जानिए पशुओं की प्रजनन संबधी बीमारियों के बारे में, इन तरीकों से कर सकते है उपचार

Diti Bajpai | May 14, 2018, 10:05 IST
भारत में डेयरी उद्योग में बड़े नुकसान के लिए पशुओं का बांझपन और गर्भपात मुख्य वजह
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लखनऊ। भारत में दुनिया का सबसे ज्यादा दूध उत्पादन होता है। यहीं पर दुनिया के सबसे ज्यादा पशु भी हैं। लेकिन हमारे देश में एक बड़ी समस्या भी है, जिससे पशुपालकों और किसानों की आमदनी पर असर पड़ता है। भारत में डेयरी उद्योग में बड़े नुकसान के लिए पशुओं का बांझपन और गर्भपात मुख्य वजह हैं। इन समस्याओं के होने के वैसे तो बहुत से कारण है लेकिन मुख्य कारण रोगाणु होते है। यह रोग हर डेरी फार्म के लिए हानि का मुख्य कारण है। सही प्रबंधन और पशु चिकित्सक की मदद से हम इस समस्या से काफी हद तक निजात पा सकते हैं। पशुओं में सामान्यत प्रजनन अंगों में बीमारियां धीरे-धीरे विकसित होती हैं और बीमारी से ग्रस्त पशु मरता नहीं है, और कई बार तो बीमार भी नहीं दिखता है। प्रजनन सम्बन्धी बीमारियों से बचने के लिए यह जरुरी है कि उच्च प्रबंधन तकनीकों का उपयोग किया जाये। बीमार पशुओं को तुरंत अलग कर समुचित इलाज किया जाये।

पशुओं में प्रजनन दो तरह के होते है पहला संक्रामक प्रजनन रोग दूसरा पोषाहार प्रजनन रोग।

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(अ) संक्रामक प्रजनन रोग
1. ब्रूसेलोसिस (वैंग रोग)- कई राज्य पशुओं को इस रोग से मुक्त करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। इस रोग से संक्रमित गाय हर पहलू में सामान्य सी दिखती है, और जब वह ब्याती है तो जेर व स्रावित द्रवित पदार्थों के साथ लाखों ब्रूसेला जीवाणु भी फैलाती है। स्रावित द्रवित पदार्थ जमीन, और चारा आदि को संक्रमित कर देता है, जिससे दूसरे पशुओं के संक्रमित होने की सम्भावना बढ़ जाती है। ज्यादातर संक्रमण पाचन तंत्र के माध्यम से होता है लेकिन यह संक्रमण त्वचा और आँख के माध्यम से भी हो सकता है। दूषित चारा, बिस्तर, पानी आदि कुछ दिन से लेकर कुछ हफ्ते तक संक्रमित रह सकते हैं। गर्भपात का समय- गर्भावस्था के छठे से नौवें महीने के दौरान रोग विवरण/लक्षण - इस रोग में 80 प्रतिशत तक मामलों में गर्भपात हो सकता है (ज्यादातर पशुओं में एक बार) और बाँझपन की समस्या, जेर रुकना आदि अन्य लक्षण हैं। बचाव केवल मादा पशुओं में 3-12 महीने की आयु पर टीकाकरण (स्ट्रेन-19 वैक्सीन द्वारा) - संक्रमित पशु अलग रखें - कम जगह पर ज्यादा पशु न रखें।


