अब बड़े बाजार में बांग देने को तैयार है कड़कनाथ
गाँव कनेक्शन 8 April 2018 12:57 PM GMT
इंदौर। यह महज दशकभर पहले की बात है जब चूजों की ऊंची मृत्यु दर और दूसरी नस्लों के साथ जोड़ा बनाने (क्रॉस ब्रीडिंग) के कारण मध्य प्रदेश के झाबुआ मूल का कड़कनाथ मुर्गा विलुप्ति की ओर बढ़ रहा था। मगर गुजरे वर्षों में इसे बचाने की कामयाब कोशिशों के बाद काले रंग के इस ‘कुक्कड़’ की बांग दूर तक सुनाई दे रही है।
झाबुआ के कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख डॉ. आईएस तोमर ने बताया, "मुर्गीपालन के सही तरीकों के प्रति आदिवासियों में जागरुकता के अभाव के कारण करीब 10 वर्ष पहले झाबुआ में कड़कनाथ की मूल नस्ल गायब हो रही थी। आदिवासी क्षेत्रों में कड़कनाथ और दूसरी प्रजातियों के मुर्गे-मुर्गियों को साथ रखा जा रहा था, जिससे इसकी संकर नस्लें पैदा हो रही थीं।"
तोमर ने बताया, “झाबुआ के कृषि विज्ञान केंद्र ने सरकार की एक परियोजना के तहत वर्ष 2009-10 में अध्ययन किया, तो पता चला कि कड़कनाथ के चूजों की मृत्यु दर काफी ऊंची थी। इसके साथ ही, वयस्क कड़कनाथ मुर्गों के शरीर का वजन दूसरी प्रजातियों के मुर्गों के मुकाबले कम रहता था। इससे आदिवासियों को बाजार में कड़कनाथ के अच्छे दाम नहीं मिल रहे थे और इसके उत्पादन के प्रति उनका मोहभंग हो रहा था।“
उन्होंने कहा, "हमने आदिवासियों के घरों के पास प्रयोग के तौर पर कड़कनाथ मुर्गों के लिये अलग शेड बनवाये और उनमें 100-100 चूजों को रखवाकर उनका टीकाकरण किया। इन पक्षियों को विशेष चार्ट के आधार पर पौष्टिक खुराक दी गई, जिससे उनका वजन बढ़ाने में मदद मिली।"
स्वाद के साथ औषधीय गुण भी
कड़कनाथ मुर्गे को स्थानीय जुबान में "कालामासी" कहा जाता है। इसकी त्वचा और पंखों से लेकर मांस तक का रंग काला होता है। कड़कनाथ के मांस में दूसरी प्रजातियों के चिकन के मुकाबले चर्बी और कोलेस्ट्रॉल काफी कम होता है। झाबुआवंशी मुर्गे के गोश्त में प्रोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत ज्यादा होती है। कड़कनाथ चिकन की मांग इसलिये भी बढ़ती जा रही है, क्योंकि इसमें अलग स्वाद के साथ औषधीय गुण भी होते हैं।
जानकारों के मुताबिक, उचित देखभाल और खुराक से कड़कनाथ के वयस्क मुर्गे के शरीर का वजन दो किलोग्राम तक पहुंचाया जा सकता है। फिलहाल खुदरा बाजार में कड़कनाथ मुर्गे का भाव 500 से 800 रुपये प्रति किलोग्राम है, जबकि आम प्रजातियों के मुर्गे 80 से 140 रुपये प्रति किलोग्राम की दर पर बिक रहे हैं।
बनाए गए हैं कड़कनाथ पालन केंद्र
इस बीच, प्रदेश के पशुपालन विभाग के अतिरिक्त उप संचालक डॉ. भगवान मंघनानी ने बताया, “बढ़ती मांग के कारण झाबुआ के बाहर भी कड़कनाथ पालन केंद्र स्थापित किए गए हैं। अलीराजपुर, बड़वानी, धार, देवास, इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, शहडोल और छिंदवाड़ा जैसे जिलों को कड़कनाथ के उत्पादन के बड़े केंद्रों के रूप में विकसित किया जा रहा है।“
उन्होंने बताया, “मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान प्रदेश में सरकारी और निजी क्षेत्र के साथ सहकारी समितियों द्वारा कड़कनाथ मुर्गे का कुल उत्पादन बढ़कर चार लाख चूजों तक पहुंचने की उम्मीद है, जो बीते वर्ष में ढाई लाख चूजों का रहा था। अगले दो वर्ष में इसके उत्पादन को दोगुना बढ़ाकर आठ लाख चूजों के सालाना स्तर पर पहुंचाने की योजना बनायी जा रही है।“
कड़कनाथ की मार्केटिंग के लिए मोबाइल ऐप
मंघनानी ने यह भी बताया, “प्रदेश के सहकारिता विभाग ने कड़कनाथ मुर्गे की मार्केटिंग के लिये एक मोबाइल ऐप पेश किया है, ताकि इसके उत्पादकों के लिये बड़ा बाजार खोजा जा सके। इस ऐप से विभिन्न सहकारी समितियों को जोड़ा गया है, जो अलग-अलग जिलों में कड़कनाथ का उत्पादन करती हैं।“
उन्होंने हालांकि कहा, "फिलहाल इस ऐप के जरिये कड़कनाथ के वयस्क पक्षियों के मुकाबले इसके चूजों की मांग ज्यादा आ रही है। हम चूजों के बजाय इसके बड़े पक्षियों की बिक्री बढ़ाना चाहते हैं, क्योंकि यह उत्पादकों के लिये ज्यादा फायदेमंद है।"
पिछले महीने देश की जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री ने कड़कनाथ मुर्गे पर मध्य प्रदेश का दावा शुरुआती तौर पर मंजूर कर लिया है। अगर सबकुछ ठीक रहा, तो अगले तीन महीनों में इसके चिकन को "पोल्ट्री मांस" की श्रेणी में भौगोलिक उपदर्शन (जीआई) प्रमाणपत्र भी मिल जायेगा। इससे कड़कनाथ मुर्गे का बाजार और बढ़ने की उम्मीद है।
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