एक बार बोकर पांच साल तक पशुओं को खिलाइए ये घास
Diti Bajpai | Apr 25, 2018, 13:36 IST
अखा (बरेली)। जनपद के अखा गाँव में एक ऐसी घास उगाई जा रही है, जिसमें पशुओं को खिलाई जाने वाली आम घास के मुकाबले अधिक प्रोटीन पाया जाता है। इस घास के सहारे पशुपालक न सिर्फ बचत कर सकते हैं बल्कि पशुओं को भी अधिक स्वस्थ बना सकते हैं।
जिला मुख्यालय के पश्चिम में 10 किमी दूर बसे अखा गाँव में पशुपालक देवेश सिंह (32 वर्ष) पिछले एक महीने से एक ऐसी घास अपने खेतों में उगा रहे हैं। इस घास में इतना पोषण होता है कि वे अपने चार पशुओं को एक समय के दाने की जगह ये घास ही खिलाते हैं। जिज्वा नाम की ये घास उन्हें एक पशुचिकित्सा के वैज्ञानिक ने दी है।
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बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ रनवीर सिंह इस घास को गुजरात के राजकोट से खोज कर लाए थे। "राजकोट में एक प्रसिद्ध गोशाला है जहां मैं अध्ययन के लिए गया था। वहां दाने के बदले ये घास गायों को खिलाई जाती है। इसके कुछ पौधे जब संस्थान में लाकर मैंने परीक्षण किया तो पाया कि इसमें सामान्य घास के मुकाबले ज्यादा प्रोटीन है," डॉ सिंह ने बताया।
सामान्य घास में आठ से नौ प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है वहीं डॉ सिंह के मुताबिक जिज्वा में 15 से 18 फीसदी प्रोटीन है। साथ ही किसान इस घास को एक बार उगाकर पांच साल तक काटते रह सकते हैं।
पशुपालक देवेश ने जिज्वा घास को अपने आधे बीघा खेत में उगा रखा है। "जब इस घास को खिलाते हैं तो पशुओं को एक समय दाना नहीं देना पड़ता है पशु चाव से खाते भी हैं। इसको लगाने में कोई खर्चा भी नहीं आता है," देवेश ने बताया।
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जिला मुख्यालय के पश्चिम में 10 किमी दूर बसे अखा गाँव में पशुपालक देवेश सिंह (32 वर्ष) पिछले एक महीने से एक ऐसी घास अपने खेतों में उगा रहे हैं। इस घास में इतना पोषण होता है कि वे अपने चार पशुओं को एक समय के दाने की जगह ये घास ही खिलाते हैं। जिज्वा नाम की ये घास उन्हें एक पशुचिकित्सा के वैज्ञानिक ने दी है।
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बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ रनवीर सिंह इस घास को गुजरात के राजकोट से खोज कर लाए थे। "राजकोट में एक प्रसिद्ध गोशाला है जहां मैं अध्ययन के लिए गया था। वहां दाने के बदले ये घास गायों को खिलाई जाती है। इसके कुछ पौधे जब संस्थान में लाकर मैंने परीक्षण किया तो पाया कि इसमें सामान्य घास के मुकाबले ज्यादा प्रोटीन है," डॉ सिंह ने बताया।
सामान्य घास में आठ से नौ प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है वहीं डॉ सिंह के मुताबिक जिज्वा में 15 से 18 फीसदी प्रोटीन है। साथ ही किसान इस घास को एक बार उगाकर पांच साल तक काटते रह सकते हैं।
पशुपालक देवेश ने जिज्वा घास को अपने आधे बीघा खेत में उगा रखा है। "जब इस घास को खिलाते हैं तो पशुओं को एक समय दाना नहीं देना पड़ता है पशु चाव से खाते भी हैं। इसको लगाने में कोई खर्चा भी नहीं आता है," देवेश ने बताया।
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