर छत्तीसगढ़ और सोनभद्र में प्रचलित है।

जिला मुख्यालय से 150 किमी दक्षिण दिशा में दुद्धी ब्लॉक के बभनी गाँव में कर्मा नृत्य को आज भी जीवित रखने वाले और इस नृत्य को देश-विदेश तक पहुंचाने के लिए यहां की गोंड और खरवार आदिवासी जनजाति लगातार प्रयास कर रही है। खरवार जनजाति के यदुवीर खरवार (42 वर्ष) बताते हैं, ‘कर्मा ही हमारा जीवन है। हमारी रग-रग में कर्मा नृत्य घुला है। हमारी जनजाति हर छोटी से बड़ी खुशी इसी नृत्य के द्वारा जाहिर करती है। हम लोग हर शुभ कार्य करने से पहले यह नृत्य करते हैं।’ कर्मा नृत्यांगना कलावती खरवार (40 वर्ष) बताती हैं, ‘कर्मा नृत्य हमारे पूर्वजों की देन है इस नृत्य को हम लोग जब भी मौका मिलता है हम लोग करते हैं। हम अपने नृत्य को दूसरे प्रदेशों में भी प्रस्तुत करते हैं।’

संस्कृति का प्रतीक

यह नृत्य गोंडवाना की लोक-संस्कृति का पर्याय है। गोंडवाना के आदिवासी, ग़ैर-आदिवासी सभी का यह लोक मांगलिक नृत्य है। कर्मा नृत्य, सतपुड़ा और विंध्य की पर्वत श्रेणियों के बीच सुदूर ग्रामों, छत्तीसगढ़, सोनभद्र, मध्यप्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, महाराष्ट्र में भी प्रचलित है। सोनभद्र के गोंड और बैगा व कोरकू, खरवार और परधान जातियां कर्मा के ही कई रूपों में नाचती हैं।

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नृत्य के प्रकार

यूं तो कर्मा नृत्य की अनेक शैलियां हैं, लेकिन सोनभद्र में पांच शैलियां प्रचलित हैं, जिसमें झूमर, लंगड़ा, ठाढ़ा, लहकी और खेमटा हैं। जो नृत्य झूम-झूम कर नाचा जाता है, उसे ‘झूमर’ कहते हैं। एक पैर झुकाकर गाया जाने वाल नृत्य ‘लंगड़ा’ है। लहराते हुए करने वाले नृत्य को ‘लहकी’ और खड़े होकर किया जाने वाला नृत्य ‘ठाढ़ा’ कहलाता है। आगे-पीछे पैर रखकर, कमर लचकाकर किया जाने वाला नृत्य ‘खेमटा’ है।

खुशी के इजहार के लिए होता है नृत्य

कर्मा नृत्य में स्त्री-पुरुष सभी भाग लेते हैं। यह वर्षा ऋतु को छोड़कर सभी ऋतुओं में नाचा जाता है। पुत्र की प्राप्ति, शादी समारोह, भाई-बहन के त्योहार, दीपावली के दिन कर्मा नृत्य, नई फ़सल आने की खुशी में किया जाता है।

वस्त्र व वाद्ययंत्र

कर्मा नृत्य में मांदर और झांझ-मंजीरा, घुंघरू प्रमुख वाद्ययंत्र हैं। इसके अलावा टिमकी ढोल, मोहरी आदि का भी प्रयोग होता है। कर्मा नर्तक पग पहनते हैं, पगड़ी में मयूर पंख के कांड़ी का झालदार कलगी खोंसते हैं। रुपया, सुताइल, बहुंटा और करधनी जैसे आभूषण भी पहनते हैं। कलई में चूरा, और बांह में बहुटा पहने हुए युवक की कलाइयों और कोहनियों का झूल नृत्य की लय में बड़ा सुन्दर लगता है। इस नृत्य में संगीत योजनाबद्ध होती है। राग के अनुरूप ही इस नृत्य की शैलियां बदलती हैं। इसमें गीता के टेक, समूह गान के रूप में पदांत में गूंजते रहते हैं। पदों में ईश्वर की स्तुति से लेकर श्रृंगार परक गीत होते हैं। मांदर, घुंघरू और झांझ की लय-ताल पर नर्तक लचक-लचक कर भांवर लगाते हुए वृत्ताकार नृत्य करते हैं।

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