2. विब्रियोसिस
विब्रियोसिस एक प्रजनन जनित रोग हैं। जो मुख्यतः बाँझपन करता है। लेकिन कभी-कभी गर्भपात भी करता है। यह जीवाणु जनित बीमारी है और यह जीवाणु सांड की शिशन के मुख पर खुली त्वचा (चमड़ी) की दरारों में पाया जाता है| यह चार वर्ष या उससे अधिक उम्र के सांड़ो में होता है। विब्रियोसिस प्रजनन के दौरान गाय को संक्रमित सांड़ से फैलता है। सांड भी संक्रमित गाय के प्रजनन से संक्रमित हो सकता है। लक्षण मादा पशुओं में गर्भशोथ (मेंट्राईटिस) बाँझपन गर्भ का न ठहरना या गर्भ मे बच्चे की मृत्यु गर्भपात का समय - गर्भावस्था के प्रथम तीन महीनो में बचाव सांड़ो और गायों में प्रजनन के साढ़े चार महीने पहले पहला टीका तथा उसके10 दिन बाद दूसरा टीका। बाद में हर साल जीवाणुनाशक दवाओं से उपचारित वीर्य द्वारा कृत्रिम गर्भाधान। ये भी पढ़ें- दुधारु पशुओं में बांझपन बन रही बड़ी समस्या
3. ट्राईकोमोनियासिस यह प्रोटोजोवा जनित बीमारी है, जो प्रजनन से फैलती है। यह रोग संक्रमित सांड़ से मादा पशु के प्रजनन अंगो में फैलता है। जिसकी वजह से गर्भपात, बांझपन, गर्भ में शिशु मृत्यु और जिसके फलस्वरूप पशु गर्मी मे आ जाता है। लक्षण बांझपन, मवादयुक्त गर्भाशय प्रदाह प्रोटोजोवा, सांड़ द्वारा सामान्य प्रजनन प्रक्रिया से मादा पशु में पहुँचते हैं। कृत्रिम गर्भधान द्वारा रोग का फैलाव नहीं के बराबर है। गर्भपात का समय - 2 से 4 महीने बचाव संक्रमित सांड़ का उपयोग न करें पहला टीका प्रजनन से 60 दिन पहले तथा दूसरा 30 दिन पहले और बाद में हर साल। 90 दिनों के लिए प्रजनन से आराम देने से भी यह नियंत्रित हो जाता है।

४ कम्पाइलोबैक्टीरियोसिस यह जीवाणु जनित रोग है जो कम आयु में डायरिया करता है जबकि वयस्क मादा पशुओ में गर्भपात कर सकता है। यह मल-मुख के माध्यम से फैलता है। गर्भपात का समय - गर्भावस्था के चौथे और नौवें माह के दौरान लक्षण बांझपन कभी-कभी गर्भपात जीवाणु आंतो में पाए जाते हैं बचाव इलाज सामान्यतः आवश्यक नहीं है 90 दिन के लिए प्रजनन आराम से नियंत्रित हो जाता है 5. लेप्टोस्पाइरोसिस लेप्टोस्पाइरोसिस दक्षिण भारत में बगैर टीकाकरण वाले झुंडो में पाया जाता है। ये रिपीट ब्रीडिंग, कम तीव्रता का गर्भाशय संक्रमण, गर्भपात, थनैला जैसी समस्याएँ करता है। सामान्य गायों में संक्रमण, संक्रमित गायो कि मूत्र की बूंदों से, आँख, नाक, मुंह , श्लेषमा झिल्ली के साथ संपर्क में आने पर फैलता है। इस रोग से प्रभावित गायों का ब्यांत अन्तराल बढ़ जाता है। गर्भपात का समय - गर्भावस्था के अंतिम त्रेमास में लक्षण कोई विशेष लक्षण नहीं कभी-कभी बुखार, रक्ताल्पता एवं थनैला गर्भपात- 5 से 40 प्रतिशत तक बचाव बैक्टेरिम टीकाकरण प्रत्येक 6 मास के अन्तराल में मल व मूत्र का समुचित निकास यह रोग चूहो द्वारा फैलता है, चूहों का पशु परिसर में प्रवेश पर नियंत्रण के लिए उचित प्रबंध होना चाहिए।
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6. रेड नोज रोग (आई.बी.आर. वाइरस इन्फैकशन)
यह विषाणु जनित रोग जो छोटे पशु व वयस्क पशु दोनों को प्रभावित करता है। यह मुख्यतः श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है। अधिकतर गर्भपात पशु झुंड में संक्रमण फैलने के एक सप्ताह बाद ही होने लगता है। गर्भपात का समय - गर्भवस्था के चौथे महीने से ऊपर लक्षण श्वशन/नेत्र झिल्ली रोग आदि के रूप में हो सकते हैं। कई बार गायों में कोई लक्षण नहीं दिखता संक्रमित गायों से रोग का फैलाव होता है 5-60 प्रतिशत गर्भपात दर है। एक बार संक्रमण होने के बाद पशु रोगरोधी हो जाता है बचाव 6 से 8 महीने की आयु पर टीकाकरण 7. बोवाइन वायरल डायरिया (बी. वी. डी. वाइरस इन्फैकशन) बी.वी.डी. वाइरस इन्फैकशन की वजह से पशुओ में कई तरह की समस्याएं आती है। यह संक्रमण माता के रक्त प्रवाह से गर्भाशय में शिशु में पहुँच जाता है। गर्भपात का समय - गर्भवस्था के प्रारम्भ में 4 महीने तक लक्षण गर्भावस्था में संक्रमण होने के बाद भ्रूण विकास दर में कमी प्रारंभ में बुखार जन्मे बच्चों में मस्तिष्क का विकास कम होना संक्रमण छूत से फैलता है बचाव 8 महीने के आयु पर टीकाकरण गर्भावस्था में टीका न लगायें

