World Milk Day : 'डेयरी से कमाना है तो दूध नहीं उसके प्रोडक्ट बेचिए'

Arvind ShuklaArvind Shukla   1 Jun 2019 6:45 AM GMT

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नई दिल्ली। खेती और पशुपालन सदियों से भारतीय अर्थव्यवस्था और किसान की आमदनी की रीढ़ रहे हैं, लेकिन कृषि प्रधान देश और दुनिया के आधे पशु संख्या वाले भारत में पिछले कुछ वर्षों में हालात तेजी से बदले हैं। ऐसे में खेती और पशुपालन कैसे किसानों की जीविका का आधार बनी रहे, इस सब मुद्दों को लेकर पशुधन के क्षेत्र में 40 वर्षों से कार्यरत विशेषज्ञ और आयुर्वेट लिमिटेड के एमडी मोहन जे. सक्सेना से बात की गाँव कनेक्शन के डिप्टी न्यूज एडिटर अरविंद शुक्ला ने

"भारत दुनिया में दुग्ध उत्पादन में नंबर एक है। पूरी दुनिया के आधे पशु हमारे भारत में पाए जाते हैं, लेकिन उनसे उत्पादन उतना नहीं। इसलिए जरूरी है किसान और पशुपालक परंपरागत ज्ञान के साथ विज्ञान के सहारा लें, खेती और पशुपालन में नई तकनीकों का इस्तेमाल करे। अच्छे उत्पाद के लिए जरूरी है पशु सेहतमंद रहे, ये कुछ टिप्स हैं, जिन्हें अपनाने से किसान का मुनाफा बढ़ना तय है।" मोहन सक्सेना कहते हैं।


60 से ज्यादा देशों में पशुपालन पर दिए सुझाव

मोहन जे. सक्सेना पशुओं के लिए हर्बल दवाएं और पशुपालन की नई तकनीकों पर काम करने वाली कंपनी डाबर की कंपनी आयुर्वेट के एमडी हैं। वो पिछले 25 वर्षों से आयुर्वेट के साथ जुड़े हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडेलिस्ट मोहन जे. सक्सेना पशुओं की सेहत और डेयरी उद्योग को लेकर 60 से ज्यादा देशों में इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को संबोधित कर चुके हैं।

पशुपालन एक उद्योग बनता जा रहा है

अपने अनुभव साधा करते हुए वो बताते हैं, "भारत में पशुओं की कमी नहीं है, लेकिन हम भारतीय इस सेक्टर को कुछ वर्ष पहले तक इतना तवज्जो नहीं दे रहे थे, लेकिन अब वैसा नहीं है। अब पढ़े-लिखे युवा डेयरी गाँवों में जाकर डेयरी खोल रहे हैं, पशुपालन एक उद्योग बनता जा रहा है। पोल्ट्री फार्मिंग में हम दुनिया के शीर्ष देशों में हैं, लेकिन अभी बहुत काम करने की जरुरत है। सरकार और इस सेक्टर से जुड़ी कंपनियों और संस्थाओं को भी।"

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डाबर परिवार ने पशुधन को और अधिक तवज्जो दिए जाने और इस सेक्टर की जरुरतों को ध्यान में रखते हुए 1992 में आयुर्वेट की स्थापना की। मोहन जे. सक्सेना बताते हैं, "हमारी कंपनी पूरी तरह हर्बल प्रोडक्ट बनाती है, दवाएं पशुओं के बीमार होने पर दी जाती हैं, हम पशुओं की वेलनेस (स्वास्थ्य और सेहत) पर काम करते हैं। हम किसान को लगातार ये जागरुक करने की कोशिश करते हैं कि पशु का ध्यान ऐसे रखा जाए कि उसके बीमार होने की नौबत कम आए।"