8 एस्परजिलोसिस
यह फफूंद जनित रोग है। यह मुख्यतः श्वशन तंत्र को प्रभावित करता है। कई बार यह कोई भी लक्षण नहीं दिखाता है, लेकिन गर्भपात कर देता है। गर्भपात का समय- सामान्यत गर्भावस्था के 6-9 महीने में। ज्यादातर पशु इस रोग से प्रभावित होते हैं लक्षण शुरू में कोई विशेष लक्षण नहीं दिखता लेकिन पुराने रोगी स्थाई रूप से बाँझ हो जाते हैं। गर्भपात कम संख्या में 5-10 प्रतिशत पाया गया है। बचाव यह फफूंद गीले या नम भूसे में पाया जाता है। इसलिए गर्भपात में फफूंद लगा भूसा न खिलायें।
(ब) पोषाहार प्रजनन रोग
इस तरह की समस्या पोषक तत्वों की कमी, पोषण असंतुलन में गड़बड़ी की वजह से हो सकती है। इस प्रकार के रोगों से पशुपालक को आर्थिक हानि हो सकती है। निम्न रोग प्रमुख पोषण रोगों में शामिल हैं। 1. मिल्क फीवर
यह बीमारी ज्यादा दूध देने वाली गायों में पाई जाती है और इसमें रक्त में कैल्शियम की मात्रा कम होती जाती है। यह ज्यादातर दुग्ध उत्पादन के शुरू के दिनो में होती है। बुखार शब्द इस बीमारी के नाम में एक मिथ्य है, आमतौर पर तापमान सामान्य से कम रहता है। कैल्सियम की कमी की वजह भूख कम हो जाती है, शरीर शिथिल हो जाता है। बचाव आमतौर पर कैल्शियम ही इसका मुख्य इलाज है। कैल्शियम नसों के माध्यम से या मांस में या त्वचा के नीचे, आदि मार्गों से दिया जाता है।
2. किटोसिस
यह वयस्क मवेशियों की एक आम बीमारी है। जो डेयरी गाय जल्दी दुग्ध उत्पादन में आ जाती हैं उनमें ये पायी जाती है। इस बीमारी में पशु अवसाद में रहता है और खाना बंद कर देता है। भूख न लगने के अलावा कई लक्षण हैं। लक्षण दिमाग का सही काम न कर पाना, लड़खड़ा कर चलना। चलना, असामान्य चाल, असामान्य बचाव पशुओं के खून में ग्लूकोज का स्तर सामान्य करना। 50 प्रतिशत डेक्स्ट्रोज की 500 मि.ली. मात्रा नस के माध्यम से देना एक कारगर चिकित्सा है। 3. फाॅस्फोरस खनिज की कमी फाॅस्फोरस की कमी आमतौर पर अपर्याप्त पोषण या राशन में फास्फेट्स की कमी की वजह से होती है। यह समस्या अधिक उत्पादन वाली गायों की प्रमुख समस्या है। बचाव पर्याप्त फास्फोरस खनिज पशुआहार के साथ देना एक प्रभावी इलाज है नसों के माध्यम से भी फास्फोरस दिया जाता है। नोट- गाय-भैंस, मुर्गाी पालन, शूकर, मछली और बकरी समेत सभी पशुओं से संबंधित जानकारी के लिए पढ़ें गांव कनेक्शन का पशुधन सेक्शन...किसानों की जानकारी के लिए खबर शेयर करें
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