कई ऐसी बीमारियां, जो दिखाई नहीं देती

दरअसल पशुओं में ऐसी कई बीमारियां होती हैं, जो दिखाई नहीं देती है, लेकिन अगर थोड़ा ध्यान न दिया जाए तो पशु के लिए जानलेवा और किसान के लिए नुकसानदायक हो सकता है। जैसे थनों में होने वाला रोग थनैला, गलाघोंटू, खुरपका-मुंहपका, बांझपन समेत कई रोग हैं, जिनसे पीड़ित गाय-भैंस बच भी जाए तो दुग्ध उत्पादन पर असर पड़ता है।

किसान अपने पशुओं की जरुरतों को समझे

सक्सेना जी बताते हैं, "किसान की जब गाय-भैंस, बकरी या कोई पशु बीमार होता है तो वो अपनी चिंता छोड़ उसकी देखरेख में जुट जाता है। कुछ बीमारियां वायरस से होती हैं, जैसे खुरपका आदि और कुछ उचित देखरेख और खानपान के अभाव में होती है, आयुर्वेट ने एक ऐसी जन चेतना प्रणाली विकसित की है कि किसान अपने पशुओं की जरुरतों को समझे, और वैसे ही उनका ख्याल रखे, जो पशुपालक अब टीकाकरण नहीं कराते हैं वो नुकसान उठाते हैं।"

इसलिए तीन प्रमुख बिंदुओं पर चला रहा है मुहिम

वो आगे कहते हैं, "आयुर्वेट इसलिए तीन प्रमुख बिंदुओं पर मुहिम चला रहा है। पहला- वैज्ञानिक तौर पर पशुपालन, दूसरा- अच्छा आहार, तीसरा- स्वस्थ पशु। अब तो पीएम ने भी स्वच्छता से स्वस्थता की मुहिम चलाई है। पशु सेहममंद होगा और साफ सुथरी जगह रखा जाएगा तो वो उत्पादन अच्छा देगा।"

किसानों को दिया जा रहा है प्रशिक्षण

आयुर्वेट रिसर्च फाउंडेशन के तहत किसानों के लिए हरियाणा समेत कई राज्यों में रिसर्च, जागरुकता अभियान और समझौते के तहत आयुर्वेदिक दवाओं की खेती, ट्रेनिंग आदि दी जा रही है। वो बताते हैं, "किसानों में जागरुकता बहुत जरुरी है, इसलिए हम लोग कई पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करते हैं। जैसे आयुर्वेट पशु स्वास्थ्य संसार है। इसमें दुनियाभर इस सेक्टर से जुड़ी जानकारी, गर्मी-सर्दी में पशु को कैसे पाले आदि के बारे में विस्तार से बताया जाता है।"

नो प्रॉफिट, नो लॉस के आधार पर प्रशिक्षण

ट्रेनिंग के बारे में पूछने पर आयुर्वेट के एमडी बताते हैं, "हम लोग नो प्रॉफिट, नो लॉस के आधार पर गाँव के 10वीं-12वीं पास युवक-युवतियों को ट्रेनिंग देते हैं। हमारे यहां से निकले 50 फीसदी से ज्यादा युवक-युवतियों ने अपनी डेयरी खोली। हरियाणा में स्थित ये ट्रेनिंग सेंटर भारत सरकार और इग्नु से मान्यता प्राप्त है। अब तो हमारे यहां नाबार्ड, डेयर के क्षेत्र में कार्यरत कई कंपनियां भी अपने फील्ड वर्कर को प्रशिक्षित कराती हैं।'

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पशुपालन को मुनाफे का सौदा कैसे बनाए जाने पर वो कहते हैं, "पशुपालन का मतलब सिर्फ गाय-भैंस नहीं। अगर आप के पास जगह है जो मछली पालिए, पोल्ट्री का बिसनेस कीजिए। जब दूध हो तो उसे सीधे न बेचें बल्कि उसे प्रोडेक्ट बनाएं, जैसे खोया, पनीर और दूसरे प्रोडक्ट, जिनसे आप की अच्छी कमाई होगी। गोबर है तो बॉयोगैस और बिजली बनाने की कोशिश करिए।'

नोट- मोहन जे सक्सेना के साक्षात्कार का शेष भाग अगले भाग यहां पढ़ें

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